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Dhanteras 2021: कौन हैं भगवान धनवंतरि, जानें-धनतेरस पर क्यों की जाती है इनकी पूजा

कार्तिक मास की शरद पूर्णिमा के बाद मौसम में आए बदलाव का असर हमारे शरीर पर पड़ता है। गर्मी से ठंड के एहसास के इस मौसम में मनाई जाने वाली धनवंतरि जयंती भी स्वास्थ्य के प्रति सजगता का एहसास कराती हैं। इसके बगैर बुद्धि विद्यावैभव बल संपदा सब बेकार है।

By Vikas MishraEdited By: Updated: Wed, 03 Nov 2021 07:17 AM (IST)
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प्रोफेसर डा. संजीव रस्तोगी ने बताया कि निरोगी काया की कामना से जुड़ा है भगवान धनवंतरि की आराधना।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। कार्तिक मास की शरद पूर्णिमा के बाद मौसम में आए बदलाव का असर हमारे शरीर पर पड़ता है। गर्मी से ठंड के एहसास के इस मौसम में मनाई जाने वाली धनवंतरि जयंती भी स्वास्थ्य के प्रति सजगता का एहसास कराती हैं। इसके बगैर बुद्धि, विद्या,वैभव, बल, संपदा सब बेकार है। एक ओर उत्तम हष्ट-पुष्ट बलिष्ठ शरीर, वैयक्तिक संपत्ति कही जाती है, वहीं वैभव,धन, सम्पदा, साधन संपत्ति के रूप में जाने जाते हैं। राजकीय आयुर्वेद महाविद्याल के प्रोफेसर डा. संजीव रस्तोगी ने बताया कि निरोगी काया की कामना से जुड़ा है भगवान धनवंतरि की आराधना।

मौसम में आए बदलाव से खुद को सचेत रहने का संदेश देने का पर्व यह जयंती। मान्यता है कि धनवंतरि त्रयोदशी (धनतेरस) को ही समुद्र मंथन से धन-धान्य एवं रत्नादि संपदा के स्वामी कुबेर का आविर्भाव हुआ। अत: दीपदान, मिठाइयां, नूतन वस्त्र, धातु-पात्र, नए बही खाते एवं कलम-दवात की पूजा भी व्यापारी वर्ग करता है। रात्रि देर तक बाजारों में क्रय-विक्रय का मेला चलता है। आयुर्वेदाचार्य व पूर्व राजवैद् डा.शिवशंकर त्रिपाठी ने बताया कि वास्तव में धनतेरस शारीरिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य समृद्धि का पर्व है। ऐसा काल चक्र चला कि हम शारीरिक स्वास्थ्य को भूल गए तथा सामाजिक स्वास्थ्य की प्रधानता के साथ धनतेरस को केवल सम्पदा विनिमय का पर्व मानने लगे। यह सब मुद्रा के मूल्यांकन की महत्ता के समाज में व्याप्त होने से जुड़ा हुआ है। वस्तुत: धनतेरस सभी के लिए स्वास्थ्य एवं सुख-समृद्धि का पर्व है। 

आयुष मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से वर्ष 2016 से प्रत्येक वर्ष धनतेरस को 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रुप में मनाने की लिए घोषणा की। भारतीय पौराणिक विश्वास के अनुसार मानव जीवन को सुगम बनाने के लिए बुद्धिजीवियों मिलकर सामाजिक विचार मंथन किया। दोनों ने एकमत से यह तय पाया कि जीवन चलाने के लिए नियंत्रण विधान एवं साधन संपन्नता अपेक्षित है। साधन प्राप्ति हेतु पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त जलराशि क्षीर सागर को लक्ष्य बनाकर समुद्र मंथन कर उससे प्राप्त प्रतीकों का प्रयोग जीवन निर्वाह हेतु आरम्भ किया। समुद्र मंथन वास्तव में मानव जीवन में किये जाने वाले कर्म का प्रतीक है। समुद्र मंथन से हमे जो प्रेरणा मिलती है उसमें वैयक्तिक और सामाजिक दोनों प्रकार की संपदाओं का समावेश होता है।

राजकीय आयुर्वेद महाविद्याल के प्रोफेसर डा.संजीव रस्तोगी ने बताया कि समुद्र मंथन से सुरों व असुरों ने शाश्वत एवं सनातन जीवन के प्रतीक अमृत को प्राप्त किया। अमृत प्राप्ति का दिन शरद पूर्णिमा के रूप में प्राकृतिक मन को प्रसन्न एवं शीतल चंद्रमा के धवल प्रकाश में मनाया जाता है इसीलिए 'अमृत क्षीर भोजन की परंपरा शरद पूर्णिमा से जुड़ी है और उसे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। अमृत प्राप्त कर जीवन की सार्थकता का आभास होने पर स्वास्थ्य देवता का समुद्र से आविर्भाव हुआ। इस देवता का नाम धनवंतरि है।

यह जीवन को नष्ट करने या हानि पहुंचाकर शीघ्र नष्ट करने वाले रोगों से मुक्ति देने के लिए आयुर्वेद चिकित्सा-शास्त्र के उपदेशक तथा दीर्घायु प्राप्त कर जीवन को सार्थक बनाने वाले स्वास्थ्य की रक्षा के उपायों के प्रणेता के रूप में समूचे देश में जाने माने और पूजे जाते हैं। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मध्याह्न काल में इनका आविर्भाव होने से इनकी पूजा अर्चना की जाती है तथा इनसे हम श्रेष्ठ-बलिष्ठ स्वास्थ्य की याचना करते हैं। धनवंतरि को देवताओं के चिकित्सक, मानवों के लिए चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के प्रवर्तक और 24 अवतारों में से एक विष्णु के विग्रह, यज्ञ भोक्ता देवतत्व के रूप में माना जाता है।

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