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यहां मशीन नहीं, हाथों के जादू से तैयार होते हैं फर्नीचर

पूर्व राष्ट्रप्रति प्रणब मुखर्जी के हाथों मिल चुका है सम्मान। लकड़ी की नायाब मूर्ति बनाने पर 2004 में राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Tue, 27 Nov 2018 06:17 PM (IST)
यहां मशीन नहीं, हाथों के जादू से तैयार होते हैं फर्नीचर
लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। अरे! सुलेमान चचा किधर हैं? (सहारनपुर फर्नीचर के स्टॉल पर आलमबाग से आईं सुषमा ने पूछा।) वो अभी खाना खा रहे हैं। क्या हुआ? (एक कारीगर बोला) मुझे सोफा लेना है। (सुषमा) उन्हें टाइम लगेगा। आप किसी और कारीगर से मिल लीजिए। (कारीगर) नहीं मुझे उन्हीं को ऑर्डर देना है। पिछली बार बेड लेकर गए थे। मेहमान तारीफ करते नहीं थकते। कमाल का काम है उनका..। (सुषमा) संवाद चल ही रहा था कि हाथ पोछते हुए सुलेमान चचा हाजिर हुए। सुषमा उनकी ओर बढ़ीं और बोली, चचा! सोफा चाहिए, जिसमें फूल-पत्तियों की नक्काशी हो। फिर क्या था, चचा ने एक से बढ़कर एक पीस दिखाने शुरू किए। आंखों में चमक लिए सुषमा बोलीं, बस चचा इसका ऑर्डर ही ले लीजिए। पिछली बार बेड की होम डिलीवरी की थी, इस बार भी होगी ना? सुलेमान बोले, बिल्कुल होगी, आप पता नोट कराएं और कल सोफा आपके घर पर होगा..। सौदा पक्का कर सुषमा महोत्सव भ्रमण के लिए आगे बढ़ गईं। 

आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन कम सुनने वाले बुजुर्ग सुलेमान चचा में ऐसा क्या खास है। तो जान लीजिए, इन्हें पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार (एक लाख रुपये का इनाम) के साथ ही चीन में भी सम्मानित किया जा चुका है। स्टेट अवार्ड की तो गिनती ही नहीं है। लकड़ी की कंघी बनाने वाले पिता के निरक्षर बेटे सुलेमान गर्व से बोले, बेटा! डिग्री नहीं, हुनर बोलता है..।

दरअसल, महोत्सव स्थल पर गेट नंबर चार से दाखिल होते ही कुछ कदम पर उम्दा कारीगरी को समेटे सहारनपुर के फर्नीचर नजर आने लगते हैं। कारीगर की मेहनत बयां करती महीन नक्काशी ग्राहकों को बुलाने में कामयाब दिखी। कारीगर फरमान ने बताया कि फर्नीचर में हाथों का जादू होता है, मशीन का कोई काम नहीं। कारीगर सुहैल अहमद ने कहा कि नौ साल से लगातार महोत्सव आ रहे हैं।

पुश्तैनी काम ने दिलाया सम्मान

कारीगर नदीम कुरैशी को गणोश जी की लकड़ी की नायाब मूर्ति बनाने पर 2004 में राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है। कारीगर नासिर ने बताया कि 24 साल से महोत्सव में कुछ ना कुछ खास लेकर आ रहे हैं। इस बार लकड़ी का बना मूढ़ा सेट स्पेशल है।

 

ग्राहकों को लुभा रही खासियत

  • शीशम, सागौन, नीम और जंगली लकड़ी आदि से बनाया जाता है।
  • मशीन का इस्तेमाल नहीं।
  • कमाल की नक्काशी।
  • सुंदरता के साथ टिकाऊ भी है।
  • स्प्रिट में लाख दाना मिलाकर पॉलिश करते हैं।
  • मौके पर ही फिटिंग करते हैं।
  • होम डिलीवरी सुविधा भी है।
कारीगरों का दर्द भी छलका

कारीगरों ने कहा कि पिछली बार 60 हजार की पर्ची कटी थी। इस बार 71 हजार रुपये लिए गए हैं। जगह भी कम दी गई है। वहीं पानी, खाना, शौचालय आदि मूलभूत जरूरतों का भी प्रबंध नहीं है।

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