UP: स्वामी प्रसाद मौर्य ने राष्ट्रपति व पीएम को पत्र लिख रामचरितमानस की कुछ चौपाइयां हटाने की मांग की
स्वामी प्रसाद मौर्य के पवित्र ग्रन्थ रामचरितमानस पर दिए गए विवादित बयान थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। अब स्वामी प्रसाद ने राष्ट्रपति व पीएम को पत्र लिख रामचरितमानस के मुद्दे को फिर से गरमा दिया। पत्र के जरिए सपा नेता ने कुछ चौपाइयां हटाने की मांग की है।
By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj MishraUpdated: Thu, 09 Feb 2023 07:15 AM (IST)
लखनऊ, राज्य ब्यूरो। रामचरितमानस की चौपाइयों पर टिप्पणी कर चौतरफा घिरे सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने बुधवार को फिर इस मुद्दे को गरमाने का प्रयास किया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर फिर से रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को हटाने की मांग की है।
स्वामी प्रसाद ने पीएम मोदी से की मांग
मौर्य ने मोदी से कहा कि आपने भी वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में ‘नीच’ होने के, अपमान का जिक्र सार्वजनिक सभाओं में किया था। आपने कहा था कि मैं पिछड़ी जाति में पैदा हुआ हूं इसलिए पार्टी विशेष के लोग मुझे नीच कहते हैं। जब आप जैसे शीर्षस्थ नेताओं के साथ हो सकता है तो प्रतिदिन, प्रतिक्षण तुलसीदास रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों से महिलाओं व शूद्रों में आने वाले आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को सामाजिक अपमान का दंश झेलना पड़ता है। ऐसे में रामचरितमानस के आपत्तिजनक अंश हटाए जाए या फिर उनमें संशोधन किया जाए।मौर्य करीब 15 दिनों से रामचरितमानस की चौपाइयों पर लगातार टिप्पणी कर रहे हैं।
राष्ट्रपति व पीएम मोदी को पत्र लिखकर मुद्दे को धार देने की कोशिश
अब उन्होंने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर फिर इस मुद्दे को धार देने की कोशिश की है। उन्होंने लिखा कि मध्यकालीन सामंती राजसत्ता के दौर में रचे गए अवधी महाकाव्य रामचरितमानस के कुछ प्रसंगों में वर्णवादी सोच निहित है। इसकी अनेक चौपाइयों में भेदभावपरक वर्ण व्यवस्था को उचित ठहराया गया है। कुछ चौपाइयों में वर्ग विशेष की श्रेष्ठता स्थापित की गई है और शूद्रों को नीच और अधम बताया गया है। कई चौपाइयों में स्त्रियों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग हुआ है।स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिया संविधान का हवाला
संविधान का हवाला देते हुए कहा कि हमारा संविधान धर्म की स्वतंत्रता और उसके प्रचार प्रसार की अनुमति देता है। धर्म मानव कल्याण के लिए है। ईश्वर के नाम पर झूठ, पाखंड और अंधविश्वास फैलाना धर्म नहीं हो सकता है। क्या कोई धर्म अपने अनुयायियों को अपमानित या बैर करना सिखाता है। मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं, लेकिन धर्म के नाम पर फैलाई जा रही घृणा और वर्णवादी मानसिकता का विरोध करता हूं। ऐसे में पाखंड और अंधविश्वास फैलाने वाले और हिंसा प्रेरित प्रवचन करने वाले कथावाचकों के सार्वजनिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगाते हुए उन पर कानूनी कार्रवाई की जाए।
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