UP: 260 करोड़ वर्ष पहले ऑक्सीजन देने वाले शैवाल के जीवाश्म मिले, मंगल ग्रह पर भी स्ट्रोमैटोलाइट्स मिले
अंतरिक्ष विज्ञानी चांद और मंगल पर जीवन की खोज कर रहे हैं तो वहीं पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में पुराविज्ञानी शोधरत हैं। इस कड़ी में लखनऊ के बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीसीआईपी) के विज्ञानियों को कर्नाटक के दावणगेरे जिले में 260 करोड़ वर्ष से अधिक पुराने ब्लूग्रीन एल्गी यानी नील हरित शैवाल द्वारा निर्मित संरचनाओं के जीवाश्म मिले हैं।
By Jagran NewsEdited By: Siddharth ChaurasiyaUpdated: Mon, 28 Aug 2023 02:26 PM (IST)
रामांशी मिश्रा, लखनऊ। अंतरिक्ष विज्ञानी चांद और मंगल पर जीवन की खोज कर रहे हैं तो वहीं पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में पुराविज्ञानी शोधरत हैं। इस कड़ी में लखनऊ के बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीसीआईपी) के विज्ञानियों को कर्नाटक के दावणगेरे जिले में 260 करोड़ वर्ष से अधिक पुराने ब्लूग्रीन एल्गी यानी नील हरित शैवाल द्वारा निर्मित संरचनाओं के जीवाश्म मिले हैं।
यह पृथ्वी पर ऑक्सीजन की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। शोध में शामिल बीएसआईपी के पूर्व विज्ञानी डॉ. मुकुंद शर्मा के अनुसार, विश्व के कुछ ही स्थानों पर ऐसी संरचनाएं पाई गई हैं। भारत में कर्नाटक और झारखंड में 250 करोड़ से लेकर 400 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टानें पाई गई हैं जिससे कई महत्वपूर्ण खोज सामने आई हैं। पृथ्वी पर ऑक्सीजन की उत्पत्ति में इन शैवालों का बहुत अहम योगदान है।
ब्लूग्रीन एल्गी के उद्भव के बाद ही पृथ्वी पर ऑक्सीजन का विकास हुआ। ऑक्सीजन की शुरुआत करने वाली इन संरचनाओं के जीवाश्म को स्ट्रोमैटोलाइट कहा जाता है। दावणगेरे जिले के शांति सागर जलाशय के पास यह संरचनाएं अलेशपुर नामक चूना पत्थरों में बनी थी। शोध करने वाले विज्ञानियों को पत्थरों पर पहली बार यह संरचनाएं 2008 में दिखी थीं।
यह संरचनाएं 260 करोड़ वर्ष पुरानी ज्वालामुखी चट्टानों से ढकी हुई हैं। इन संरचनाओं के नीचे 300 करोड़ वर्ष पुरानी ग्रेनाइट की चट्टानें भी मिली हैं। उन्हीं के आधार पर इनकी आयु का निर्धारण किया गया। इस पर 2022 में विज्ञानी डॉ. मुकुंद शर्मा, डॉ. योगमाया शुक्ला और चेतन कुमार शोध के परिणाम लेकर सामने आए। डॉ. मुकुंद ने बताया कि यह शैवाल जनित संरचनाएं हैं। अभी तक इस आयु के पत्थरों से शैवाल के जीवाश्म नहीं मिले हैं।
शैवालों पर निर्भर जीवन
डॉ. मुकुंद ने कहा कि नील हरित शैवाल व अन्य पौधों के के प्रकाश संश्लेषण से ऑक्सीजन बनाकर वातावरण में छोड़ते रहते थे। धीरे-धीरे यह ऑक्सीजन वायुमंडल में एकत्र होती गई और जीवन के विकास में सहायक हुई। वर्तमान में इन्हीं के द्वारा बनाई गई 21 प्रतिशत ऑक्सीजन उपलब्धता पर जीवन निर्भर करता है।शोध का उद्देश्य
विज्ञानियों का मानना है कि इन संरचनाओं के आगामी अध्ययन से जीवन के प्रारंभिक उद्भव और मंगल ग्रह के आरंभिक जीवन के अध्ययन में भी सहायता मिल सकती है। मंगल ग्रह पर भी मिलते जुलते स्ट्रोमैटोलाइट्स मिले हैं। यह शोध गुरुवार को करंट साइंस नामक जर्नल में भी प्रकाशित हुआ है।
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