UP: यूपी में हुई जातीय जनगणना तो 50 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर जाएगा अन्य पिछड़ा वर्ग, जानिए क्या कहती है रिपोर्ट
जाति आधारित जनगणना की उठती मांग के बीच प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है। राजनाथ सिंह सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2001 में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है।
By Rajeev DixitEdited By: Shivam YadavUpdated: Wed, 04 Oct 2023 12:07 AM (IST)
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। जाति आधारित जनगणना की उठती मांग के बीच प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है। राजनाथ सिंह सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2001 में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की पिछड़ी जातियों में सर्वाधिक 19.4 प्रतिशत हिस्सेदारी यादवों की हैं। दूसरे पायदान पर कुर्मी व पटेल हैं, जिनकी ओबीसी में 7.4 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ओबीसी की कुल संख्या में निषाद, मल्लाह और केवट 4.3 प्रतिशत, भर और राजभर 2.4 प्रतिशत, लोध 4.8 प्रतिशत और जाट 3.6 प्रतिशत हैं।
पिछड़ी जातियों की आबादी 7.56 करोड़
वर्ष 1931 की जनगणना के बाद ओबीसी की जनसंख्या का कोई प्रामाणिक जातिवार आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। हुकुम सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति ने प्रदेश की 79 अन्य पिछड़ी जातियों की आबादी 7.56 करोड़ होने का अनुमान लगाया था। यह आकलन ग्रामीण क्षेत्रों में रखे जाने वाले परिवार रजिस्टरों के आधार पर किया गया था। यह मानते हुए कि नगरीय क्षेत्रों की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का 20.78 प्रतिशत है, वर्ष 2001 में उप्र में ओबीसी की संख्या राज्य की 16.61 करोड़ की कुल आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक रही होगी।आरक्षण के मुद्दों पर भी किया था गौर
हुकुम सिंह समिति ने मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने पर ओबीसी को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण के भीतर अति पिछड़ी जातियों (एमबीसी) के लिए आरक्षण के मुद्दों पर गौर किया था। मंडल आयोग ने देश की कुल जनसंख्या में ओबीसी की हिस्सेदारी 52.2 प्रतिशत मानी थी।अति पिछड़ी जातियों को लेकर राजनीति गर्माने तथा ओबीसी कोटे के अंदर अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए उठी मांग के परिप्रेक्ष्य में योगी सरकार ने वर्ष 2018 में न्यायमूर्ति राघवेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में एक और सामाजिक न्याय समिति गठित करने का निर्णय किया। इस समिति ने अक्टूबर 2018 में 400 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें ओबीसी को तीन श्रेणियों में बांटा गया था।
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