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Dainik Jagran Samvadi 2019 : लखनऊ में सज गया संवाद का मंच, विधानसभा अध्यक्ष ने किया शुभारंभ

Dainik Jagran Samvadi 2019 विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित दैनिक जागण के एग्जीक्यूटिव एडिटर विष्णु त्रिपाठी ने दीप प्रज्जवलित कर संवादी का उद्घाटन किया।

By Umesh TiwariEdited By: Updated: Sat, 14 Dec 2019 07:10 AM (IST)
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Dainik Jagran Samvadi 2019 : लखनऊ में सज गया संवाद का मंच, विधानसभा अध्यक्ष ने किया शुभारंभ
लखनऊ, जेएनएन। तीन दिन, बीस सत्र और संवाद की अथाह संभावनाएं समेटे फिर से हाजिर है आपका संवादी। भारतेंदु नाट्य अकादमी के मंच पर शुक्रवार को दैनिक जागरण संवादी (Dainik Jagran Samvadi 2019) के छठे संस्करण का पर्दा उठ गया। रंगमंच, सिनेमा, साहित्य सहित तमाम क्षेत्रों के दिग्गजों से साक्षात्कार कराने वाले संवादी का उद्घाटन मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित, दैनिक जागरण के एग्जीक्यूटिव एडिटर विष्णु त्रिपाठी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

'दैनिक जागरण संवादी' के उद्घाटन के दौरान विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित की पुस्तक 'ज्ञान का ज्ञान' का विमोचन किया गया। हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारत में लोग ईश्वर के खोजी रहे हैं, दुनिया में बाकी लोग विश्वासी हैं। भारत की आधुनिकता व दुनिया के अन्य देशों की आधुनिकता में अंतर है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज बहुत ही अनूठा संवाद करते थे। वह संवाद शिक्षित से अशिक्षित तक, प्रशिक्षित तक और जो समय के दीक्षित थे उन तक प्रवाहमान था। आकाश में गंगा बहा देना यह भारतीय संवाद की ही विशेषता है।

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि भारतीय संवाद के बारे दुनियां अन्य देशों के विद्वान भी जानने को उत्सुक रहे हैं कि आखिरकार यह देश पूरा-पूरा संवाद का ही देश क्यों दिखाई देता है। ऋग्वेद दुनिया का प्राचीनतम इनसाइक्लोपीडिया है। उसमें विश्वामित्र और नदी के बीच संवाद है। संवाद की शुरुआत ऋग्वेद से भी हजार से दो हजार साल पुरानी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रश्नों को देवता कहा गया है। कहा गया है कि प्रश्न के कारण जिज्ञासा बढ़ती है और जब जिज्ञासा बढ़ती है तो सवाद शुरू हो जाता है। संवाद सतत है। 

विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित कहा कि हम बिना बोले ही आप को अपनी बात सुना ले जाएं, ऐसा भी संवाद है। हमेशा से ही अभिव्यक्ति का वातावरण भारत में रहा है कि दुनिया का कोई देश अभिव्यक्ति के प्रश्न पर भारत की बराबरी नहीं कर सकता है। यहां अभिव्यक्ति की असीम सीमा का प्रयोग करते हुए हमारे पूर्वजों ने बहुत कुछ दिया है। उन्होंने कहा कि प्रकृति एक कविता की तरह लय बद्ध, छंद बद्ध है। प्रकृति प्रतिपल नवश्रजन में व्यस्त रहती है। जब हमारे पूर्वजों ने देखा कि प्रकृति में लय बद्धता है तो हमारे जीवन में भी लय बद्धता होनी चाहिए और तब धर्म की विकास हुआ। यानी भारत का धर्म प्रकृति के वैज्ञानिक नियमों के अधीन संचालित होने वाली एक आचारसंहिता है। 

इस दौरान दैनिक जागरण के एग्जीक्यूटिव एडिटर विष्णु त्रिपाठी ने कहा कि यह संवाद का उत्सव है। विचारों का खजाना है। साहित्य, संस्कृति, सिनेमा, समाज समेत विविध विषयों पर बात होगी। दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने कहा कि ये कोई लिटरेचर फेस्टिवल नहीं, अभिव्यक्ति का उत्सव है। पाठकों को अभिव्यक्ति से जोड़ना दैनिक जागरण अपनी जिम्मेदारी समझता है।

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