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UP Politics: सपा ने जातियों का गुलदस्ता तो बनाया, लेकिन आधार वोट भी होगा संभालना; क्‍या हैं आगे की चुनौत‍ियां?

अखिलेश यादव ने चुनाव से कई महीने पहले ही जब पीडीए फार्मूले के सहारे आगे बढ़ने की रणनीति तय की थी तो पिछड़े उनके साथ रहेंगे या नहीं इसको लेकर असमंजस की स्थिति थी क्योंकि भाजपा का भी खास फोकस पिछड़ों पर ही था। लेकिन अखि‍लेश ने इस फार्मूले से सफलता हासिल की। लेकिन विधानसभा चुनाव तक अपने आधार वोट को संभाले रखना सपा लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

By Jagran News Edited By: Vinay Saxena Published: Thu, 27 Jun 2024 08:45 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2024 08:45 PM (IST)
समाजवादी पार्टी के अध्‍यक्ष और कन्नौज सांसद अखि‍लेश यादव।- फाइल फोटो

शोभित श्रीवास्तव, विशेष संवाददाता, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम ने एक बार फिर साबित किया है कि यहां जातियों की राजनीति की अनदेखी नहीं की जा सकती और जो पार्टी इसके समीकरण को समझ लेगी, उसे लाभ मिलेगा ही। यहां के चुनाव परिणाम इसलिए भी चौंकाने वाले रहे कि समाजवादी पार्टी ने सोशल इंजनीयर‍िंग की तर्ज पर जातियों का जो गुलदस्ता तैयार किया, वह उसकी मजबूती का नैरेटिव देने में सफल रहा।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव से कई माह पहले ही जब 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले के सहारे आगे बढ़ने की रणनीति तय की थी तो पिछड़े उनके साथ रहेंगे या नहीं, इसको लेकर असमंजस की स्थिति थी, क्योंकि भाजपा का भी खास फोकस पिछड़ों पर ही था। लेकिन, टिकट बंटवारे में बुद्धिमानी का परिचय देते हुए उन्होंने इस फार्मूले को विश्वसनीय बनाने में सफलता हासिल कर ली और यही जीत का आधार भी बना।

लोकसभा चुनाव में म‍िला लाभ 

लोकसभा चुनाव में उन्हें इसका लाभ मिला है। लेकिन विधानसभा चुनाव तक अपने आधार वोट को संभाले रखना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यादव मतों पर भाजपा की भी निगाह है। चुनावी च‍िंतन की आखिरी किस्त में आज पढ़िए समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में किस तरह शानदार सफलता हासिल की और इसकी आगे की चुनौतियां क्या हैं।

मुलायम का 'एमवाई' समीकरण हुआ था कामयाब  

यूपी की राजनीति में एक समय ऐसा भी था जब सपा संस्थापक मुलायम स‍िंह यादव का 'एमवाई' (मुस्लिम, यादव) समीकरण बेहद कामयाब हुआ था, लेक‍िन आज की बदली हुई राजनीति में केवल इन दोनों वोट बैंक के सहारे सपा की साइकिल को रफ्तार मिलना संभव नहीं था। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे अच्छी तरह समझते हुए अपने वोट बैंक में दूसरी जातियों को जोड़ने के लिए 'पीडीए' रणनीति पर काम किया। यूं तो उन्होंने इसकी शुरुआत 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन के साथ की थी। इस गठबंधन में मायावती की सीटें तो शून्य से बढ़कर 10 पर पहुंच गई थीं, लेक‍िन सपा को कोई फायदा नहीं हुआ था। उसकी सीटें 2014 की तरह 2019 में भी पांच ही रह गई थीं।

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जातियों की राजनीति करने वाली सुभासपा, महान दल व अपना दल कमेरावादी जैसे दलों के साथ समझौता कर चुनाव लड़ा। सपा जब गैर यादव पिछड़ी जातियों व दलित मतदाताओं को फोकस करते हुए मैदान में उतरी तो उसे इसके सुखद परिणाम भी मिले। इस बार के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने पीडीए की नई 'सोशल इंजीनियर‍िंग' के जरिए राजनीति में जातियों का नया गुलदस्ता तैयार कर दिया है। इसका लाभ 37 सीटों पर जीत के रूप में मिला।यह चुनाव अखिलेश के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस बार सपा संस्थापक मुलायम स‍िंह यादव नहीं थे।

2012 व‍िधानसभा चुनाव मुलायम के चेहरे पर जीता   

वर्ष 2012 का विधानसभा चुनाव सपा ने मुलायम के चेहरे पर जीता था। मुलायम ने चुनाव जीतने के बाद पार्टी में तमाम विरोधों के बावजूद अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया था। इसके बाद 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 का विधानसभा चुनाव या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव किसी में सपा कोई कमाल नहीं दिखा पाई। ऐसे में अखिलेश के सामने खुद को साबित करने की चुनौती भी थी। इस चुनाव में उन्होंने जिस तरह से कांग्रेस को साथ रखते हुए अपना रणनीतिक कौशल दिखाया, उससे यह साबित हो गया कि वह अब राजनीति के माहिर खिलाड़ी बन गए हैं।

जात‍ियां में बंटी हुई है यूपी की राज‍नीत‍ि

लखनऊ विश्वविद्यालय राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एसके द्विवेदी कहते हैं कि यूपी की राजनीति जातियों में बंटी हुई है। यही कारण है कि इस बार सपा का पीडीए काम कर गया। हालांकि वह ये भी कहते हैं जातियों का इस तरह का गठजोड़ स्थायी नहीं होता है। सपा को अपने इस वोट बैंक को संभालने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी।पल-पल समीकरण बदलती यूपी की राजनीति में सपा के लिए पीडीए के साथ अपना आधार वोट संभालना भी बड़ी चुनौती है।

यादव वोट बैंक पर भाजपा की नजर 

भाजपा की नजर लगातार सपा के सबसे मजबूत यादव वोट बैंक पर है। यही वजह है कि भाजपा ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया और उनसे यूपी में खासकर यादवों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में खूब प्रचार कराया। भले ही इस चुनाव में मोहन की बांसुरी कोई कमाल नहीं दिखा सकी, लेक‍िन वह भविष्य में प्रभावी हो सकते हैं, क्योंकि सपा में गैर यादव जातियों को ज्यादा तवज्जो मिलने से यादवों में भी नाराजगी की चर्चाएं अब शुरू हो गई हैं। इसका कारण यह भी है कि लोकसभा चुनाव में केवल मुलायम स‍िंह यादव परिवार के ही पांच सदस्यों को टिकट दिया गया। परिवार के बाहर यादव समाज के एक भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया गया है।

दल‍ित समुदाय को सहेज कर रखना सपा के ल‍िए नहीं आसान

पीडीए में जिस दलित समुदाय के साइकिल पर चढ़ जाने से उसकी रफ्तार तेज हुई है, उसे सहेज कर रखना भी सपा के लिए आसान नहीं है। इसका मुख्य कारण पार्टी के भीतर कोई मजबूत दलित चेहरा न होना है। हालांकि, अखिलेश फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद को लगातार आगे बढ़ाकर पार्टी की इस कमी को पूरा करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

बसपा को नए स‍िर से मजबूूत करने की कोशि‍श में मायावती  

उधर, बसपा प्रमुख मायावती पार्टी को नए सिरे से मजबूत करने की कोशिश करेंगी। इसीलिए उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को फिर सक्रिय किया है। सेंटर फार आब्जेक्टिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट के निदेशक अतहर सिद्दीकी कहते हैं कि सपा ने 'संविधान खतरे में है' नारा देकर व सामाजिक न्याय दिलाने के नाम पर दलितों का वोट तो ले लिया, लेक‍िन अब उसे सामाजिक न्याय दिलाना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी। ग्रामीण इलाकों में कई बार सपा समर्थक दलितों का उत्पीड़न करते हैं। इसे भी पार्टी को तत्काल रोकना होगा। ऐसा न हुआ तो दलित उससे छिटक जाएगा।

सीएम योगी के सामने कौन होगा नेता प्रत‍िपक्ष का चेहरा? 

सपा को वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए यहां पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने किसी दमदार चेहरे को नेता प्रतिपक्ष बनाना होगा। प्रदेश अध्यक्ष रहे नरेश उत्तम पटेल भी अब सांसद बन गए हैं। उनका संगठन व सरकार में लंबा अनुभव रहा है। चुनाव के दौरान ही प्रदेश अध्यक्ष बने श्याम लाल पाल अभी नए हैं। उन्हें संगठन को चुस्त दुरुस्त रखने के साथ ही नई व पुरानी पीढ़ी के नेताओं को जोड़कर रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

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