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लखनऊ के लोह‍िया संस्‍थान में शुगर का इलाज आयुर्वेद से, वर्षों से इंसुलिन ले रहे मरीजों में द‍िखा फायदा

शुगर अगर किसी को एक बार हो जाए तो वह जीवनभर परेशान करता है मगर लोहिया संस्थान के आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. एसके पांडेय ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। सिर्फ एक-दो महीने के इलाज से रोगियों का शुगर स्तर हुआ नियंत्रित।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Fri, 06 Aug 2021 03:50 PM (IST)
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लोहिया संस्थान के आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. एसके पांडेय ने जगाई उम्मीद।
धर्मेन्द्र मिश्रा, लखनऊ। विनयखंड निवासी जगजीवन लाल को 10 वर्षों से शुगर है। तीन माह पहले उनके शुगर का उच्चतम स्तर 570 व निम्नतम स्तर 349 था, मगर आयुर्वेदिक उपचार से यह क्रमश: 220 व 130 पर आ गया है। अंग्र्रेजी दवा व इंसुलिन की डोज भी बंद हो गई है। वहीं अंबेडकरनगर निवासी अशोक मिश्रा करीब पांच वर्षों से शुगर से परेशान थे। उनका उच्चतम स्तर 512 था। छह से आठ माह के उपचार से उनका शुगर 115 पर आ गया। पिछले दो वर्षों से अब उन्हें कोई भी दवा नहीं लेनी पड़ रही। राजाजीपुरम निवासी 38 वर्षीय रश्मि दुबे चार जून को आयुर्वेदिक उपचार को आई थीं। तब उनका शुगर क्रमश: 364 व 221 था। करीब डेढ़ माह के इलाज में ही अब 261 व 193 हो पर आ गया है। उन्हें अब काफी राहत है।

शुगर अगर किसी को एक बार हो जाए तो वह जीवनभर परेशान करता है, मगर लोहिया संस्थान के आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. एसके पांडेय ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। उन्होंने पांच से 10 वर्षों से इंसुलिन व अन्य अंग्र्रेजी दवाओं पर निर्भर कई मरीजों को आयुर्वेदिक उपचार से सामान्य किया है। आयुर्वेद के इस चमत्कार ने देश के हजारों शुगर रोगियों में उम्मीद की नई किरण जगा दी है।

आधा दर्जन से भी अधिक मरीज जो वर्षों से शुगर की बीमारी के चलते परेशान थे, सिर्फ कुछ माह के आयुर्वेदिक उपचार से उनका शुगर स्तर सामान्य हो गया। अब उन्हें इंसुलिन की डोज भी नहीं लेनी पड़ रही, जबकि कई मरीजों को अब उन्हें दवा तक नहीं खानी पड़ रही। इनमें से कई का शुगर स्तर चार सौ व पांच सौ से भी ऊपर पहुंच गया था।

इन आयुर्वेदिक दवाओं से हो रहा शुगर पर प्रहार

डा. एसके पांडेय ने बताया कि कालमेघ, जामुन व आम की गुठली, पुनर्नवा, गोखरू, अश्वगंधा, अर्जुन की छाल, गुड़मार इत्यादि जड़ी-बूटियों से बनी तरल औषधियां शुगर के मरीजों को दी जाती हैं। ये न सिर्फ बीमारी को ठीक करती हैं, बल्कि उसके विभिन्न अंगों पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव को भी कम करती हैं।

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