संतान सुख की कामना के लिए महिलाओं ने रखा हलछठ का व्रत, जानिए जन्माष्टमी से पहले क्यों होती है बलराम की पूजा
भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव से पहले शनिवार को उनके बड़े भाई बलराम की जयंती मनाई गई। हलछठ के नाम से मनी जयंती पर संतान सुख की कामना को लेकर महिलाओं ने व्रत रखा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का मान रात्रि 855 बजे पूजा की गई।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव से पहले शनिवार को उनके बड़े भाई बलराम की जयंती मनाई गई। हलछठ के नाम से मनी जयंती पर संतान सुख की कामना को लेकर महिलाओं ने व्रत रखा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का मान रात्रि 8:55 बजे होने से महिलाओं ने सुविधानुसार पूजन किया। आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, बलराम जी शेषनाग के अवतार थे। इनके पराक्रम की अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। उन जैसी ताकत के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती है और महुआ की दातुन करती हैं।
हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में वही चीजें खाई जाती है। जो तालाब में पैदा होती हैं। जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल का सेवन करती हैं. गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान के बाद एक चौकी पर नीले रंग का कपड़ा बिछाकर कलावे के साथ महिलाओं ने पूजन किया। चौकी पर श्री कृष्ण और बलराम की फोटो रखकर चंदन लगाया और नीले रंग का फूल अर्पित किया। बलराम का शस्त्र हल है। इसलिए उनकी प्रतिमा पर एक छोटा हल रखकर पूजा की गई। आचार्य कामता प्रसाद शर्मा गुरु जी ने बताया कि प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। वह घर-घर दूध बेचती थी। एक दिन संतान को जन्म देने के दिन भी वह लालच मेें दूध बेचने चली गई।
अचानक उसे प्रसव पीड़ा हुई तो वो झरबेरी के पेड़ के नीचे बैठ गई। वहीं उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। लेकिन उसके पास अभी बेचने के लिए दूध-दही बचा हुआ था। इसलिए वो अपने पुत्र को झरबेरी के पेड़ के नीचे छोड़ कर दूध बेचने के लिए चली गई। दूध नहीं बिक रहा था तो उसने सबको भैंस का दूध यह बोलकर बेच दिया कि यह गाय का दूध है। इसी दिन हलषष्ठी थी। बलराम ग्वालिन के झूठ के कारण क्रोधित हो गए। झरबेरी के पेड़ के पास ही एक खेत था। वहां किसान अपने हल जोत रहा था। तभी अचानक हल ग्वालिन के बच्चे को जा लगा। हल लगने से उसके बच्चे के प्राण चले गए। ग्वालिन झूठ बोलकर दूध बेच कर खुश होते हुए आई। देखा तो उसके बच्चे का निधन हो गया था। भगवान बलराम से प्रार्थना की कि आज के दिन तो लोग पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं। ग्वालिन के पछतावे के बाद भगवान बलराम ने उसके पुत्र को जीवित कर दिया था। इसी के बाद से यह व्रत चलता आ रहा है।