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व‍िश्व पुस्तक दिवस : बाल साहित्य से नैतिकता का सृजन

रंग-बिरंगी किताबों में सच्चाई साहस बलिदान और परिश्रम जैसे जीवन मूल्यों का समावेश। कंप्यूटर मोबाइल व गैजेट्स के बीच बच्चों की किताबों से दोस्ती कराने की चुनौती।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Wed, 24 Apr 2019 04:22 PM (IST)
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व‍िश्व पुस्तक दिवस : बाल साहित्य से नैतिकता का सृजन

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। 'पंचतंत्र' में पशु-पक्षियों के जरिए नैतिक शिक्षा की कहानी जिसने भी पढ़ी, ताउम्र याद रही। बाल साहित्य के रूप में रंग-बिरंगी किताबों में सच्चाई, साहस, बलिदान और परिश्रम जैसे जीवन मूल्यों का समावेश होता है। रहस्य और रोमांच से भरी नैतिकता का सृजन करतीं ये किताबें जीवन की सच्चाइयों से भी परिचय कराती हैं। कंप्यूटर, मोबाइल व गैजेट्स के बीच आज बच्चों का पुस्तकों से साथ छूटता जा रहा है। यही दूरी तमाम दुष्परिणामों के रूप में सामने आ रही है। 

मुंशी प्रेमचंद द्वारा बाल साहित्य के लिए किया गया योगदान अतुलनीय है। वरिष्ठ साहित्यकार अमृत लाल नागर द्वारा भी श्रेष्ठ बाल-साहित्य का सृजन किया गया था, जो काफी लोकप्रिय भी हुआ। लिखने वाले लोग उत्कृष्ट थे तो पढऩे वालों की भी कोई कमी नहीं थी। आज बाल-साहित्यकार का ठप्पा लगने से बचने के कारण अधिकांश वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा बाल-साहित्य से मुंह मोड़ लिया गया है। यह स्थित‍ि चिंतनीय है। यदि देश के भावी कर्णधारों को अच्छा साहित्य उपलब्ध करवाना है तो वरिष्ठ साहित्यकारों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए करता प्रेरित 

लेखनी के जरिए बच्चों में अच्छे संस्कारों के बीज बो रहे संजीव जायसवाल 'संजय' बाल साहित्य को सशक्त माध्यम मानते हैं। वह कहते हैं, इसके जरिए हम बच्चों को न केवल उनके इतिहास से परिचित करवा सकते हैं, बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं। संजीव जायसवाल 1981 में आरडीएसओ में नौकरी लगने पर लखीमपुर से लखनऊ आए। यहां की तहजीब और सांस्कृतिक विरासत अंतर्मन में ऐसी रची-बसी की लखनऊ के ही होकर रह गए। कुछ दिनों पूर्व आरडीएसओ से निदेशक के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्णतया बाल साहित्य लेखन में सक्रिय हैं। 

वह कहते हैं, बाल साहित्य लेखन और पठन की मौजूदा स्थिति चिंतनीय है। इसका दोष प्राय: सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता के सिर मढ़ा जाता है किंतु इसके लिए वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा बाल-साहित्य के प्रति रखे जाने वाला दोयम दर्जे का भाव भी कम उत्तरदायी नहीं है। हमें पुराने कालखंड में लौटना होगा। हम लोगों के बचपन में हर घर में अनेकों पत्र-पत्रिकाएं आती थीं, जिन्हें बच्चे-बूढ़े सभी बहुत चाव से पढ़ते थे। वहीं आज पत्रिकाओं पर खर्च करना हमारी प्राथमिकता में नहीं रहा। 

संजीव जायसवाल को बाल साहित्य के लिए उप्र हिंदी संस्थान द्वारा सूर पुरस्कार, अमृत लाल नागर कथा सम्मान और पंडित सोहन लाल द्विवेदी सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा दो बार भारतेन्दु हरीशचंद्र सम्मान प्रदान किया गया है। 

कुछ कृतियां : 

बाल उपन्यास : लाल बंगला, ऑपरेशन डम-डम डिगा-डिगा, हवेली, खजाने की खोज, बीस करोड़ के हीरे आदि। 

बाल कहानी संग्रह : रंग-बिरंगी कहानियां, फूलों की राजकुमारी, साहसिक कथाएं, जादुई कहानियां आदि। 

चित्रकथाएं : बादल, सूरज का गुस्सा, चंदा मामा, टूटा पंख, आम का पेड़ आदि। चित्रकथा 'वह हंस दियाÓ अब तक विश्व की 62 भाषाओं में अनुदित हो चुकी है। किशोरवय के पर्यावरण संरक्षण पर आधारित उपन्यास 'होगी जीत हमारी' का भारत सरकार द्वारा 14 भाषाओं में अनुवाद करवाया जा रहा है। 

नैतिक गुणों का विकास करने में सहायक 

बच्चों को सुनाने के लिए रोज एक नई कहानी रचने के साथ नीलम राकेश के बाल साहित्य लेखन की यात्रा शुरू हुई। महाराष्ट्र सरकार द्वारा कक्षा छह की पाठ्य पुस्तक के लिए इनकी कहानी 'चारुप्रिया का चमत्कार' का चयन भी किया गया है। 2016 में ह‍िंंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य के लिए सुभद्रा कुमारी चौहान स्मृति सम्मान भी मिला। ह‍िंंदी बाल साहित्य में लेखन और पठन की मौजूदा स्थिति पर वह कहती हैं, यह हमारे अग्रज साहित्यकारों के अथक प्रयास का ही नतीजा है कि बाल साहित्य आज मुख्यधारा में खड़ा दिखता है।

काफी लोग बाल साहित्य लिख रहे हैं, पर प्रश्न उठता है कि हम क्या लिख रहे हैं? क्या बच्चों को जो साहित्य दिया जाना चाहिए क्या हम वो लिख रहे हैं ? हम सभी बाल साहित्यकारों को आत्ममंथन की आवश्यकता दिखाई देती है। वहीं दूसरी ओर बाल साहित्य को पढऩे वालों की संख्या कम है। इस दिशा में निश्चित रूप से प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। बच्चों में नैतिक गुणों का विकास करने की दिशा में बाल साहित्य कारगर है। साथ ही यह सकारात्मक नजरिया भी विकसित करता है। 

कुछ किताबें 

बाल उपन्यास : अनजाना द्वीप, यह कैसा चक्कर है? 

बाल कहानी संग्रह : अनोखी छुट्टियां, हिम्मत ने जीती बाजी, आतंकवादी और नन्हा अंकित, ठग से ठगी आदि। सुना कहानी बचपन की (ब्रेल में)। 

नाटक संग्रह : गुरुदक्षिणा (लघुकथा संग्रह), एक कदम सूरज की ओर खुला आकाश आदि। 

ब्रेल लिपित में शेरों-शायरी और गजलों का तोहफा   

दृष्टिबाधितों तक पुस्तकों के रूप में रोहित कुमार मीत खुशियां बांट रहे हैं। 2007 के एक वाकये का जिक्र करते हुए बताया, एक बार ट्रेन से दिल्ली से लखनऊ आ रहा था। पास में कुछ किताबें थीं। एक बच्ची ने किताब मांगी। मैंने दे दिया। वह बच्ची दृष्टिबाधित पिता को किताब पढ़कर सुनाने लगी। वह किताब शेरों-शायरी की थी। पिता ने कहा, काश मैं इसे खुद पढ़ पाता। तब लगा ब्रेल में पठन-पाठन की सामग्री तो मौजूद है पर मनोरंजन के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। तभी से इस दिशा में काम का विचार आया।

रोहित बताते हैं, मीर तकी मीर, गालिब, गुलजार, जावेद अख्तर समेत तमाम शायरों की गजलों का ब्रेल लिपि में प्रकाशन करवाया है। 2012 में जगजीत सिंह की पहली पुण्यतिथि पर 'ख्वाबों का कारवां' किताब ब्रेल में प्रस्तुत की थी। तब से अब तक दो दर्जन से ज्यादा गजल संग्रह दृष्टिबाधितों तक पहुंचा चुके हैं। उप्र के साथ ही जम्मू कश्मीर, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों केदृष्टिबाधित स्कूलों तक किताबें पहुंचा चुके हैं। साथ ही नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान के सहयोग से प्रकृति शिक्षण केंद्र में दृष्टिबाधितों के लिए ब्रेल बोर्ड के जरिए वन्य जीवों की जानकारी का भी प्रबंध किया है। साथ ही ब्रेल साहित्य लाइब्रेरी भी खोली है, जिसमें वे अपने मनपसंद शायरों की गजलों और कविताओं को पढ़कर आनंद ले सकेंगे। 

ऐस  करें बच्चों को किताबें पढऩे के लिए प्रेरित 

पहले खुद शुरू करें पढऩा 

अगर अभिभावक किताबें पढ़ते दिखेंगे तो बच्चे भी प्रेरित होंगे। अपने पसंदीदा लेखक और विषय की किताब लें और पढ़ें। किताब के रोचक प्रसंगों का बच्चों से जिक्र करें। हो सकता है बच्चे आपसे प्रश्न भी करें तो उनका उत्तर जरूर दें। 

बचपन से ही डालें आदत

किताबों की दुनिया में ले जाने के पहले कदम के तौर पर एकदम छोटे बच्चों के लिए 'क्लॉथ बुक' से शुरुआत कर सकते हैं। उसके बाद 'टेक्सचर बुक', 'बोर्ड बुक्स', 'कलर बुक', 'गेम बुक' और 'वाटर प्रूफ बुक्स' आदि बच्चों को दे सकते हैं। फिर बच्चों की रुचि अनुसार समय-समय पर किताबें दें। किताबें खरीदते वक्त बच्चों को भी साथ ले जाएं तो बढिय़ा होगा। 

घर में रखें अच्छी किताबों का संग्रह

घर में अच्छी किताबों का संग्रह रखें। विविधता का विशेष ध्यान रखें। इसमें ह‍िंंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाएं हों। बुक शेल्फ या किताबें रखने की जगह ऐसी हो जिसके लिए बच्चों को ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े। 

उपहार में दें पुस्तकें

जन्मदिन या कुछ खास अवसरों पर बच्चों को अन्य उपहारों के साथ किताबें भी गिफ्ट करें। रिश्तेदारों को भी तोहफे में किताबों के लिए कहें। 

ले जाएं लाइब्रेरी

शहर की लाइब्रेरी के बारे में जानें। इनकी सदस्यता भी ले सकते हैं। सप्ताह में कम से कम एक बार बच्चों को वहां जरूर ले जाएं। अलग-अलग लेखकों की किताबें खुद भी खोजें और बच्चों को भी उनकी रुचि के अनुसार पुस्तक ढूढऩे के लिए प्रेरित करें। जब बच्चा अपने पसंद की किताब पढ़ ले उसके बाद उससे कहें कि अपने दोस्त को भी किताब पढऩे का दे। दोस्तों के बीच किताबों का आदान-प्रदान एक स्वस्थ माहौल और मानसिकता का आधार बनेगा। 

कराएं पुस्तक मेला की सैर 

समय-समय पर पुस्तक मेला लगते रहते हैं। कोशिश करें की बच्चों को वहां जरूर लेकर जाएं। बच्चों को वहां अपने पसंद की किताबें खरीदने को कहें। 

ऐस  हो छोटे बच्चों की किताब 

रंग बिरंगी किताबें बच्चों को आकर्षित करती हैं। तस्वीरों, ग्राफिक्स और रंगों से भरपूर किताबें बच्चों का ध्यान खींचती हैं। चित्रों के साथ कहानी बयां करती किताबों को बच्चे रुचि लेकर पढ़ते हैं। बच्चों की पसंद-नापसंद का ध्यान रखेंगे तो किताबें खरीदने में आसानी होगी।