इलाहाबाद विश्वविद्यालय की बंद तिजाेरी में निकला हजारों साल पुराना खजाना, मिले सोने-चांदी के सिक्के
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में 25 वर्षों से बंद पड़े लॉकर और अलमारी से प्राचीन खजाना निकला। इसमें दुर्लभ दीनार सिक्के जम्मू-कश्मीर राजवंश के इतिहास पर रोशनी डालते हैं। 400-500 ईस्वी के बीच किदाराइट साम्राज्य द्वारा जारी किए गए सिक्के मिले। इसके अलावा 500 प्राचीन सिक्के पर्शियन भाषा में शाही फरमान और ताम्रपत्र पर अंकित पाली भाषा में विनय पिटक मिले।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में 25 वर्षों से बंद पड़े लॉकर और अलमारी से ‘खजाना’ निकला है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण दुर्लभ दीनार के वह सिक्के हैं, जो जम्मू-कश्मीर राजवंश के इतिहास पर रोशनी डाल रहे हैं।
कुछ सिक्कों का मुद्राशास्त्र विशेषज्ञ से परीक्षण के बाद सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, ये सिक्का लगभग 400-500 ईस्वी के बीच किदाराइट साम्राज्य द्वारा जारी किए गए थे, जो उस समय जम्मू और कश्मीर क्षेत्र पर शासन करता था।
इसके अलावा, मिली धरोहरों में विभिन्न धातुओं के करीब 500 प्राचीन सिक्के, पर्शियन भाषा में लिखा एक शाही फरमान और ताम्रपत्र पर अंकित पाली भाषा में विनय पिटक शामिल है। विनय पिटक बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अनुशासन नियमों का संग्रह है।
1998 में बंद की गई थी पुरातात्विक धरोहरें
एक दशक से भी ज्यादा समय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मौजूद इस पुरातात्विक धरोहरों को 1998 में एक समिति ने लॉकर व अलमारी में बंद कर दिया था। इसके बाद से ये वस्तुएं अनछुई थीं।गुरुवार को लॉकर खुलने के बाद सिक्कों का मुद्राशास्त्र विशेषज्ञ से परीक्षण कराया गया है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार, 400-500 ईस्वी में किदाराइट साम्राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्र पर शासन करता था। इस विशेष सिक्के का वजन 7.34 ग्राम है और इसका व्यास 21 मिमी है। इसे गोल आकार में तैयार किया गया था। हालांकि, यह थोड़ा असमान है। सोने से निर्मित इस सिक्के की रचना "डिबेस्ड" मानी जाती है, जिसका अर्थ है कि इसमें शुद्ध सोने की मात्रा कम है। इसके अग्रभाग पर एक राजा को खड़ा दिखाया गया है, जो बाएं तरफ वेदी पर बलि दे रहा है।
राजा के हाथ के नीचे ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ है, जिसका अनुवाद "किदारा" होता है, जो किदाराइट साम्राज्य के शासक का संदर्भ है। इस खोज से किदाराइट साम्राज्य और जम्मू-कश्मीर के प्राचीन इतिहास पर शोध करने वाले विद्वानों के लिए नए आयाम खुल सकते हैं।
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