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मजबूती के मामले में बेम‍िसाल है साल की लकड़ी, अफ्रीका से जुड़ी हैं 10.2 करोड़ वर्ष पुराने इस वृक्ष की जड़ें

राजस्थान और गुजरात जैसे भारत के पश्चिमी हिस्सों से प्राप्त इस 5.5 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्मीकृत पराग की पड़ताल से पता चला कि इस वृक्ष की प्रजातियों की संतति अफ्रीका में 10.2 करोड़ वर्ष पूर्व आरंभ हुई थी। यह वह काल था जब डायनासोर भी जीवित थे।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Fri, 18 Feb 2022 03:26 PM (IST)
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बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के शोधार्थियों ने सुलझाई गुत्थी।

लखनऊ, [रामांशी मिश्रा]। मजबूती के मामले में साल की लकड़ी बेमिसाल मानी जाती है। यही कारण है कि फर्नीचर से लेकर इमारत और जहाज बनाने तक में इसका प्रयोग किया जाता है। भारत के तमाम हिस्सों में साल के पेड़ बहुतायत में पाया जाते हैं, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि इस वृक्ष की उत्पत्ति भारतीय भूमि पर नहीं हुई, बल्कि इसके अस्तित्व की जड़ें अफ्रीका महाद्वीप से जुड़ी हैं। साल वृक्ष की उत्पत्ति और विकास से जुड़ी लंबे समय से चली आ रही बहस पर बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआइपी) के शोधार्थियों ने विराम लगा दिया है।

बीएसआइपी की निदेशक प्रो. वंदना प्रसाद, उनकी रिसर्च स्कालर माही बंसल, यूके के पेलिनोवा से प्रो. रोबर्ट जे मोरले, आइआइटी मुंबई से प्रो. सूर्येन्दु दत्ता और द नेचर कंजर्वेन्सी (टीएनसी) दिल्ली से डा. शिव प्रकाश समेत देश-विदेश के दर्जनों शोधार्थियों की निरंतर मेहनत के परिणाम से साल वृक्ष से जुड़ी गुत्थी सुलझ पाई है। शोधार्थियों ने 5.5 करोड़ वर्ष पुराना एक जीवाश्मीकृत पराग खोज निकाला, जिसमें पुष्टि हुई कि शोरिया रोबस्टा विज्ञानी नाम वाले साल वृक्ष की प्रजाति सबसे पहले अफ्रीका में ही पनपी थी। राजस्थान और गुजरात जैसे भारत के पश्चिमी हिस्सों से प्राप्त इस 5.5 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्मीकृत पराग की पड़ताल से पता चला कि इस वृक्ष की प्रजातियों की संतति अफ्रीका में 10.2 करोड़ वर्ष पूर्व आरंभ हुई थी। यह वह काल था जब डायनासोर भी जीवित थे।

प्रो. वंदना प्रसाद इस उपलब्धि पर कहती हैं कि हमारे संस्थान में इवोल्यूशन (उत्पत्ति) से लेकर जलवायु परिवर्तन तक के कई पहलुओं पर शोध किया जाता है। साल वृक्ष पर हुआ यह शोध न केवल इस पहलू को पुष्ट करता है कि अरबों वर्ष पहले भी भारत और अफ्रीका में तमाम पादप समानताएं थीं, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन को समझने में भी महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। बीएसआइपी का यह शोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित जर्नल 'साइंस' में भी प्रकाशित हुआ है।

विलुप्त होती प्रजातियों को आश्रय देते साल : शोधार्थी माही बंसल ने कहा कि आखिर यह कल्पना किसने की होगी कि विशेष रूप से भारत में पाए जाने वाले साल वृक्ष की उत्पत्ति समंदर पार अफ्रीका में हुई होगी। उन्होंने बताया कि साल वृक्ष परिवार का अपना आर्थिक और चिकित्सीय महत्व है। वर्तमान में दक्षिण पूर्व एशियाई वर्षा वनों में साल के वृक्षों की बहुतायत है, जो हाथियों, गैंडों और वनमानुषों की विलुप्त होती प्रजातियों को आश्रय एवं भोजन प्रदान करते हैं।

जीवाश्म राल और आनुवंशिक डीएनए से कराया मेल : शोधार्थियों ने गुजरात और राजस्थान से जहां 5.5 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्मीकृत पराग खोजा तो उन्हें उत्तरी अफ्रीका से 6.85 करोड़ वर्ष पुराना साल परिवार से संबंधित पराग मिला। फिर इस साक्ष्य का जीवाश्म राल और आनुवंशिक डीएनए से मेल कराकर साल की उत्पत्ति और विकास का पता लगाया गया। इस पर माही का कहना है कि अफ्रीका में जब साल संतति उभार ले रही थी तब भारत गोलाद्र्ध दक्षिणी हिस्से में मकर रेखा के निकट स्थित था, जहां साल के विकास के लिए अनुकूल जलवायु परिवेश नहीं था।

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