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सनातन परंपरा का सारथी है लखनऊ के अलीगंज का हनुमान मंदिर, श्रद्धालु मंदिर स्थापना के देते हैं चोला-और घंटा

लखनऊ के अलीगंज के ऐतिहासिक हनुमान मंदिर से ज्येष्ठ के बड़े मंगल की परंपरा का सूत्रपात भले ही इस्लामी शासन में हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ प्रचारित हुई लेकिन मंदिर में हजारों साल पुरानी परंपरा वर्तमान समय में भी कायम है।

By Rafiya NazEdited By: Updated: Tue, 01 Jun 2021 02:04 PM (IST)
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लखनऊ के अलीगंज मंदिर में श्रद्धालु चोला, सिंदूर व घंटा अर्पित करते हैं।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। सनातन काल से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं को संजोए रखने की चुनौती के बीच कुछ ऐसी परंपराएं भी हैं जो वर्तमान समय में भी आस्था और विश्वास का नया रंग नई पीढ़ी को दिखाती  हैं। अलीगंज के ऐतिहासिक हनुमान मंदिर से ज्येष्ठ के बड़े मंगल की परंपरा का सूत्रपात भले ही इस्लामी शासन में हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ प्रचारित हुई, लेकिन मंदिर में हजारों साल पुरानी परंपरा वर्तमान समय में भी कायम है। ज्येष्ठ मास में अवध में बजरंग बली का गुणगान होता है और भंडारे लगते हैं, इसी समय लखनऊ के साथ ही सूबे के हर जिले से श्रद्धालु नए मंदिर की स्थापना के लिए यहां से हनुमान जी का पुराना चाेला और घंटा प्रसाद के रूप में लेेने आते हैं।

नए हनुमान मंदिर के कार्यकारी अध्यक्ष अनिल तिवारी ने बताया कि सदियों पुरानी परंपरा संक्रमण काल में भले ही थम सी गई है, लेकिन सनातन काल से यह परंपरा चली आ रही है। अपने घर व जिले में हनुमान मंदिर की स्थापना करने वाले श्रद्धालु यहां आकर बड़ी ही शिद्दत से हनुमान जी की पूजा करते हैं और उन्हें नया चोला, सिंदूर व घंटा अर्पित करते हैं और यहां से प्रसाद के रूप में हनुमान जी का उतारा गया चोला व घंटा ले जाते हैं। इसके एवज में उनके कुछ नहीं लिया जाता। ज्येष्ठ मास का बड़ा मंगल अवध का ऐसा धार्मिक त्योहार है जिसमे हिंदू व मुस्लिम एक साथ शामिल होते हैं। पुराने हनुमान मंदिर में भी यह परंपरा सदियों पुरानी है। मंदिर के महंत गोपाल दास ने बताया कि हनुमान जी की स्थापना तो उस समय हुई जब श्रीराम ने सीता का परित्याग किया और बिठूर होते हुए लक्ष्मण उन्हें महर्षि वाल्मीकि के आश्रम छोड़ने जा रहे थे। रात होने पर वह इसी स्थान पर रुक गए थे। उस दौरान हनुमान जी ने मां सीता माता की सुरक्षा की थी। रामायण कालीन कथा के अनुसार हीवेट पॉलीटेक्निक के पास हनुमान बाड़ी थी जो इस्लाम बाड़ी कर दी गई। हनुमान जी की कृपा और सिद्धपीठ होने के कारण ज्येष्ठ के मंगल पर श्रद्धालु चोला व घंटा लेकर अपने जिले व गांव में मंदिर की स्थापना करते हैं।

संक्रमण ने रोकी  परिक्रमा: सनातन काल से ही श्रद्धालु गाजेबाजे के साथ चोला व घंटा लेने आते हैं। इसी के साथ ही मन्नत पूरी होने या विशेष कामना को लेकर श्रद्धालु जमीन में लेटकर परिक्रमा करते हुए  मंदिर आते हैं।भोर में मंदिर के कपाट खुलने और पहली आरती की मंशा को लेकर श्रद्धालु मंदिर आते हैं। संक्रमण काल में प्रतिबंध के चलते दो साल से श्रद्धालु नहीं आ रहे हैं। 

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