UP Love Jihad Law: मूल धर्म में हो सकेगी वापसी, नहीं माना जाएगा धर्मांतरण; जानें क्या कहता है अध्यादेश...
UP Love Jihad Law उत्तर प्रदेश में लव जिहाद की बढ़ती घटनाएं कानून-व्यवस्था के लिए लगातार चुनौती बनती जा रही थीं। ऐसी घटनाओं में प्रभावी कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धर्मांतरण को लेकर कठोर कानून बना दिया है।
By Umesh TiwariEdited By: Updated: Sun, 29 Nov 2020 06:44 PM (IST)
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। उत्तर प्रदेश में लव जिहाद की बढ़ती घटनाएं कानून-व्यवस्था के लिए लगातार चुनौती बनती जा रही थीं। ऐसी घटनाओं में प्रभावी कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धर्मांतरण को लेकर कठोर कानून बना दिया है। अब राज्य में छल-कपट से, कोई प्रलोभन देकर या जबरन कराए गए धर्मांतरण के लिए कानून लागू हो गया है। उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 में यह भी साफ किया गया है कि यदि कोई महिला अथवा पुरुष एक धर्म से दूसरे धर्म में जाने के बाद अपने ठीक पूर्व धर्म में फिर से वापसी करता है तो उसे इस अध्यादेश के तहत धर्मांतरण नहीं माना जाएगा।
अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि कोई व्यक्ति एक धर्म से दूसरे धर्म में संपरिवर्तन के बाद अपनी स्वेच्छा से अपने ठीक पहले के धर्म में वापसी कर सकता है। कानून के तहत ऐसे धर्म परिवर्तन को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है, जो मिथ्या, निरूपण, बलपूर्वक, असम्यक, प्रभाव, प्रलोभन या अन्य किसी कपट रीति से या विवाह द्वारा किया जाएगा।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की मंजूरी मिलने के साथ ही प्रदेश में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 लागू हो गया है। अध्यादेश लागू किए जाने की अधिसूचना जारी कर दी गई है। कैबिनेट ने 24 नवंबर को अध्यादेश को मंजूरी दी थी और उसे अनुमोदन के लिए राजभवन भेजा गया था। अध्यादेश को छह माह के भीतर विधानमंडल के दोनों सदनों में मंजूरी दिलानी होगी।
उत्तर प्रदेश में अब छल-कपट से, कोई प्रलोभन देकर या जबरन कराए गए धर्मांतरण के लिए कानून लागू हो गया है। इसके तहत धर्म बदलने के लिए कम से कम 60 दिन यानी दो महीने पहले जिलाधिकारी या संबंधित अपर जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष तय प्रारूप में आवेदन करना अनिवार्य होगा। आवेदन पत्र में यह घोषणा करनी होगी कि संबंधित व्यक्ति खुद से, अपनी स्वतंत्र सहमति से तथा बिना किसी दबाव, बल या प्रलोभन के धर्म परिवर्तन करना चाहता है। घोषणा करने की तारीख से 21 दिनों के भीतर संबंधित व्यक्ति को जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत होकर अपनी पहचान स्थापित करनी होगी और घोषणा की विषयवस्तु की पुष्टि करनी होगी। जिलाधिकारी धर्म परिवर्तन के वास्तविक आशय, प्रयोजन व कारण की पुलिस के जरिये जांच कराने के बाद अनुमति प्रदान करेंगे।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश के प्रमुख बिंदु...
- अध्यादेश के तहत जबरन धर्मांतरण के मामलों में एक से 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान किया गया है। प्रदेश में अब जबरन या कोई प्रलोभन देकर किसी का धर्म परिवर्तन कराया जाना अपराध होगा। विवाह के जरिये एक से दूसरे धर्म में परिवर्तन भी कठोर अपराध की श्रेणी में होगा। यह अपराध गैरजमानती होगा।
- सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में शामिल संबंधित सामाजिक संगठनों का पंजीकरण निरस्त कर उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
- अध्यादेश के उल्लंघन की दोषी किसी संस्था या संगठन के विरुद्ध भी सजा का प्रावधान होगा।
- जबरन धर्म परिवर्तन के मामलों में साक्ष्य देने का भार भी आरोपित पर होगा। यानी कपटपूर्वक, जबरदस्ती या विवाह के लिए किसी का धर्म परिवर्तन किए जाने के मामलों में आरोपित को ही साबित करना होगा कि ऐसा नहीं हुआ।
- यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में होगा और गैर जमानती होगा। अभियोग का विचारण प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की कोर्ट में होगा।
- यदि किसी लड़की का धर्म परिवर्तन एक मात्र प्रयोजन विवाह के लिए किया गया तो विवाह शून्य घोषित किया जा सकेगा।
- पीड़िता या पीड़ित के अलावा उसके माता-पिता, भाई-बहन या रक्त संबंधी भी मामले में रिपोर्ट दर्ज करा सकेंगे।
यह होगी सजा और जुर्माना
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- अध्यादेश में छल-कपट से, प्रलोभन देकर, बल पूर्वक या विवाह के लिए धर्म परिवर्तन के सामान्य मामले में कम से कम एक वर्ष तथा अधिकतम पांच वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा कम से कम 15 हजार रुपये तक जुर्माना होगा।
- नाबालिग लड़की, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिला का जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने के मामले में कम से कम दो वर्ष तथा अधिकतम 10 वर्ष तक का कारावास तथा कम से कम 25 हजार रुपये जुर्माना होगा।
- सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में कम से कम तीन वर्ष तथा अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा और कम से कम 50 हजार रुपये जुर्माना होगा।