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RSS के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा- सभी भारतीयों का DNA एक, जिसका नाम है हिंदू

आरएसएस के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहता है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है तो इसका आशय यह नहीं कि संघ देश को ऐसा बनाना चाहता है। हिंदुत्व इस देश की पहचान है जिसमें सारे समाज को आलिंगनबद्ध करने की आकांक्षा है।

By Umesh TiwariEdited By: Updated: Fri, 26 Feb 2021 10:25 PM (IST)
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आरएसएस सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा भारत में रहने वाले सभी लोगों का डीएनए एक, जिसका नाम हिंदू है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोगों का डीएनए एक है। इसका नाम हिंदू है। जब बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक किया गया तो दिक्कतें हुईं। वह गुरुवार को राजधानी लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आरएसएस के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की पुस्तक 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र' के लोकार्पण समारोह को संबोधित कर रहे थे।

आरएसएस के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहता है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है तो इसका आशय यह नहीं कि संघ देश को ऐसा बनाना चाहता है। हिंदुत्व इस देश की पहचान है, जिसमें सारे समाज को आलिंगनबद्ध करने की आकांक्षा है। यह पांथिक नहीं है। स्वतंत्रता के बाद खुद को सेक्युलर कहने वालों ने इसे सांप्रदायिक कहकर संकुचित कर दिया। इस बौद्धिक सर्कस से बहुत नुकसान हुआ है। 

दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि भारत को हिंदू कहने का मतलब वैसा ही है जैसे अयोध्या को अयोध्या कहना। नाम में इतिहास, समझ और संदर्भ है। शायद इसी वजह से इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया गया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक जीवनदृष्टि और अनुभूति बताया और कहा कि यह समाज का संगठन है जिसमें सारे निर्णय सामूहिकता और सर्वसम्मति से होते हैं। इसलिए हमें गणवेश बदलने में पांच साल लग गए। संघ को किताब की परिधि में नहीं बांधा जा सकता है। संघ को समझना है तो इसकी शाखा में आइए।

इससे पहले पुस्तक के लेखक सुनील आंबेकर ने बताया कि पिछले कई वर्षों के दौरान विद्यार्थियों और विदेश में रह रहे युवाओं से संवाद-संपर्क होने पर उन्हें महसूस हुआ कि लोग भारत के धर्म, संस्कृति, इतिहास के साथ संघ के बारे में जानना चाहते हैं। यह भी अनुभव हुआ कि संघ को लेकर अज्ञानता और भ्रांतियां भी हैं। इस वजह से वह यह किताब लिखने को प्रेरित हुए जिसमें यह बताया गया है कि दूध में मिली शक्कर की तरह किस तरह संघ एक समरस समाज की रचना में तल्लीन है।

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