पेपर लीक के मामले में कटघरे में थी योगी सरकार, अध्यादेश के जरिए दिया कड़ा संदेश; इस कारण नहीं कस पा रहा था शिकंजा
उत्तर प्रदेश में CM योगी ने उप्र सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) 2024 अध्यादेश लागू कर पेपर लीक मामले में बड़ा संदेश दिया है। इस मोर्चे पर विपक्ष लोकसभा चुनावों के दौरान भी घेराबंदी करता रहा। एक के बाद एक कई पेपर्स के लीक हो जाने के कारण पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में आ गया था। ऐसे में सरकार के लिए भी सख्त संदेश देना जरूरी था।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। निष्पक्ष व नकलविहीन परीक्षाएं संपन्न कराने की दिशा में राज्य सरकार ने उप्र सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) 2024 अध्यादेश लागू कर एक बड़ा कदम बढ़ाया है। प्रदेश में एक के बाद एक कई परीक्षाओं में साल्वर गिरोह सेंधमारी कर चुके हैं। सिपाही भर्ती और फिर समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी (आरओ/एआरओ) भर्ती परीक्षा के पेपर लीक होने के बाद तो पूरे तंत्र पर बड़े सवाल खड़े हुए थे।
आरक्षी नागरिक पुलिस के 60,244 पदों पर भर्ती के लिए 48 लाख से अधिक अभ्यर्थियों की मेहनत पर पानी फिर गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर सरकार को घेरा भी था। प्रदेश में पूर्व में दारोगा भर्ती, अध्यापक पात्रता परीक्षा (TET), एसएससी की मल्टी टास्किंग स्टाफ परीक्षा, हाई कोर्ट की ग्रुप सी व डी की परीक्षा, यूपीपीसीएल की अवर अभियंता भर्ती की आनलाइन परीक्षा समेत अन्य परीक्षाओं में साल्वर गिरोह सेंधमारी करते रहे।
अलग-अलग परीक्षाओं में सक्रिय गिरोह के सक्रिय सदस्यों व साल्वर को एसटीएफ ने पकड़ा भी पर लचर कानून होने के चलते उन पर पूरी तरह से शिकंजा नहीं कसा जा सका। साल्वर गिरोह के कई सदस्य तो एक के बाद एक दूसरी परीक्षाओं में गड़बड़ी करने में शामिल रहे। सिपाही भर्ती के लिए 18 व 19 फरवरी को हुई लिखित परीक्षा हुई थी, जिसका पेपर लीक हो गया था ऐसे ही 11 फरवरी को हुई आरओ/एआरओ परीक्षा में भी गड़बड़ी सामने आई।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पेपर लीक के दोनों ही मामलों को बेहद गंभीरता से लिया था। उप्र पुलिस भर्ती व प्रोन्नति बोर्ड की अध्यक्ष रेणुका मिश्रा को उनके पद से हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया गया था। मुख्यमंत्री ने सिपाही भर्ती व आरओ/एआरओ की परीक्षा निरस्त कर छह माह के भीतर दोबारा परीक्षा कराए जाने का निर्देश दिया था। दोनों प्रकरणों की जांच एसटीएफ को सौंपे जाने के साथ ही पेपर लीक कराने वाले गिरोह पर कठोर कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लिए कानून को और सख्त किए जाने कसरत भी शुरू हुई थी।
वर्षां पुराने अधिनियम में थी अधिकतम दो वर्ष की सजा
नए कानून पेपर लीक कराने व साल्वर गिरोह के सदस्यों की कमर तोड़ने वाला होगा। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार अब तक पेपर लीक व नकल के मामलों में उप्र सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) 1988 के तहत कार्रवाई करती थी। जिसके तहत गंभीर मामलों में अधिकतम दो वर्ष की सजा का प्रावधान था। जबकि अन्य मामलों में एक वर्ष की सजा की ही व्यवस्था थी। इसके चलते नकल माफिया पर शिकंजा नहीं कस पा रहा था।एक अन्य अधिकारी के अनुसार आनलाइन परीक्षा में गड़बड़ी के मामले में पुलिस आइटी एक्ट का भी प्रयोग करती थी। इसके अलावा जिन मामलों में कूटरचित दस्तावेजों का प्रयाेग हाेता था, उनमें धोखाधड़ी की संबंधित धारा में अधिकतम 10 वर्ष की सजा है। आरोपितों की अपराध से जुटाई गई काली कमाई को जब्त करने के लिए गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई करनी पड़ती थी। पहली बार कानून में बड़े बदलाव से आरोपितों पर अब नजीर कार्रवाई संभव हो सकेगी। अब अपराध गैरजमानती होने की वजह से दोषियों को जल्द राहत भी नहीं मिल सकेगी।
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