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Ram Lala: मुकुट में माणिक्य... पन्ना और हीरे तो चरणों के नीचे स्वर्णमाला, वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र से खास बातचीत

दैनिक जागरण के संवाददाता महेन्द्र पाण्डेय ने यतींद्र मिश्र से वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र ने की बातचीत। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अयोध्या की संस्कृति के जानकार व वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र को प्रभु श्रीरामलला के आभूषणों के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने कहा कि इन आभूषणों की परिकल्पना अध्यात्म रामायण श्रीमद्वाल्मीकि रामायण श्रीरामचरिमानस व आलवंदार स्तोत्र के अध्ययन और उनमें वर्णित श्रीराम की शोभा के अनुरूप है।

By Mahendra Pandey Edited By: Shoyeb AhmedUpdated: Wed, 24 Jan 2024 07:10 AM (IST)
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प्रभु श्रीरामलला के आभूषणों को लेकर वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र से जागरण संवाददाता ने की खास बातचीत (फाइल फोटो)

महेन्द्र पांडे, लखनऊ। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अयोध्या की संस्कृति के जानकार व वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र को प्रभु श्रीरामलला के आभूषणों के निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी थी।

वह कहते हैं कि इन आभूषणों की परिकल्पना अध्यात्म रामायण, श्रीमद्वाल्मीकि रामायण, श्रीरामचरिमानस व आलवंदार स्तोत्र के अध्ययन और उनमें वर्णित श्रीराम की शास्त्रसम्मत शोभा के अनुरूप की गई है। दैनिक जागरण के संवाददाता महेन्द्र पाण्डेय ने यतींद्र मिश्र से वरिष्ठ साहित्यकार यतींद्र मिश्र ने की बातचीत।

लोग श्रीरामलला के आपादमस्तक शृंगार का विवरण जानना चाहते हैं।

भगवान का मुकुट (किरीट)उत्तर भारतीय परंपरा में स्वर्ण निर्मित है, जिसमें माणिक्य, पन्ना और हीरों से अलंकरण है। मुकुट के ठीक मध्य में भगवान सूर्य हैं। कुंडल में सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से मयूर आकृतियां बनी हैं। गले में अर्द्धचंद्राकार रत्नों से जड़ित कंठा सुशोभित है, जिसमें मंगल का विधान रचते पुष्प और मध्य में सूर्यदेव हैं। कंठे के नीचे पन्ने की लड़ियां लगाई गई हैं।

हृदय में कौस्तुभमणि का धारण कराया गया है, जिसे एक बड़े माणिक्य और हीरों के अलंकरण से सजाया गया है। भगवान विष्णु व उनके अवतार हृदय में कौस्तुभ मणि धारण करते हैं। मस्तक पर पारंपरिक मंगल-तिलक हीरे और माणिक्य से रचा गया है। भगवान के प्रभा मंडल पर सोने का छत्र है। गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला है, जिसे हस्तशिल्प के लिए समर्पित शिल्प मंजरी संस्था ने तैयार किया है।

भगवान के पहनाए गए हार में भी विशिष्टता झलकती है?

कंठ से नीचे व नाभिकमल से ऊपर पदिक पहनाया गया है। यह हीरे और पन्ने का पांच लड़ियों वाला है, जिसके नीचे एक बड़ा सा अलंकृत पेंडेंट है। उनके लिए बने सोने के हार वैजयंती (विजयमाल) में माणिक्य लगे हैं। वैजयंती विजय का प्रतीक है।

इसमें वैष्णव परंपरा के समस्त मंगल चिह्न- सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल कलश को दर्शाया गया है। पांच प्रकार के पुष्पों कमल, चंपा, पारिजात, कुंद और तुलसी का भी अलंकरण है। भगवान के कमर में रत्नजड़ित करधनी है। पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पांच घंटियां भी इसमें लगी हैं। इन घंटियों से मोती, माणिक्य और पन्ने की लड़ियां भी लटक रही हैं।

भुजबंद का श्रंगार?

दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित भुजबंध पहनाए गए हैं। रत्नजड़ित सुंदर कंगन और मुद्रिकाएं सुशोभित हैं, जिनमें से मोतियां लटक रही हैं। भगवान के बाएं हाथ में सोने का धनुष है, जिसमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकनें लगी हैं। दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है।

चरणों का श्रृंगार विशेष रूप से किया जाता है?

भगवान के पैरों में रत्नजड़ित हीरे और माणिक्य जड़े छड़ेहैं। साथ ही सोने की पैजनियां हैं। चरणों के नीचे सुसज्जित कमल व स्वर्णमाला है।

ये आभूषण किस परिकल्पना और शोध के आधार पर तैयार किए गए हैं?

भगवान के श्रीविग्रह का चयन होने के बाद आभूषणों की अवधारणा पर काम किया गया। इनका निर्माण अंकुर आनंद के संस्थान हरसहायमल श्यामलाल ज्वैलर्स, लखनऊ के 132 कारीगरों ने मात्र 15 दिन में किया है।

भगवान के खेलने के लिए किन-किन खिलौनों को रखा गया है?

राम लला पांच वर्ष के बालक रूप में विराजे हैं, इसलिए पारंपरिक ढंग से उनके सम्मुख खेलने के लिए चांदी से निर्मित खिलौने झुनझुना, हाथी, घोड़ा, ऊंट, खिलौनागाड़ी आदि रखे गए हैं।

भगवान के वस्त्र के बारे में भी बताएं। इन्हें किसने तैयार किया है?

सनातन परंपरा के अनुसार मंगल अनुष्ठानों में पीला और लाल रंग का विशेष अभिप्राय है। श्रीराम पीतांबर धारण करते हैं और लाल सूर्यवंशी होने का प्रतीक है। श्रीरामलला बनारसी जरी की पीतांबर धोती, लाल रंग के पटुके व कमरबंध में सुशोभित हैं। इन वस्त्रों पर असली सोने के जरी और तारों से काम किया गया है, जिनमें वैष्णव मंगल चिह्न- शंख, पद्म, चक्र और मयूर अंकित हैं।

इन वस्त्रों का निर्माण दिल्ली के वस्त्र सज्जाकार मनीष त्रिपाठी ने श्री अयोध्याधाम में रहकर किया है। ये आभूषण प्राण प्रतिष्ठा उत्सव और विशेष पर्व के दृष्टिगत तैयार किए गए हैं। सामान्य दिनों में पहनने के लिए आभूषण तैयार कराए जा रहे हैं।

जब प्रभु का प्राकट्य हो रहा था तब कौन सी मंगल ध्वनि बजाई गई थी?

जब प्रभु का प्राकट्य हो रहा था तब पायोजी मैंने राम रतन धन पायो... व रघुपति राघव राजाराम... की धुन बजी। आरती के समय श्रीराम चंद्र कृपालु भजमन... की धुन बजाई गई। मंगल का वातावरण रचने वाले बहुत से राग हैं। उनमें हमने देश, सारंग, बहार आदि का चयन किया था। सभी गायकों ने बिना पारिश्रमिक लिए भागीदारी की।

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आपने मंगल ध्वनि की अवधारणा भी रखी थी। इसकी विशिष्टता क्या है?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच ‘सबका साथ सबका विकास’ व संपूर्ण भारतवर्ष को एक सूत्र में जोड़ने के संदेश को ध्यान में रखते हुए मैंने मंगल ध्वनि की अवधारणा रखी। भगवान राम सबके हैं इसलिए देश के प्रत्येक राज्य के प्राचीन वाद्यों व उनके उत्कृष्ट कलाकारों के चयन की प्रक्रिया अपनाई गई। पूरे कार्य में तीन महीने लगे। इसमें केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष संध्या पुरेचा ने सहयोग किया।

मंगल ध्वनि में श्रीराम के सर्व समावेशी चरित्र का विशेष ध्यान रखा गया। मंगल ध्वनि का आरंभ राम का गुणगान करिए... से होते हुए ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया..., लक्ष्मणाचार्य का भजन रघुपति राघव राजा राम..., तुलसीदास जी का श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन और मीरा बाई का पायोजी मैंने राम रतन धन पायो... के अतिरिक्त श्रीराम चरित मानस की चौपाइयों वादन व गायन से हुआ।

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