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श्रावस्‍ती में शिक्षक ने बदली गांव की सूरत, अब पढ़ने-लिखने की उम्र में रोजगार नहीं तलाशते नौनिहाल

उच्च प्राथमिक विद्यालय उड़लहवा में वर्ष 2013 में मुनव्वर मिर्जा प्रधान शिक्षक के तौर पर तैनात हुए तो यहां स्कूल की उपस्थिति पंजिका में मात्र 26 बच्चों का नाम दर्ज था। इनमें से सिर्फ दो बच्चे स्कूल पढ़ने आते थे।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Wed, 17 Nov 2021 07:06 AM (IST)
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आठ वर्षों में छह गुना हो गया स्कूल में बच्चों का पंजीकरण।
श्रावस्‍ती, [भूपेंद्र पांडेय]। कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों...। यह कहावत जमुनहा ब्लाक के उच्च प्राथमिक विद्यालय उड़लहवा सेहरिया में तैनात प्रधान शिक्षक मुनव्वर मिर्जा पर सटीक बैठती है। अशिक्षा के अंधकार में डूबे गांव में शिक्षा की रोशनी बिखेरने की कोशिश शुरू की तो रास्ते में अवरोध आए, लेकिन इन्हें दर-किनार कर वे आगे बढ़ते गए। आठ वर्षों की मेहनत में उन्होंने गांव के लोगों के सोचने का तरीका बदल दिया है। इसका असर स्कूल में पं उच्च प्राथमिक विद्यालय उड़लहवा में वर्ष 2013 में मुनव्वर मिर्जा प्रधान शिक्षक के तौर पर तैनात हुए तो यहां स्कूल की उपस्थिति पंजिका में मात्र 26 बच्चों का नाम दर्ज था। इनमें से सिर्फ दो बच्चे स्कूल पढ़ने आते थे। इन बच्चों की लेखनी सुंदर थी, लेकिन इन्हें पढ़ना नहीं आता था।  जीकरण पर नजर आता है। यहां बच्चों की संख्या छह गुना बढ़ गई है।

उच्च प्राथमिक विद्यालय उड़लहवा में वर्ष 2013 में मुनव्वर मिर्जा प्रधान शिक्षक के तौर पर तैनात हुए तो यहां स्कूल की उपस्थिति पंजिका में मात्र 26 बच्चों का नाम दर्ज था। इनमें से सिर्फ दो बच्चे स्कूल पढ़ने आते थे। इन बच्चों की लेखनी सुंदर थी, लेकिन इन्हें पढ़ना नहीं आता था। प्रधान शिक्षक को यहीं से परिस्थितियों का अनुमान हो गया, लेकिन इसके सामने घुटने टेकने के बजाय उन्होंने स्थिति बदलने का संकल्प लिया। गांव में घर-घर घूम कर उन्होंने शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना शुरू किया। बच्चों का दाखिला करने के बाद पढ़ने के लिए नियमित रूप से उन्हें बुलाने घर जाने लगे। उनका यह अभियान नियमित चलता रहा। स्कूल में अभिभावकों के साथ बैठक कर उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे उनकी मुहिम रंग लाने लगी। स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बढ़ी तो शिक्षक भी इन्हें पूरे मनोयोग से पढ़ाने में जुटे हैं।

पांचवी पास कर परदेश चले जाते थे बच्चे : महज 20 प्रतिशत साक्षरता वाले उल्लहवा सेहरिया गांव व मजरों रह रहे बच्चे प्राथमिक विद्यालय में किसी तरह पांचवी तक पढ़ाई करते थे। इसके बाद कुछ बच्चे घर की बकरी व भैंस चराने के काम में जुट कर अपने अभिभावक का हाथ बंटाते थे। अधिकांश बच्चे बचपन में ही मजदूरी के लिए परदेश चले जाते थे। इस प्रकार अशिक्षा के साथ यह गांव बाल श्रम का भी प्रमुख केंद्र था। अभिभावकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी तो बाल श्रम पर भी अंकुश लगा है।

मेहनती शिक्षक को चुका है राज्य पुरस्कार : निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य पथ पर जुटे शिक्षक के कार्यों की सराहना भी हुई है। शिक्षण कार्य को बेहतर बनाने के लिए दो सितंबर को उन्हें गोरखपुर में सम्मानित किया गया। पांच सितंबर को शिक्षक दिवस पर जिले स्तर पर आयोजित कार्यक्रम में भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है।

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