UP Lok Sabha Election 2024: राजनीति में रस घोलेगी गन्ने की मिठास, जानिए मुफ्त बिजली की पहल इस चुनाव में कितना डालेगी असर
गन्ना एवं चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ है। देश भर में उगाए जाने वाले गन्ने के कुल क्षेत्र में यूपी का हिस्सा 48 प्रतिशत का है और यह कुल गन्ना उत्पादन में 50 प्रतिशत का योगदान देता है। प्रदेश के 44 जिलों में 37 लाख किसानों के 2.67 करोड़ परिवारिक सदस्यों की आजीविका का मुख्य स्रोत गन्ने की खेती ही है।
गन्ने के बकाया भुगतान में सुधार। कीमतों में भी बढ़ोतरी। गन्ना बेल्ट में नाराजगी का कोई शोर नहीं। कृषक संगठन नरम हैं। विपक्ष के हाथ भी गन्ना किसानों की नाराजगी लपकने का मौका नहीं लग रहा। मौके की नजाकत देखकर गन्ना मूल्य वृद्धि को ऊंट के मुंह में जीरा बताने वाले रालोद प्रमुख जयंत चौधरी भी अब एनडीए की कश्ती पर सवार हो लिए हैं। अब सवाल यही है- क्या गन्ने की मिठास चुनावी स्वाद को बदल रही है। चीनी मिलों के सुधरे तंत्र और सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली की पहल इस चुनाव में कितना डालेगी असर, बता रहे हैं राज्य ब्यूरो के प्रमुख संवाददाता आनंद मिश्र...
उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना और इससे जुड़े किसानों का प्रभाव हमेशा से ही रहा है। प्रदेश की तीन दर्जन से अधिक सीटों पर गन्ना किसानों का दखल माना जाता है। इनमें पश्चिमी उप्र की 27 और पूर्वांचल की नौ सीटें शामिल हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में गन्ना किसानों का बकाया बड़ा मुद्दा था, जिसका प्रभाव भी देखने को मिला।पूरे राज्य में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन कुछ कमजोर आंका गया। चुनाव से मिले सबक ने बीते पांच वर्षों में बहुत कुछ बदल दिया है। भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि गन्ना किसानों की दो ही मुख्य समस्याएं हैं। समय पर चीनी मिलें चलें और गन्ने के भुगतान में विलंब न हो। 2019 की तुलना में दोनों ही स्थितियों में सुधार देखने को मिला है।
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कुछ चीनी मिलों को छोड़ दें तो गन्ना मूल्य का भुगतान भी समय पर हो रहा है। गन्ना पर्ची से जुड़ी दिक्कतें भी समाप्त हुई हैं। गन्ना मूल्य भी बढ़ा है, लेकिन पंजाब व हरियाणा की तुलना में उप्र में कीमतें अब भी कम हैं। किसान नेता धर्मेंद्र मलिक की बातों की पुष्टि सरकारी आंकड़ों से भी होती है। गन्ना बकाया भुगतान को लेकर स्थिति बीते वर्षों में काफी सुधरी है।
पेराई सत्र 2021-22 का महज 39 करोड़ और वर्ष 2022-23 का सिर्फ 1500 करोड़ रुपये का बकाया शेष है। वहीं, चालू वित्तीय वर्ष में नियमित भुगतान का औसत 98 प्रतिशत से अधिक देखा जा रहा है। वर्ष 2017 से प्रदेश में लगभग 37 लाख गन्ना किसानों को 2.34 लाख करोड़ से अधिक का गन्ना भुगतान सरकार के दखल से कराया गया है।गन्ना का राज्य परामर्शित मूल्य बढ़ाने की पहल भी की गई है। चालू सत्र के लिए गन्ने की अगैती प्रजाति का मूल्य 350 रुपये से बढ़ाकर 370 रुपये, सामान्य प्रजाति का 340 रुपये से बढ़ाकर 360 रुपये और अनुपयुक्त प्रजाति का मूल्य 335 रुपये से बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है।
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घटतौली अब भी बड़ा मुद्दा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ किसान नेता नरेंद्र राणा भी हाल के वर्षों में आए बदलाव व सुधार को स्वीकारते हैं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि सरकार घटतौली को नहीं रोक पाई। इस मामले में चीनी मिलों की मनमानी बरकरार है। घटतौली पहले भी होती थी और अब भी हो रही है। वहीं, भुगतान के मामले में कुछ चीनी मिलों का रवैया अब भी नहीं सुधरा है।
गन्ने पर टिकी है ग्रामीण अर्थव्यवस्था गन्ना एवं चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ है। देश भर में उगाए जाने वाले गन्ने के कुल क्षेत्र में यूपी का हिस्सा 48 प्रतिशत का है और यह कुल गन्ना उत्पादन में 50 प्रतिशत का योगदान देता है। प्रदेश के 44 जिलों में 37 लाख किसानों के 2.67 करोड़ परिवारिक सदस्यों की आजीविका का मुख्य स्रोत गन्ने की खेती ही है।
किसानों की नाराजगी काफी हद तक दूर होने का असर गन्ना क्षेत्र का रकबा बढ़ने के साथ चीनी उत्पादन में वृद्धि के रूप में देखा जा रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में 29.66 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती हुई है और उत्पादकता भी बढ़कर 84.05 टन प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है, जबकि वर्ष 2019-20 में प्रदेश में गन्ने का क्षेत्रफल 26.79 लाख हेक्टेयर और उत्पादकता 81.10 टन प्रति हेक्टेयर थी।इसे भी पढ़ें- यात्रीगण ध्यान दें, होली में परदेश से घर जाना हुआ आसान, पूर्वोत्तर रेलवे चला रहा यह होली स्पेशल ट्रेन
खांडसारी और गुड़ उद्योग को बढ़ावा देने से किसानों को मिला विकल्पप्रदेश में खांडसारी इकाइयों की स्थापना ने किसानों को बेहतर विकल्प उपलब्ध कराए हैं। गुड़ व राब बनाने के लिए कोल्हू क्रशर की स्थापना को लाइसेंस मुक्त किए जाने का असर देखा जा रहा है। नई खांडसारी इकाइयों की स्थापना के तहत अब तक 284 नए लाइसेंस जारी किए गए हैं। वहीं, चीनी मिलों की पेराई क्षमता में भी वृद्धि हुई है।
तीन नई चीनी मिलों पिपराइच, मुंडरेवा और चांगीपुरा की स्थापना के साथ ही निजी क्षेत्र की पांच चीनी मिलों का संचालन पुन: शुरू किया गया है। प्रदेश में निजी क्षेत्र की 38, निगम व सहकारी क्षेत्र की एक-एक चीनी मिल की क्षमता का विस्तार हुआ है। इससे प्रदेश में हाल के वर्षों में अतिरिक्त पेराई क्षमता का सृजन हुआ है।
एथनाल जैसे बाई प्रोडक्ट को बढ़ावा देने से चीनी मिलों की स्थिति भी सुधरी है। चालू वित्तीय वर्ष में 180 करोड़ लीटर एथनाल उत्पादन का आकलन किया है। बीते वर्ष 153.71 करोड़ लीटर का उत्पादन प्रदेश में हुआ था। उत्तर प्रदेश में पिछले सात वर्षों में एथनाल उत्पादन में करीब चार गुणा की वृद्धि हुई है। वर्ष 2016-17 में प्रदेश में एथनाल का उत्पादन महज 42.69 करोड़ लीटर था।
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