UP Politics: मूंद लो आंखें तो मौसम सुहाना, जरूरी नहीं कि चाचा या पीले गमछे वाले आईना दिखाएं तो देखा ही जाए
UP Political News भैया जी दौड़ती साइकिल को संभाल न सके और पटखनी खा गए। बार-बार मात खा रहे हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि चाचा या पीले गमछे वाले आईना दिखाएं तो देखा ही जाए। मूंदो आंखें मौसम सुहाना।
UP Political News: सत्ता के गलियारे से : लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। जिन्हें कुछ महीने पहले तक फिर से 'टीपू' में 'सुल्तान' नजर आ रहा था, वह भैया की हार के बाद अब खुद को 'चाणक्य' समझ रहे हैं। साम्राज्य जीतने के लिए आए दिन अपनी ज्ञान की पोटली खोलते हैं, लेकिन भैया कहां मानने वाले हैं। परदेस जाकर पर्यावरण की पढ़ाई की है, भला वह क्यों ऐसे दरबारियों की बात सुनने लगे, जो खुद विधानसभा चुनाव में मौसम न भांप सके।
फिर चाचा की उपलब्धि भी उनके सामने कहां ठहरती है। चाचा गांव की पगडंडी से पैडल मारकर साइकिल को राजधानी तक ही तो ले आए। मेहनत भैया की है, जो सीधे छलांग मारकर सिंहासन पर आ बैठे। यह दीगर बात है कि दौड़ती साइकिल को संभाल न सके और पटखनी खा गए। बार-बार मात खा रहे हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि चाचा या पीले गमछे वाले आईना दिखाएं तो देखा ही जाए। मूंदो आंखें, मौसम सुहाना।
अदा करेंगे नमक का हक : संगम की मिली धाराएं देखकर आए माननीय को सत्ता के गलियारे में अपनी अलग धारा दिखाने की चाहत है। यहां कारोबारियों का जमघट लगा। बड़े प्रोजेक्ट धरातल पर उतर रहे हैं, लेकिन नेताजी का चेहरा उस तरह नहीं चमक रहा, जैसा वह चाहते हैं। हाथी से उतरकर कमल दल थामने वाले नेताजी को 'हाथी के पांव में सबका पांव' वाला सूत्र पसंद नहीं है। खैर, कारोबार की अच्छी समझ रखने वाले माननीय ने अब नया तरीका निकाला है।
कलम वालों के लिए पांच सितारा होटल में भोजन के विशेष कूपन भिजवा रहे हैं। यूं माननीय अपना बड़ा दिल दिखा रहे हैं, लेकिन समझने वाले उनके दिल के अंदर की बेचैनी समझ रहे हैं। उड़ते-उड़ते खबर उनकी पार्टी में भी पहुंच गई है। कानाफूसी शुरू हो गई है कि नेताजी चुनाव में 'नमक' का असर देख चुके हैं। उन्हें उम्मीद है कि यहां भी जो नमक खाएगा, वह उसका हक जरूर अदा करेगा।
कम्पटीशन झेलिए प्रभु राम, आ गए नए भगवान! : 'राम-राज्य' की रट लगाने वालों ने आखिरकार भगवान के लिए ही कम्पटीशन खड़ा कर दिया। अब भक्तों के लिए विकल्प है कि वह लखनऊ से लगभग 125 किलोमीटर दूर सफर कर भगवान राम को पूजने जाएं या त्रेतायुग में भगवान की नैया पार लगवाने वाले केवट के 'अवतार' को यहीं पूज लें। अपनी सियासी नैया पार लगाने के लिए भगवा खेमे के साथ आए माननीय के अपने भक्तों ने उनकी पूजा शुरू कर भी दी है।
अब तक अपनी मूर्ति लगवाने वाले नेताओं को देखने वाले हैरान हैं कि माननीय की आरती क्यों उतारी जा रही है? ये न महंत हैं और न संत। ऐसा प्रश्न उठाने वाले नास्तिकों को माननीय ने ही सही जवाब दे दिया। बता दिया कि उनके समर्थक उन्हें गुरु मानते हैं और गुरु भगवान के समान होता है। अब भक्तों का दिल भगवान कैसे तोड़ सकते हैं। सच भी है भक्त के वश में हैं भगवान।
हमें अपनों ने भी लूटा : यह बहुतेरों की पीड़ा रही होगी कि उन्हें अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था। मगर, नीले खेमे में अबकी बार नई तरह की खलबली सामने आई है। रिश्ते-नातों की बात जुबां पर भी न लाने वाली मैडम ने दर्द बयां किया है कि हमें अपनों ने भी लूटा। शोषितों-वंचितों के लिए आवाज उठाने वाली मैडम अब तक पाला बदलने वाले अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को ही स्वार्थी व धोखेबाज बताती थीं, लेकिन अब राज खोला है कि उनके रिश्तेदार भी मुश्किल वक्त में उनका साथ छोड़कर चले गए।
जो संगठन उनकी सत्ता के दौर में पावर सेंटर माने जाते थे, उन पर भी अब सवाल खड़े किए हैं। मैडम ने स्पष्ट कहा है कि उनके भाई ही परिवार सहित पार्टी की सेवा कर रहे हैं। यदि कोई समझना चाहे तो समझ सकता है कि दल मुखिया की ओर से यह भविष्य में पावर ट्रांसफर की मौखिक वसीयत है।