Move to Jagran APP

अयोध्‍या में गुमनामी बाबा की दीर्घा में है बहुत कुछ खास, अब बस खुलने का इंतजार

रामकथा संग्रहालय में गुमनामी बाबा के नाम की दीर्घा तीन वर्ष पूर्व से तैयार है। इसके नवीनीकरण की योजना से दीर्घा खुलने में अड़चन आ रही। 16 सितंबर 1985 को चिरनिद्रा में लीन हुए बाबा के पास से बरामद वस्तुओं से उनका समीकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस से किया जाता है।

By Anurag GuptaEdited By: Updated: Sat, 28 Nov 2020 06:30 AM (IST)
Hero Image
अभी वर्षों तक करनी होगी बाबा के वस्तुओं के प्रदर्शन की प्रतीक्षा।
अयोध्या, [रघुवरशरण]। नेताजी सुभाषचंद्र बोस बताए जाने वाले गुमनामी बाबा की वस्तुएं अंतरराष्ट्रीय रामकथा संग्रहालय में तीन वर्ष पूर्व संरक्षित कर ली गईं, पर उनका प्रदर्शन वर्षों से संभव नहीं हो पा रहा है। प्रदर्शन के लिए बाबा की दीर्घा को कभी शो केस की फनिशि‍ंग का इंतजार रहा, तो कभी एसी लगने का। अब जब सब कुछ ओके हो गया है, तब संग्रहालय के कायाकल्प की योजना के चलते बाबा की दीर्घा प्रदर्शन के लिए खुलने का इंतजार और लंबा हो गया है।

संग्रहालय के उपनिदेशक योगेशकुमार के अनुसार सात साल पूर्व तैयार संग्रहालय का नया भवन भव्य तो था, पर उसमें कुछ कसर रह गयी थी। सर्वाधिक कमी संग्रहालय के ऊपर डोम न होने की लेकर है। डोम के अभाव में बरसात का पानी सीधे संग्रहालय की नींव में जमा होता है और बरसात के दिनों में संग्रहालय का भूतल प्राय: जलभराव का शिकार होता है। इस कमी से निपटने के लिए करीब 20 करोड़ की लागत से संग्रहालय के कायाकल्प की योजना प्रस्तावित है।

उपनिदेशक के अनुसार इस प्रस्ताव पर अमल तय है, पर संग्रहालय का नवनिर्माण पूरा होने में तकरीबन दो से तीन वर्ष का समय लग सकता है। ऐसे में बाबा की दीर्घा खुलने के लिए भी दो-तीन वर्ष इंतजार करना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि संग्रहालय के नवनिर्माण के बीच बाबा की दीर्घा खुलनी उचित नहीं होगी और निर्माण की आपा-धापी के बीच दीर्घा में संरक्षित बाबा की वस्तुएं सुरक्षित रखना कठिन होगा। 

वस्तुओं से परिभाषित होता है नेताजी से गहरा रिश्ता

रामनगरी के ही जुड़वा फैजाबाद शहर के सिविल लाइंस स्थित रामभवन में 16 सितंबर 1985 को गुमनामी बाबा ने अंतिम श्वांस ली थी। बाबा के पास से सूचीबद्ध 2760 वस्तुएं बरामद की गयी थीं। इनमें पवित्रमोहन राय, सुनीलदास गुप्त, आशुतोष काली आदि जैसे आजाद हि‍ंंद फौज के पदाधिकारियों के पत्र, 1946 से 49 के बीच अखबारों में प्रकाशित नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कथित विमान दुर्घटना में मौत और उससे जुड़ी खबरों की कतरन, नेताजी की कथित मौत की जांच के लिए गठित खोसला एवं शाहनेवाज आयोग की रिपोर्ट, अंतरराष्ट्रीय युद्धनीति एवं कूटनीति पर केंद्रित पुस्तकों के अलावा बांग्ला, अंग्रेजी एवं हि‍ंंदी का प्रचुर साहित्य, नेताजी के परिवार की अनेक तस्वीरें, जापानी ट्रांजिस्टर, जर्मनी की दूरबीन, आजाद हि‍ंंद फौज के कमांडर की वर्दी आदि प्रमुख थी। इन वस्तुओं से बाबा का नेताजी से समीकरण स्थापित होता था। नेताजी की भतीजी ललिता बोस की याचिका पर फरवरी 1987 में यह वस्तुएं हाईकोर्ट के आदेश पर जिला कोषागार के डबल लॉक में रखी गयी हैं।

बाबा की वस्तुओं की उपेक्षा मतलब चमत्कारिक इतिहास की उपेक्षा

जनवरी 2013 में रामभवन के उत्तराधिकारी एवं सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के अध्यक्ष शक्ति सि‍ंंह की याचिका पर हाईकोर्ट ने कोषागार में दशकों से पहचान खो रहीं बाबा की वस्तुएं संग्रहालय में नये सिरे से संरक्षित-प्रदर्शित करने का आदेश दिया और इसी आदेश के अनुपालन में तीन-चार वर्ष की मशक्कत के बाद बाबा की 2760 वस्तुओं में से चुनि‍ंंदा 425 वस्तुएं संग्रहालय में स्थापित तो कर दी गयीं, पर उनका प्रदर्शन संभव नहीं हो पा रहा है। शक्ति सि‍ंंह का कहना है कि बाबा की वस्तुओं की उपेक्षा चमत्कारिक इतिहास की उपेक्षा है। उनका मानना है कि बाबा के पास से बरामद वस्तुओं का यदि तथ्यात्मक विवेचन किया जाय, तो यह इतिहास उद्घाटित होना असंभव नहीं है कि गुमनामी बाबा के रूप में देश के महानतम नायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस भूमिगत जीवन व्यतीत कर रहे थे।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।