UP: साहिबजादा दिवस मनाएगी योगी सरकार, सीएम आवास पर गूंजेगी गुरुवाणी
यह दिवस गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्रों अजीत सिंह जुझार सिंह जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत की याद में मनाया जाता है। रविवार सुबह 1130 बजे से प्रस्तावित गुरुवाणी कीर्तन में मुख्यमंत्री सहित सरकार के अन्य मंत्री और गणमान्यजन शामिल होंगे।
By Anurag GuptaEdited By: Updated: Sun, 27 Dec 2020 09:09 AM (IST)
लखनऊ, [राज्य ब्यूरो]। सबका साथ सबका विकास के राजनीतिक संकल्प और भाव के साथ ही योगी सरकार धार्मिक सद्भाव की ओर भी लगातार कदम बढ़ा रही है। यह सत्ता के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का स्पष्ट संदेश है कि अल्पसंख्यक सिख समुदाय की आस्था के पर्व और दिवस मुख्यमंत्री आवास पर मनाने की शुरुआत हुई है। पहली बार साहिबजादा दिवस भी मनाया जा रहा है। सिख समुदाय के दसवें गुरु साहिब श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के चार साहिबजादों और माता गुजरी जी की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकारी आवास पर साहिबजादा दिवस का आयोजन किया जा रहा है।
यह दिवस गुरु गोविंद सिंह जी के चार पुत्रों अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह की शहादत की याद में मनाया जाता है। रविवार सुबह 11:30 बजे से प्रस्तावित गुरुवाणी कीर्तन में मुख्यमंत्री सहित सरकार के अन्य मंत्री और गणमान्यजन शामिल होंगे। उल्लेखनीय है कि साहिबजादा दिवस की तरह ही इससे पहले गुरुनानक देव के 550वें प्रकाशोत्सव पर मुख्यमंत्री आवास पर गुरुवाणी कीर्तन व लंगर का आयोजन किया गया था। इसमें योगी समेत प्रदेश के कई कैबिनेट मंत्री मौजूद रहे थे। तब सिख समुदाय के 200 से 250 लोगों ने लंगर व प्रसाद ग्रहण किया था।
इसलिए मनाते हैं साहिबजादा दिवस
26 दिसंबर 1704 में गुरुगोबिंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया। साहिबजादों की शहादत धर्म को बचाने के लिए की गई। फतेहगढ़ साहिब मे गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को दीवार में सिर्फ इसलिए चिनवा दिया गया कि उन्होंने अपना धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म नहीं अपनाया। सरहिंद पर वो पुण्य भूमि थी जहांं कण-कण से आवाज़ आती थी कि "सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं"।
नौकर गंगू ने लालच के कारण वजीर खां से मुखबिरी की जिससे उन्हें गिरफ्तार कर ठंडे बुर्ज में रखा गया कि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें।पर जीदार बच्चों ने जोर से जयकारा लगा दिया"जो बोले सो निहाल,सत श्री अकाल"। फिर जब उन्हें सलामी के लिए कहा गया तो भी उन्होंने जबाब दिया कि "हम अकाल पुरख और अपने गुरु,पिता के अलावा अन्य किसी के आगे सर नहीं झुकाते।"जिससे क्रोधित हो उन्हें जीवित ही दीवार मे चुनना शुरू किया गया।साथ ही साहिबजादों ने 'जपु जी साहिब' का पाठ करना शुरू किया। दीवार पूरी हुई और अंदर से जयकारे की आवाज़ आयी।दीवार तोड़ी गयी। बच्चे जिंदा थे और मुगलों का क़हर बाक़ी। जबरन साहिबजादों को मार दिया गया। उधर साहिबजादों के शहीद होने की ख़बर सुन कर माता गुजरी जी ने अकाल पुरख को इस गर्वमयी शहादत के लिए आभार किया और प्राण त्याग दिए।
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