UP News: जैविक खादी से आधी आबादी को दे रहीं आर्थिक आजादी, लखनऊ की ऋचा ने मल्टीनेशनल कंपनियों की उड़ाई नींद
Organic Khadi ऋचा ने 2018 में प्राकृतिक ऊर्जा में एमएससी करने के बाद इसी विषय में शोध शुरू किया है। नीदरलैंड विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इससे पहले 2015 में प्रोडक्शन ट्रेंड से बीटेक किया था। वर्तमान में ऋचा का हर साल 6.5 करोड़ का टर्नओवर है।
By JagranEdited By: Vikas MishraUpdated: Mon, 26 Sep 2022 07:56 AM (IST)
लखनऊ, जागरण संवाददाता। कहते हैं आप जिस क्षेत्र में जाना चाहते हैं और आपको उसमे जाकर आगे बढ़ने का अवसर मिलता है तो उसमे आम न लगाकर काम करते हैं। प्राकृति ऊर्जा में एमएसी करने वाली ऋचा ने प्रकृति के साथ मिलकर अपना स्टार्टअप शुरू किया। 2017 में जैविक खादी बनाकर ऋचा ने केवल खादी के शौकीनों का ध्यान अपनी ओर खींचा बल्कि गांधी की खादी के माध्यम से आधी आबादी को रोजगार से भी जोड़ा। इंदिरानगर में रहने वाले ऋचा पहले खुद और अब 350 से अधिक महिलाओं के साथ मिलकर जैविक खादी के कपड़े बनाती हैं। वर्तमान में ऋचा हर साल 4.5 लाख मीटर कपड़ा बनाती हैं और उनका हर साल 6.5 करोड़ का टर्नओवर है।
आठ से 15 हजार रुपये महिना कमाती हैं महिलाएंः पास उत्पादन से लेकर धागा बनाने, रंगाई और बुनाई करने और मार्केटिंग तक में महिलाएं काम करके हर महीने आठ से 15 हजार रुपये महीना कमाती थीं। ऋचा ने बताया कि 2018 में प्राकृतिक ऊर्जा में एमएससी करने के बाद इसी विषय में शोध शुरू किया है। नीदरलैंड विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इससे पहले 2015 में प्रोडक्शन ट्रेंड से बीटेक किया था। प्रेक्टिकल के दौरान कपड़ा बनाना सीखा और उसी काे आगे बढ़ाने में लग गई हूं। खादी और ग्रामोद्योग आयोग के सहयोग से काम चल पड़ा।
75.5 लाख रुपये का किया निर्यातः इटौंजा में जैविक धागा कातने का प्लांट लगाया है जिसमे गांधी के चरखे से ही धागा बनाया जाएगा है। धागा बनने के बाद बाराबंकी के बड़ा गांव मेें कपड़े की बुनाई की जाती है। ऋचा ने 2021-22 में नीदरलैंड, कैलिफोर्नियां,कनाडा, आस्ट्रेलिया व न्यूजर्सी में 75.5 लाख रुपये की कीमत के कपड़ों का निर्यात किया।
गर्मी-जाड़ा दोनों में चहनी जाती है जैविक खादीः ऋचा सक्सेना ने बताया जैविक खादी बनाने के लिए जहां कपास की खेती होती है उन खेतों को हरी खाद से तैयार करने के साथ ही उसमें रासायनिक उर्वरक का प्रयोग नहीं किया जाता। गोबर की खाद हरी खाद के अलावा केंचुए से बनने वाली जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है। उससे तैयार होने वाले कपास से धागा बनाया जाता है। धागे की रंगाई भी फूलों से बनने वाले प्राकृतिक रंगों से की जाती है । इसके बाद इसकी हथकरघा से कपड़े की बुनाई होती है। इस कपड़े की खासियत यह है कि इसे जाड़ा और गर्मी दोनों ही समय पहना जा सकता है। गर्मी में ठंड का एहसास और जाड़े में गर्मी का एहसास यह कपड़ा दिलाता है।
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