UP Lok Sabha Elections 2024: मोदी सरकार की हैट्रिक रोकने के लिए बिखरा विपक्ष हुआ एकजुट, भाजपा का एक ही लक्ष्य 'क्लीन स्वीप'
UP Lok Sabha Elections 2024 लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी रंगमंच पूरी तरह से सज गया है। सभी की नजर उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दृष्टि से अहमियत यूं समझी जा सकती है कि राज्य ने अब तक नरेंद्र मोदी सहित देश को नौ प्रधानमंत्री दिए हैं। 24 करोड़ से अधिक की आबादी वाले प्रदेश पर अब सबकी नजर है।
अजय जायसवाल, लखनऊ। देश की राजनीति की धुरी माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में बिखरे विपक्ष से भाजपा इस बार क्लीन स्वीप की संभावनाएं लेकर चल रही है। मोदी सरकार की हैट्रिक रोकने के लिए प्रदेश में कांग्रेस और सपा ने हाथ तो मिलाया है, लेकिन सात वर्ष पहले विधानसभा चुनाव में फेल हो चुके गठबंधन से लोकसभा चुनाव में भी किसी तरह के चमत्कार की उम्मीद नहीं दिखती। विपक्षी सपा-कांग्रेस गठबंधन से दूर अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने वाली बसपा एक बार फिर एक दशक पहले की ‘शून्य’ वाली स्थिति में पहुंचने की राह पर है।
सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दृष्टि से अहमियत यूं समझी जा सकती है कि राज्य ने अब तक नरेंद्र मोदी सहित देश को नौ प्रधानमंत्री दिए हैं। 24 करोड़ से अधिक की आबादी वाले प्रदेश में भाजपा ने पिछले दोनों लोकसभा चुनाव बिल्कुल अलग सियासी हालात में लड़े हैं। वर्ष 2014 में भाजपा के सामने जहां कोई बड़ा विपक्षी गठबंधन नहीं था वहीं वर्ष 2019 के चुनाव में बसपा, सपा और रालोद एक साथ थे।
मोदी लहर ने बदला वाराणसी का रंग
एक दशक पहले वाराणसी लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव मैदान में मोदी के उतरने से राज्य में ऐसी मोदी लहर चली थी कि भाजपा रिकार्ड 71 सीटों पर पहुंच गई थी। भाजपा के सहयोगी अपना दल(एस) ने भी दो सीटें जीती थी। सत्ताधारी सपा को जहां सिर्फ पांच सीटें मिलीं थीं वहीं कांग्रेस दो और बसपा शून्य पर सिमट कर रह गई थी।पिछले चुनाव में सपा-बसपा के मिलने पर भाजपा सहयोगी अपना दल(एस) संग नौ सीटें घटकर 62 पर रह गई थीं वहीं बसपा शून्य से 10 और सपा पांच सीटों पर ही रही थी। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा था। अमेठी से राहुल गांधी हार गए थे। सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली सीट बची थी।
इस बार कुछ ऐसी है तस्वीर
एक बार फिर राज्य के बदले सियासी माहौल में चुनाव होने जा रहे हैं। मोदी से मुकाबले की तमाम कोशिशों के बावजूद बसपा अब तक विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए में शामिल नहीं हुई है। विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के साथ सपा और रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) की जातीय जुगलबंदी से अबकी इतिहास बदलने के दावे किए गए, लेकिन चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही रालोद के जयंत चौधरी ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से वर्षों पुराना नाता तोड़ लिया। अब सपा और कांग्रेस के गठबंधन से ही चमत्कार की उम्मीद लगाई जा रही है।2017 ने जनता ने राहुल-अखिलेश की जोड़ी को नकारा
यहां पर गौर करने की बात यह है कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश और राहुल के हाथ मिलाने पर दावा किया गया था कि ‘यूपी को यह साथ पसंद है’, लेकिन प्रदेशवासियों ने दावे को दरकिनार कर चुनाव में 'दो लड़कों की जोड़ी' को सिरे से नकार दिया था।
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