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Mainpuri Lok Sabha: मैनपुरी में मचा चुनावी घमासान, डिंपल के सामने जयवीर बने चुनौती; BSP ने बिगाड़ा जातीय समीकरण का खेल

मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में चुनावी रण को बिसात बिछ चुकी है। इस क्षेत्र को समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। बीते 28 सालों से यहां की चुनावी रेस में साइकिल ही सबसे आगे रही। भाजपा के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मैदान में आते ही चुनाव अंगड़ाई लेने लगा है। बसपा ने शाक्य चेहरे गुलशन देव शाक्य को मैदान में उतार जातीय समीकरणों को गड़बड़ा दिया है।

By Swati Singh Edited By: Swati Singh Updated: Fri, 12 Apr 2024 09:31 AM (IST)
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मैनपुरी में मचा चुनावी घमासान, डिंपल के सामने जयवीर बने चुनौती; BSP ने बिगाड़ा जातीय समीकरण का खेल
दिलीप शर्मा, मैनपुरी। मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में चुनावी रण को बिसात बिछ चुकी है। इस क्षेत्र को समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता है। यह विशेषण भी यूं ही नहीं है। बीते 28 सालों से यहां की चुनावी रेस में साइकिल ही सबसे आगे रही। नीले खेमे का ‘हाथी’ जीत की दौड़ में जब भी शामिल हुआ, थककर पिछड़ गया। ‘कमल’ ने भी कई बार खिलने की कोशिश, परंतु जीत की सुगंध नहीं बिखेर सका।

जीत का रिकॉर्ड कायम रखने को सपा ने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव पर दूसरी बार दांव लगाया है। इससे पहले वह उपचुनाव में सांसद बनी थीं। सियासी विरासत को बनाए रखने के लिए वे जमकर पसीना बहा रही हैं। 2019 में वोट प्रतिशत की बड़ी उछाल लगा चुकी भाजपा पूरे उत्साह में है। भाजपा के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मैदान में आते ही चुनाव अंगड़ाई लेने लगा है। बसपा ने शाक्य चेहरे गुलशन देव शाक्य को मैदान में उतार जातीय समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। ऐसे में मैनपुरी के चुनावी मन में घमासान मच गया है। चुनावी परिदृश्य पर दिलीप शर्मा की रिपोर्ट...

मैनपुरी रहा है मुलायम सिंह की राजनीतिक कर्मभूमि

मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक कर्मभूमि रहा है। सही मायनों में इस क्षेत्र में सपा का दबदबा मुलायम सिंह यादव ने ही कायम किया। मुलायम सिंह ने दो बार सीट छोड़ी और दोनों बार अपने परिवार के सदस्यों को सांसद बनाया। 2022 में उनके निधन के बाद उपचुनाव में भी उनकी पुत्रवधू डिंपल यादव सांसद बनीं। सपा के इस दबदबे के लिए क्षेत्र में यादव मतदाताओं की बहुलता को सबसे बड़ी वजह मानी जाती है।

चार लाख से अधिक हैं यादव मतदाता

लोकसभा क्षेत्र में चार लाख से अधिक यादव मतदाता हैं। इनके बाद शाक्य मतदाता ढाई लाख से अधिक हैं। यादवों के लगभग पूरे समर्थन और अन्य जातियों के साथ से सपा के प्रत्याशी विरोधियों को धूल चटाते रहे। हालांकि बीते कुछ सालों में सपा की जीत का यह समीकरण काफी कमजोर पड़ा है। सपा भी इस मुश्किल को समझ रही है। ऐसे में उसकी सबसे पहली कोशिश शाक्य मतदाताओं में बड़ी सेंध लगाने की है।

2022 में उपचुनाव से पहले पूर्व मंत्री आलोक शाक्य को जिलाध्यक्ष बनाकर यह दांव खेला गया था। इस बार सपा ने नजदीकी जिले एटा में शाक्य प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। इसके अलावा पार्टी अन्य जातियों के अपने नेताओं को प्रचार में उतारने की रूपरेखा भी तैयार कर रही है।

मैनपुरी में उतरे हैं राजनीति के अहम चेहरे

बीते एक माह से खुद डिंपल यादव प्रचार अभियान में लगी हैं। गांव-गांव चौपालों में नेताजी के पुराने नाते को याद दिला रही हैं। भोगांव निवासी कृष्ण स्वरूप शाक्य कहते हैं कि मैनपुरी क्षेत्र का सैफई परिवार से गहरा नाता है। बहुत से लोग जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर उनका साथ देते हैं। हालांकि इस बार की चुनौती कठिन होगी। उनकी यह बात भी यूं ही नहीं है। बीते कुछ सालों में भाजपा की बढ़ती ताकत सपा के इस गढ़ की दीवारों को हिलाती रही है।

2014 में भाजपा ने क्षत्रिय चेहरे के रूप में एसएस चौहान को मैदान में उतारा था। तब मुलायम सिंह ने उन्हें बड़े अंतर से हराया था। इसके बाद 2019 में भाजपा के संगठन के विस्तार का असर वोट संख्या में 20 प्रतिशत से ज्यादा का उछाला के रूप में दिखा। भाजपा प्रत्याशी को 44.01 प्रतिशत वोट मिले थे। वह भी तब जब, सपा का बसपा से गठबंधन था। हालांकि उपचुनाव करारी हार हुई, जिसे भाजपा सहानुभूति लहर का परिणाम मानती है।

आक्रामक अंदाज में माहौल बना रही है भाजपा

इस बार भाजपा आक्रामक अंदाज में माहौल बनाने में जुटी है। इस बार पार्टी अपनी योजनाओं के लाभ, विकास की राजनीति के मुद्दों पर मतदाताओं को जोड़ रही है। पार्टी ने इस बार पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह को नई रणनीति के साथ मैदान में उतारा है। जयवीर सिंह का मैनपुरी से पुराना नाता रहा है। वह घिरोर विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 2002 और 2007 में बसपा की टिकट पर विधायक रह चुके हैं। वर्ष 2022 में सदर सीट पर सपा के वर्चस्व को तोड़कर जीत हासिल की थी।

पर्यटन मंत्री बनने पर जयवीर सिंह ने बदली तस्वीर

पर्यटन मंत्री बनने के बाद जयवीर सिंह ने जिले में धर्मस्थलों के पर्यटन विकास और सुंदरीकरण के कार्य कराए। जिले में अंतरराष्ट्रीय स्तर के ऑडिटोरियम और संग्रहालय का निर्माण शुरू हो चुका है। पार्टी मान रही है कि विकास कार्यों और जयवीर सिंह की क्षेत्र में पकड़ का लाभ चुनाव में मिलेगा। शहर निवासी मनोज अग्रवाल कहते हैं कि इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी बहुत बढ़ी है। दूसरी तरफ जयवीर सिंह ने क्षेत्र में काफी काम कराए हैं। ऐसे में सपा के लिए जीतना आसान नहीं होगा। हालांकि चुनावी मैदान में बसपा की मौजूदगी दोनों दलों को बेचैन किए हुए है।

पूर्व चुनाव परिणामों पर एक नजर

वर्ष 2019 के चुनाव में सपा से गठबंधन के चलते बसपा मैदान में नहीं थी। परंतु इस बार बसपा ने गुलशन देव शाक्य को प्रत्याशी बनाया है। पूर्व के चुनावों में दलित वोटों का भाजपा और सपा में बंटवारा हो गया था। इस बार बसपा प्रत्याशी के आने से यह समीकरण गड़बड़ा सकता है। दूसरी तरफ शाक्य मतों की घेराबंदी में भी मुश्किल होगी। वर्ष 2004 और 2009 के चुनाव में बसपा ने सपा को सीधी टक्कर दी थी। हालांकि इसके बाद 2014 में पार्टी प्रत्याशी तीसरे नंबर पर खिसका, परंतु इसके बाद बावजूद बसपा की चुनौती को कम नहीं आंका जा रहा।

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