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मेरी आंखों के सामने ही नाथूराम ने मारी थी बापू को गोली

महोबा के 98 वर्षीय रामाधार मिश्र का दावा, बोले मैं भी बिड़ला मंदिर में मौजूद था। उस वक्त आर्मी ट्रांसपोर्ट में राशन ढोने का काम करते थे रामाधार, कारगिल में भी रहे तैनात।

By AbhishekEdited By: Updated: Tue, 02 Oct 2018 09:00 AM (IST)
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मेरी आंखों के सामने ही नाथूराम ने मारी थी बापू को गोली

महोबा [देवेंद्र मिश्र]। बड़ा ही कलुषित दिन था वो। हर दिन की तरह मैं भी 1948 की उस 30 जनवरी को बिड़ला मंदिर गांधी जी के प्रवचन सुनने गया था। शाम पौने सात बजे जब गांधी जी प्रवचन देकर उठे तो भीड़ में शामिल नाथूराम गोडसे ने उन्हें गोली मार दी। गांधी जी वहीं गिर पड़े। मैं अवाक रह गया। कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या करूं। बस ये विचार आया कि ऐसे आदमी (नाथूराम) का इस धरा पर रहना बेकार है जो ऐसे महापुरुष की हत्या कर दे।

यह कहना है 98 वर्षीय महोबा जिले के ग्राम बघारी निवासी रामाधार मिश्र का। उनका दावा है कि जब नाथूराम ने गांधी जी को गोली मारी तो वे भी बिड़ला मंदिर में मौजूद थे। वह बताते हैं कि उन दिनों वे दिल्ली में ही 710-जीटीसी कंपनी आर्मी ट्रांसपोर्ट में तैनात थे और फौज का राशन ढोने का काम करते थे। उसके बाद स्थानांतरण अंबाला हो गया।

दिल्ली में तैनाती के दौरान वह अक्सर बिड़ला मंदिर गांधी जी के प्रवचन सुनने के लिए जाते थे। एक बार गांधी जी को स्पर्श करने का भी सौभाग्य मिला था। 30 जनवरी के उस घटनाक्रम को याद कर कहते हैं कि गोली मारने के बाद वहां मौजूद लोगों ने नाथूराम को पकड़ लिया था। सबके मन में बस यही सवाल था कि ऐसा महापुरुष जो सत्य अङ्क्षहसा व समानता की बात करता है। सच्चाई की शिक्षा देता है सभी से सहानुभूति रखता है उसके साथ ऐसा क्यों किया गया।

प्रधानमंत्री राहत कोष को देते हैं पेंशन

वयोवृद्ध रामाधार मिश्र कहते हैं कि गांधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वह कारगिल में तैनाती के दौरान का एक वाकया बताते हैं कि जब उन्होंने चार-पांच पाकिस्तानियों को देखा तो ललकारा। इस पर जवानों ने घेर कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसी दौरान हाथ में गोली लगी, लेकिन उन्हें प्रमोशन देकर वारंट अफसर बना दिया गया। कुछ दिनों बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और गांधी जी के प्रभाव के कारण ही अपनी पेंशन प्रधानमंत्री राहत कोष को दान कर दी। आज भी पेंशन वहीं जाती है।

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