Mainpuri Lok Sabha: मैनपुरी में मचा चुनावी घमासान, डिंपल के सामने जयवीर बने चुनौती; BSP ने बिगाड़ा जातीय समीकरण का खेल
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में चुनावी रण को बिसात बिछ चुकी है। इस क्षेत्र को समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। बीते 28 सालों से यहां की चुनावी रेस में साइकिल ही सबसे आगे रही। भाजपा के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मैदान में आते ही चुनाव अंगड़ाई लेने लगा है। बसपा ने शाक्य चेहरे गुलशन देव शाक्य को मैदान में उतार जातीय समीकरणों को गड़बड़ा दिया है।
दिलीप शर्मा, मैनपुरी। मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में चुनावी रण को बिसात बिछ चुकी है। इस क्षेत्र को समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। यह विशेषण भी यूं ही नहीं है। बीते 28 सालों से यहां की चुनावी रेस में साइकिल ही सबसे आगे रही। नीले खेमे का ‘हाथी’ जीत की दौड़ में जब भी शामिल हुआ, थककर पिछड़ गया। ‘कमल’ ने भी कई बार खिलने की कोशिश, परंतु जीत की सुगंध नहीं बिखेर सका।
जीत का रिकॉर्ड कायम रखने को सपा ने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पर दूसरी बार दांव लगाया है। इससे पहले वह उपचुनाव में सांसद बनी थीं। सियासी विरासत को बनाए रखने के लिए वे जमकर पसीना बहा रही हैं। 2019 में वोट प्रतिशत की बड़ी उछाल लगा चुकी भाजपा पूरे उत्साह में है। भाजपा के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मैदान में आते ही चुनाव अंगड़ाई लेने लगा है। बसपा ने शाक्य चेहरे गुलशन देव शाक्य को मैदान में उतार जातीय समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। ऐसे में मैनपुरी के चुनावी मन में घमासान मच गया है। चुनावी परिदृश्य पर दिलीप शर्मा की रिपोर्ट...
मैनपुरी रहा है मुलायम सिंह की राजनीतिक कर्मभूमि
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक कर्मभूमि रहा है। सही मायनों में इस क्षेत्र में सपा का दबदबा मुलायम सिंह यादव ने ही कायम किया। मुलायम सिंह ने दो बार सीट छोड़ी और दोनों बार अपने परिवार के सदस्यों को सांसद बनाया। 2022 में उनके निधन के बाद उपचुनाव में भी उनकी पुत्रवधू डिंपल यादव सांसद बनीं। सपा के इस दबदबे के लिए क्षेत्र में यादव मतदाताओं की बहुलता को सबसे बड़ी वजह मानी जाती है।चार लाख से अधिक हैं यादव मतदाता
लोकसभा क्षेत्र में चार लाख से अधिक यादव मतदाता हैं। इनके बाद शाक्य मतदाता ढाई लाख से अधिक हैं। यादवों के लगभग पूरे समर्थन और अन्य जातियों के साथ से सपा के प्रत्याशी विरोधियों को धूल चटाते रहे। हालांकि बीते कुछ सालों में सपा की जीत का यह समीकरण काफी कमजोर पड़ा है। सपा भी इस मुश्किल को समझ रही है। ऐसे में उसकी सबसे पहली कोशिश शाक्य मतदाताओं में बड़ी सेंध लगाने की है।
2022 में उपचुनाव से पहले पूर्व मंत्री आलोक शाक्य को जिलाध्यक्ष बनाकर यह दांव खेला गया था। इस बार सपा ने नजदीकी जिले एटा में शाक्य प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। इसके अलावा पार्टी अन्य जातियों के अपने नेताओं को प्रचार में उतारने की रूपरेखा भी तैयार कर रही है।
मैनपुरी में उतरे हैं राजनीति के अहम चेहरे
बीते एक माह से खुद डिंपल यादव प्रचार अभियान में लगी हैं। गांव-गांव चौपालों में नेताजी के पुराने नाते को याद दिला रही हैं। भोगांव निवासी कृष्ण स्वरूप शाक्य कहते हैं कि मैनपुरी क्षेत्र का सैफई परिवार से गहरा नाता है। बहुत से लोग जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर उनका साथ देते हैं। हालांकि इस बार की चुनौती कठिन होगी। उनकी यह बात भी यूं ही नहीं है। बीते कुछ सालों में भाजपा की बढ़ती ताकत सपा के इस गढ़ की दीवारों को हिलाती रही है।
2014 में भाजपा ने क्षत्रिय चेहरे के रूप में एसएस चौहान को मैदान में उतारा था। तब मुलायम सिंह ने उन्हें बड़े अंतर से हराया था। इसके बाद 2019 में भाजपा के संगठन के विस्तार का असर वोट संख्या में 20 प्रतिशत से ज्यादा का उछाला के रूप में दिखा। भाजपा प्रत्याशी को 44.01 प्रतिशत वोट मिले थे। वह भी तब जब, सपा का बसपा से गठबंधन था। हालांकि उपचुनाव करारी हार हुई, जिसे भाजपा सहानुभूति लहर का परिणाम मानती है।
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