'साक्ष्य दें तो राजनीति से दूर हो जाऊंगा', संजय निषाद की खुली चुनौती; आरोप लगाने वाले पर किया कटाक्ष- अंगूर खट्टे हैं
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने विधानसभा उपचुनाव में टिकट दिलाने के नाम पर 10 लाख रुपये लेने के आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा कि जिसके पास कोई सबूत हो वह सामने लाए नहीं तो वह राजनीति छोड़ देंगे। उन्होंने आरोप लगाने वाले हरीशंकर बिंद पर भी निशाना साधा और कहा कि उन्हें अंगूर नहीं मिल रहे हैं इसलिए वे खट्टे हो रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। विधानसभा उपचुनाव में टिकट दिलाने के नाम पर निषाद पार्टी के अध्यक्ष व मत्स्य विभाग के मंत्री डा. संजय कुमार निषाद के ऊपर 10 लाख रुपये लेने के आरोप का उन्होंने शनिवार को पलटवार किया। मंत्री ने कहा कि जिसके पास कोई साक्ष्य हो मेरे सामने ले आए मैं राजनीति से दूर हो जाऊंगा।
आरोप लगाने वाले हरीशंकर बिंद पर कटाक्ष करते हुए बोले कि , जिसको अंगूर नहीं मिलते हैं तो वह खट्टे होते हैं। टिकट देना भाजपा का काम है। आरोप लगाने वाले ने फूलन देवी की संपत्ति पर कब्जा कर लिया है। सपा सरकार में उसने नौकरी दिलाने के नाम पर निषाद व बिंद समाज के युवकों से रुपये वसूले थे।
'हम प्रत्याशी देते हैं और टिकट भाजपा देती है'
मत्स्य निदेशालय में मत्स्य पालन के विकास पर आयोजित कार्यशाला में मंत्री ने यह भी कहा कि आरोप लगाने वाले को टिकट नहीं मिलने पर भाजपा से पूछना चाहिए। हम प्रत्याशी देते हैं और टिकट भाजपा देती है। आरोप लगाने वाले बिंद कभी भी निषाद पार्टी में नहीं रहे हैं।उन्होंने कहा कि सपा बिंद और निषाद को भाजपा व डा. संजय निषाद से तोड़ना चाहती है। सपा के स्टार प्रचारकों की सूची पर बोले कि इससे कुछ नहीं होगा। सभी बूथों पर निषाद पार्टी का भाजपा के के साथ बेहतर समन्वय है। निषाद समाज का कटेहरी, मझवां, फूलपुर और कुंदरकी सहित छह सीटों पर अधिक प्रभाव है।
उपचुनाव में एक भी सीट न मिलने पर कहा कि हम लोग खेवनहार हैं। हम सीट के लिए नहीं, निषादों के संवैधानिक हितोें की रक्षा के लिए है। समाज के लिए दो सीट की कुर्बानी दी है। निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार दीपावली के बाद बैठक करने जा रही है।
कार्यशाला में जलाशयों से अधिकतम मत्स्य उत्पादन करने के लिए केज कल्चर तकनीक का उपयोग करने की जानकारी केंद्रीय अंतरस्थलीय मात्स्यिकी शोध संस्थान(सीआइएफआरआइ) के निदेशक डा. बीके दास ने दी। कार्यशाला में अधिकारियों ने सजावटी मछली उत्पादन की आर्थिकी एवं उससे प्राप्त होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दी गई।
कहा कि गंगा, यमुना, चम्बल, बेतवा, गोमती, घाघरा एवं राप्ती सहित कई नदियों के किनारे मछुआ समुदाय की घनी आबादी निवास करती है। जो आजीविका के लिए मुख्य रूप से मत्स्य पालन, मत्स्याखेट एवं मत्स्य विपणन के कार्यों पर निर्भर है। जलाशयों में स्थापित केजों में पंगेशियस और गिफ्ट तिलपिया का पालन करते हुए उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।
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