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अमृतकाल के सारथी बने नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों को छू रहा देश

PM Modi Birthday 2014 में नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री पद की शपथ लेना भारत के सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण यज्ञ का शुभारंभ था। कभी विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा भारत लंबी अवधि से ऐसे राष्ट्र यज्ञ की प्रतीक्षा में था। यह मोदी जी के नेतृत्व की विशिष्टता है कि उन्होंने 140 करोड़ देशवासियों को इस यज्ञ का साधक बनाया।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek PandeyUpdated: Sun, 17 Sep 2023 12:30 PM (IST)
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अमृतकाल के सारथी बने नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में नई ऊंचाइयों को छू रहा देश
यह कितना सुंदर संयोग है कि सृष्टि शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती और एक भारत-श्रेष्ठ भारत के शिल्पी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन एक ही दिवस पर है। दोनों ही सृजन के प्रणेता हैं, दोनों ही नवनिर्माण के संवाहक हैं।

एक महान नेता वह होता है, जो बड़े लक्ष्य के लिए न केवल स्वयं को समर्पित करता है, बल्कि उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संस्थाएं और व्यवस्थाएं भी तैयार करता है। बीते साढ़े नौ वर्षों में हमने इसका साकार रूप प्रधानमंत्री मोदी में प्रत्यक्ष अनुभव किया है।

2014 के पूर्व भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और परिवारवाद के घुन से खोखली हो चुकी व्यवस्था के प्रति देश के सामान्य नागरिक के मन में वितृष्णा का भाव था तो भविष्य की अनिश्चितता को लेकर आशंका घर कर चुकी थी। सरकारी योजनाओं के केंद्र में ‘अपनों का लाभ’ निहित था, तो विश्व परिदृश्य पर भारत की साख पतनोन्मुख थी।

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जब संविधान में जोड़ा गया ‘समाजवाद’ शब्द यथार्थ में परिवारवाद बन कर रह गया और ‘गरीबी हटाओ’ का नारा गरीब को मिटाओ में परिवर्तित हो गया, तब निराशा के ऐसे गहरे सागर में डूबते-उतराते भारतीय लोक ने अंततः तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन का निर्णय लिया और अपनी आशाओं, अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के रथ के सारथी ‘प्रधानमंत्री’ के रूप में नरेन्द्र मोदी का चुनाव किया।

2014 में नरेंद्र मोदी ने पहली बार ली थी प्रधानमंत्री पद की शपथ 

2014 में नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री पद की शपथ लेना भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण यज्ञ का शुभारंभ था। कभी विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा भारत लंबी अवधि से ऐसे राष्ट्र यज्ञ की प्रतीक्षा में था। यह मोदी जी के नेतृत्व की विशिष्टता है कि उन्होंने 140 करोड़ देशवासियों को इस यज्ञ का साधक बनाया।

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हर भारतीय को देश की डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी और डाइवर्सिटी की त्रिवेणी के महत्व को समझाया। भारत को उसकी क्षमता से परिचित कराया। राष्ट्र जागरण के इस यज्ञ के सुफल के रूप में ही ‘नए भारत’ की रचना संभव हुई।

यह मोदी जी के नेतृत्व का ही चमत्कार है कि विभिन्न धर्म, संप्रदाय, मत, भाषा, विचार में बंटा देश, आज एकता के सूत्र में बंधकर ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के स्वप्न को साकार कर रहा है। आज मां भारती का मुकुट कश्मीर अनुच्छेद 370 के कलंक को धो चुका है। मुस्लिम बहनें तीन तलाक जैसी मध्ययुगीन वीभत्सता से मुक्त हैं। अब किसी माता-बहन का जीवन रसोईघर के धुएं की धुंध में होम नहीं होता। उनके जीवन में “उज्ज्वला” है, “सौभाग्य” का उजियारा है।

हर किसान की हर फसल का बीमा है। हर गरीब को “आयुष्मान” का आशीष है और अपना घर होने का आत्मिक सुख है। विश्वस्तरीय सड़कों ने आम आदमी से लेकर उद्योग जगत तक के जीवन को सरल-सुगम बनाया है। यह सब प्रधानमंत्री की राष्ट्र साधना का ही प्रतिफल है।

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2014 के बाद इस देश ने एक नई कार्य संस्कृति को अपनाया। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ इस नवीन कार्यसंस्कृति का प्राण है। ‘अंत्योदय से सर्वोदय’ का मंत्र आत्मसात करने वाली इस व्यवस्था में समाज के अंतिम पायदान पर मौजूद व्यक्ति शासन की शीर्ष प्राथमिकता में है। पहली बार कृषि और किसान राजनीतिक विमर्श के केंद्र में हैं।

युवाओं की आकांक्षाएं हौसले के पंख से उड़ान भर रही हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कामरूप तक देश का प्रत्येक नागरिक राष्ट्र आराधना में रत है। आमजन में शासन के प्रति एक विश्वास है। संभवतः गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऐसी ही व्यवस्था के लिए ‘रामराज्य’ की संज्ञा दी है।

यह साधारण नहीं कि प्रधानमंत्री किसी राष्ट्रीय पर्व पर देशवासियों से स्वच्छता पर बातें करें। सामान्यतः स्वच्छता जैसे विषय कभी नेतृत्व के विमर्श के विषय नहीं बनते थे, लेकिन यह उनके नेतृत्व की दूरदर्शिता है कि आज स्वच्छता भारत में जनांदोलन का स्वरूप ले चुका है।

वंशवादी राजनीति के रूप में राजतंत्र की छाया में 70 वर्ष बिताने वाले देश में यह कल्पनातीत था कि कभी प्रधानमंत्री सफाईकर्मियों का चरण प्रक्षालन करें। कोरोना काल में अपने नेता के प्रत्येक आह्वान पर पूरा देश अनुशासित रहा। यह तभी संभव होता है, जब सामान्य नागरिक को नेतृत्व की नीति और नीयत पर अटूट विश्वास होता है। स्वतंत्र्योत्तर भारत में यह पूंजी अर्जित करने वाले मोदी जी एकमात्र नेता हैं।

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा देशवासियों के लिए ‘मेरे परिवारजन’ का संबोधन हर भारतीय के मन में अपनत्व का भाव भर देता है। आस्था और अर्थव्यवस्था के प्रति समदर्शी भाव रखने वाले प्रधानमंत्री की अवधारणा विकास और विरासत को साथ-साथ लेकर चलने की रही है।

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500 वर्षों की प्रतीक्षा के उपरांत अवधपुरी में श्रीरामजन्मभूमि मंदिर लोकार्पित होने को तैयार है। पूरी दुनिया टकटकी लगाए अयोध्या को निहार रही है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम, केदारनाथ धाम पुनरोद्धार, उज्जयिनी में महाकाल का महालोक जैसे बहुप्रतीक्षित कार्यों ने सदियों से आहत आस्था को पुनः प्रफुल्लित होने का अवसर दिया है।

हाल में ही हुआ नवीन संसद भवन का उद्घाटन

हाल में नवीन संसद भवन का भी उद्घाटन हुआ। भारतीयता की सुगंध से सुवासित लोकतंत्र का यह मंदिर हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना, लोक-कल्याण की भावना और सनातन की सात्विक मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करता है। यहां शोभायमान ‘सेंगोल’ हमें समृद्ध सांस्कृतिक अतीत का बोध कराता है। यह सच्चे अर्थों में ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की समेकित तस्वीर है।

विगत साढ़े नौ वर्षों में न केवल हम भारतीय, वरन समूचा विश्व एक ‘नए भारत’ के निर्माण का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। मंगल, चंद्रमा और सूर्य पर ‘भारत उदय’ को पूरा विश्व बड़ी आतुरता के साथ निहार रहा है। यह नया भारत है जिसकी संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों को अपनाने में विश्व का हर देश स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता है, तो यह अपनी आस्था, अस्मिता और अर्थव्यवस्था के प्रति सजग और संवेदनशील भी है।

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प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को सूक्ष्मता से देखें तो उसमें व्यवहारिकता और आदर्शवादिता, दोनों ही गुणों का सुंदर समन्वय परिलक्षित होता है। उनमें एक स्टेट्समैन है तो किसी अबोध बालक सी निर्मलता भी।

गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर 140 करोड़ भारतीयों के प्रधानसेवक बनने तक की लगभग सवा दो दशकों की उनकी यात्रा का पग-पग चुनौतियों और संघर्षों से भरा रहा है। यह उनका विलक्षण व्यक्तित्व ही है कि काल के कपाल पर लिखते-मिटाते, हर बाधा को पार करते हुए अपने संकल्पों की सिद्धि हेतु सतत चलायमान हैं।

भारत दुनिया के लिए बना मार्गदर्शक

कोरोना के बाद एक नया भू-राजनीतिक समीकरण तेजी से आगे बढ़ा है। वैदेशिक संबंधों की पुरानी परिभाषाएं बदल रही हैं। ऐसे अवसर पर भारत दुनिया के लिए मार्गदर्शक बन कर उभरा है। आज दुनिया में कहीं भी कोई मानवीय संकट हो, हर देश भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देखता है।

हाल में संपन्न जी-20 की सफलता ने भारत को नई विश्व व्यवस्था के केंद्र में ला खड़ा किया है। आज भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुका है। अफ्रीकी संघ को जी-20 की सदस्यता दिलाना, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनामिक कारिडोर का निर्माण और सर्व सहमति से नई दिल्ली घोषणा पत्र जारी करने का सफल प्रयास वैश्विक पटल पर ‘ब्रांड भारत’ को और विश्वसनीय बनाने वाला सिद्ध हुआ है।

भारत की सेना आज सर्वकालिक दक्ष, साधन संपन्न, स्वतंत्र और आत्मविश्वास से भरी है। प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के साथ ही भारत की विदेश नीति में क्रांतिकारी परिवर्तन को दुनिया ने देखा और सराहा है। ‘राष्ट्र प्रथम’ के संकल्प के साथ भारत ने वैदेशिक संबंधों में बहुपक्षीय नीति को अपनाया है।

पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक हो, चीन की अराजक गतिविधियों का यथोचित प्रत्युत्तर हो या यूक्रेन के मुद्दे पर यूरोप और अमेरिका को सीधा जवाब हो, भारत ने स्पष्ट शब्दों में दृढ़ता से अपना पक्ष रखा। यह मोदीजी के नेतृत्व का कौशल ही है कि आज जब भारत बोलता है तो पूरी दुनिया सुनती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में आज पूरा भारत आजादी के अमृतकाल के महान संकल्पों से जुड़ चुका है। लाल किले की प्राचीर से उद्घोषित ‘पंच प्रण’ इन संकल्पों का आत्मा है, जिसकी पूर्ति में पूरा देश समवेत स्वर और एकनिष्ठ भाव के साथ अपनी भूमिका निभाने के लिए तत्पर है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘विकसित भारत’ का स्वप्न अब यथार्थ होने की ओर अग्रसर है।

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