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छोटे दलों ने नहीं छूट रहा सिंबल का मोह

लखनऊ (आनन्द राय)। चुनावी महासमर फतेह के लिए सियासी दल समीकरण बनाने में जुट गए हैं। बड़े दल

By Edited By: Updated: Wed, 19 Feb 2014 02:39 AM (IST)
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लखनऊ (आनन्द राय)। चुनावी महासमर फतेह के लिए सियासी दल समीकरण बनाने में जुट गए हैं। बड़े दल इलाकाई क्षत्रपों को अपने बैनर के नीचे लाकर उनकी ताकत का इस्तेमाल करना चाहते हैं लेकिन छोटे दल अपना सियासी सिंबल मिटाने को तैयार नहीं हैं। वह गठबंधन के लिए हाथ बढ़ाने को राजी हैं। यही वजह है कि दोनों ओर बराबर स्वार्थ के बावजूद बात बन नहीं पा रही है।

जातीय समीकरण दुरुस्त करने को भाजपा छोटे दलों को लुभाने में जुटी है। पार्टी की अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से बात चल रही है। इन दलों के बहाने भाजपा की निगाह कुर्मी और राजभर मतों पर है। इसलिए भाजपा इन दलों के नेताओं को पसंदीदा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने को तैयार है, मगर उसकी शर्त पार्टी के विलय की है। अपना दल की महासचिव और विधायक अनुप्रिया पटेल न इस बात के लिए तैयार हो रही हैं और न ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर। भाजपा में नरेंद्र मोदी फैक्टर को देखते हुए इन दोनों नेताओं को गठबंधन की सियासत लाभदायी दिख रही है। इसीलिए इनका मन डोल रहा है, लेकिन अपने वजूद को लेकर भी संशय बना हुआ है। यही संशय गठजोड़ नहीं होने दे रहा है। वैसे भी 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और अपना दल का गठबंधन बहुत कारगर नहीं रहा। भाजपा व भासपा में गठबंधन की कई कोशिशें हुई, लेकिन बात नहीं बनी।

मुसलमान और यादव के साथ ही पिछड़ा कार्ड खेलने में जुटी सपा अपना 'एम' फैक्टर मजबूत करने को ही अपना दल से तोड़कर बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद को पार्टी में लाई। सूत्रों की माने तो इसमें और कड़ियां जोड़ने को सपा ने कौमी एकता दल के अध्यक्ष अफजाल अंसारी और उनके भाई बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को भी टिकट देने की पहल की, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में दो सीटें जीतने के बाद अफजाल अंसारी अब कौमी एकता दल की पहचान जिंदा रखना चाहते हैं। अफजाल गठबंधन तो चाहते हैं, लेकिन किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी का वजूद नहीं मिटाना चाहते। पीस पार्टी और कांग्रेस के बीच भी कुछ खिचड़ी पक रही थी, लेकिन पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. अयूब ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। वह भी किसी हाल में अपनी पार्टी की पहचान बनाये रखने के हिमायती हैं।

इधर, यूपी में तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी गठबंधन की संभावनाएं तलाश रही हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव में करीब एक दर्जन सीटों पर तकदीर आजमाई और इस बार पार्टी अध्यक्ष फजले मसूद और विधानसभा में पार्टी के नेता फतेहबहादुर सिंह ने तैयारी तेज कर दी है। तृणमूल कांग्रेस यूपी में विधानसभा चुनाव में कई छोटे दलों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी, लेकिन सफलता नहीं मिली। उप चुनाव में मथुरा में श्यामसुंदर शर्मा ने तृणमूल कांग्रेस का खाता खोला और अब वह पार्टी को विस्तार देने में जुटे हैं।

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