Sita-Ram Vivah Utsav in Ayodhya: विवाहोत्सव के साथ प्रतिपादित होती है सीता-राम की अभिन्नता
Sita-Ram Vivah Utsav in Ayodhya रामनगरी में पूरी शिद्दत से शिरोधार्य है श्रीराम और उनकी चिर सहचरी की अभिन्नता। अगहन शुक्ल पक्ष की पंचमी को रामलला की जन्मभूमि के साथ मां सीता की जन्मभूमि मिथिला के रंग से भी रोशन होती है रामनगरी।
By Divyansh RastogiEdited By: Updated: Sat, 19 Dec 2020 08:19 AM (IST)
अयोध्या [रघुवरशरण]। Sita-Ram Vivah Utsav in Ayodhya: भव्य-दिव्य मंदिर निर्माण की तैयारियों के बीच फलक पर छाए रामलला के बारे में यह जानना रोचक है कि वे महज अपनी जन्मभूमि पर अकेले विराजमान हैं। रामनगरी के अन्य हजारों मंदिरों में उनके साथ उनकी चिर सहचरी सीता का विग्रह अनिवार्य रूप से प्रतिष्ठित है। वस्तुत: मां सीता और भगवान राम में अभिन्नता प्रतिपादित है। रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ रामचरितमानस में यह अभिन्नता इस तरह वर्णित है, गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
यानी भगवान राम एवं मां सीता उसी तरह परस्पर अभिन्न हैं, जैसे वाणी और उसका अर्थ तथा जल और जल की लहर। कहने में तो यह अलग-अलग हैं, पर वास्तव में वे एक हैं। सीता-राम विवाहोत्सव के मौके पर अभिन्नता की यह विरासत पूरी शिद्दत से शिरोधार्य होती है। उत्सव की इस बेला में अयोध्या अकेले अयोध्या ही नहीं रहती बल्कि वह रामलला की जन्मभूमि के साथ मां सीता की जन्मभूमि मिथिला के रंग से भी रोशन होती है। रामनगरी का यह चरित्र उसकी आत्मा-अस्मिता में अधिष्ठित है। भगवान राम एवं सीता का अस्तित्व अनादि माना जाता है।
शास्त्रों में यदि भगवान राम चराचर के नियंता, परात्पर ब्रह्म और अखंड ब्रह्मांड नायक के तौर पर वर्णित हैं, तो मां सीता सृष्टि की अधिष्ठात्री के तौर पर पूजित-प्रतिष्ठित हैं। रामचरितमानस के वंदना प्रसंग में मां सीता का परिचय प्रस्तुत करते हुए गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं- उछ्वव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम् सर्व श्रेयस्करीं सीतां नतोहं रामवल्लभाम्। यानी जो सारे संसार की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करने वाली हैं। क्लेश हरने वाली हैं, संपूर्ण मंगल को करने वाली हैं। राम जी की प्रिय ऐसी सीता को हम प्रणाम करते हैं। भगवान राम की उपासना का कोई भी संप्रदाय-उप संप्रदाय हो। मां सीता सभी में पूज्य हैं, पर रामानुरागियों के कुछ उप संप्रदाय ऐसे हैं, जिसमें मां सीता के प्रति अपूर्व अनुराग परिलक्षित है।
रसिक उपासना परंपरा इनमें प्रमुख है। इस परंपरा के रामनगरी में शताधिक मंदिर हैं। इस परंपरा के उपासक सीता की सखि के भाव से श्रीराम की उपासना करते हैं। हालांकि आराध्य-आराध्या के विवाहोत्सव की रस्म नगरी के सैकड़ों मंदिरों में संपादित होती है। इस क्रम में उन कर्मकांडों और रीति-रिवाजों की पूरे भाव-चाव से पुनरावृत्ति की जाती है, जैसा त्रेता में भगवान राम एवं सीता के विवाह के अवसर पर जनक-जानकी की नगरी मिथिला में हुआ होगा। ...तो राम बरात भी निकलती है। उसी भावधारा से स्फुरित होकर, जैसी युगों पूर्व निकली होगी।
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