UP Civic Elections: नगरीय निकाय चुनाव से पहले हाई कोर्ट का स्पष्ट रुख- 'ट्रिपल टेस्ट के बिना आरक्षण अनुचित'
UP Civic Elections उत्तर प्रदेश में जल्द ही नगरीय निकाय चुनाव होने हैं जिसकी तैयारियों में राज्य निर्वाचन आयोग जुट गया है। इस बीच हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर बुधवार तक रोक लगा दी है। इसमें ओबीसी आरक्षण को लेकर सुनवाई होनी है।
By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Wed, 14 Dec 2022 08:46 AM (IST)
विधि संवाददाता, लखनऊः नगरीय निकाय चुनाव की तैयारियों में जुटे राज्य निर्वाचन आयोग की नजर अब हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ पर टिक गई है। बुधवार को यहां नगरीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुनवाई होनी है। बुधवार तक हाई कोर्ट ने निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर भी रोक लगा रखी है। ऐसे में बुधवार को हाई कोर्ट के रुख के बाद ही चुनाव आयोग अगला कदम बढ़ाएगा। वहीं, राज्य निर्वाचन आयुक्त मनोज कुमार ने मंगलवार को प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद व एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार से शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव की तैयारियों का जायजा लिया। नगरीय निकायों का कार्यकाल 15 जनवरी तक अलग-अलग तारीखों में समाप्त हो रहा है।
राज्य निर्वाचन आयोग 760 नगरीय निकायों में जनवरी के पहले व दूसरे हफ्ते में चुनाव कराने की तैयारी में जुटा हुआ है। वर्ष 2017 में आयोग ने 36 दिनों में चुनाव संपन्न कराया था। इस बार आयोग को चुनाव कराने के लिए और कम समय मिल रहा है। राज्य निर्वाचन आयुक्त ने मंगलवार को प्रमुख सचिव गृह व एडीजी कानून व्यवस्था के साथ बैठक कर पुलिस की तैयारियों का जायजा लिया। प्रमुख सचिव ने आयोग को बताया कि शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए उनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिस बल व पीएसी है। राज्य निर्वाचन आयुक्त मनोज कुमार ने बताया कि अभी आयोग को निकायों के अंतिम आरक्षण सूची का इंतजार है। साथ ही हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई होनी है, इसके बाद ही आयोग अगला कदम बढ़ाएगा। सूत्रों के अनुसार बुधवार को हाई कोर्ट का रुख साफ होते ही 15 दिसंबर के बाद कभी भी चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है।
‘बिना ट्रिपल टेस्ट ओबीसी आरक्षण अनुचित’
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश में नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करने पर लगाई गई रोक बुधवार तक के लिए बढ़ाते हुए दोहराया कि ट्रिपल टेस्ट के बिना ओबीसी आरक्षण लागू करना संविधान सम्मत नहीं है। अगली सुनवाई बुधवार को होगी। यह आदेश जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय व जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने वैभव पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर पारित किया गया।इससे पहले अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही एवं अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता अमिताभ राय ने पीठ से कहा कि उनके पास अभी मामले में राज्य सरकार की ओर से पूरे दिशा निर्देश नहीं आए हैं, लिहाजा सुनवाई बुधवार तक के लिए टाल दी जाए। इस बीच राज्य सरकार की ओर से अमिताभ राय कोर्ट के दखल पर अपनी बात रखने लगे, जिस पर पीठ ने कहा कि सरकार को यह समझना होगा कि ओबीसी आरक्षण लागू करने की प्रक्रिया संवैधानिक व्यवस्था है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है। बिना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन किए ओबीसी आरक्षण को लागू करने देना कानूनसम्मत नहीं होगा। सरकार की ओर से पेश अमिताभ राय ने सफाई दी कि पांच दिसंबर 2022 को जारी ड्राफ्ट नोटीफिकेशन में सीटों का आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक न हो, इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है। इस पर पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के संबंधित निर्णय व संविधान का अनुच्छेद 16(4) पढ़ने को कहा।
'ट्रिपल टेस्ट अध्ययन का विषय रैपिड सर्वे नहीं'
कोर्ट ने कहा कि न सिर्फ शीर्ष अदालत का निर्णय बल्कि संविधान की भी यही व्यवस्था है कि ओबीसी आरक्षण जारी करने से पहले पिछड़ेपन का अध्ययन किया जाए। कोर्ट ने सरकार को यह भी ताकीद की है कि अध्ययन का अर्थ रैपिड सर्वे नहीं होना चाहिए। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि ओबीसी आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देशों के अनुसार निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण जारी करने से पहले ट्रिपल टेस्ट किया जाना चाहिए, इसके बिना ही पांच दिसंबर 2022 को सरकार ने निकाय चुनावों के लिए ड्राफ्ट नोटीफिकेशन जारी कर दिया। 12 दिसंबर को कोर्ट ने उक्त ड्राफ्ट नोटीफिकेशन के साथ चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर भी रोक लगा दी थी।हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि- समझना होगा कि यह संवैधानिक व्यवस्था है। निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर रोक बरकरार आज भी होगी सुनवाई ट्रिपल टेस्ट। किसी प्रदेश में आरक्षण के लिए निकाय के पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की जांच के लिए आयोग की स्थापना की जाए। चुनाव आयोग की सिफारिशों के मुताबिक आरक्षण का अनुपात तय करना आवश्यक । किसी भी मामले में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में कुल आरक्षित सीटों का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अिधक नहीं होना चाहिए।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।