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सपा के गढ़ में जयवीर सिंह पर इतिहास रचने की चुनौती, तीन वजह जो बढ़ा सकती हैं डिंपल यादव की मुश्किलें

समाजवादी पार्टी का गढ़ जीतने की जिम्मेदारी इस बार पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह पर है। बीते 10 चुनावों में केसरिया खेमा इस सीट पर जीत की अपनी मंशा पूरी नहीं कर सका है। वर्ष 2014 और 2019 में मोदी लहर के बीच भी इस लोकसभा सीट पर समाजवादी ध्वज ने अपनी ताकत दिखाई थी। मुलायम के निधन के बाद उपचुनाव में भी भाजपा का स्वप्न साकार नहीं हुआ।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Tue, 23 Apr 2024 08:16 AM (IST)
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डिंपल यादव के सामने जयवीर सिंह पर इतिहास रचने की चुनौती
दिलीप शर्मा, मैनपुरी। (Lok Sabha Election 2024) समाजवादी पार्टी का गढ़ जीतने की जिम्मेदारी इस बार पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह पर है। बीते 10 चुनावों में केसरिया खेमा इस सीट पर जीत की अपनी मंशा पूरी नहीं कर सका है। वर्ष 2014 और 2019 में मोदी लहर के बीच भी इस लोकसभा सीट पर समाजवादी ध्वज ने अपनी ताकत दिखाई थी। मुलायम के निधन के बाद उपचुनाव में भी भाजपा का स्वप्न साकार नहीं हुआ।

अब भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह आक्रामक रणनीति के साथ चुनाव में उतर चुके हैं। प्रत्याशी के सामने सपा को हराकर इतिहास रचने की चुनौती है। भाजपा ने पहली बार वर्ष 1991 में रामनरेश अग्निहोत्री (वर्तमान में भाजपा से भोगांव विधायक) को मैदान में उतारा था। सामने थे जनता पार्टी के उदयप्रताप सिंह।

उस चुनाव में भाजपा दूसरे स्थान पर रही थी। इसके बाद से भाजपा के भाग्य को पराजय का ग्रहण लगा हुआ है। वर्ष 1996, 1998 और 1999 के चुनावों में दूसरे नंबर पर रहने वाली भाजपा, वर्ष 2004 और 2009 के चुनावों में तीसरे स्थान तक खिसक गई थी। हालांकि इसके बाद भाजपा ने धीरे-धीरे बढ़ना शुरू किया, फिर भी जीत की देहरी तक नहीं पहुंच पाई लेकिन फिर भी तीन वजह हैं, जो कि सपा प्रत्याशी डिंपल यादव की मुश्किलें खड़ी कर रही हैं।

भाजपा के संगठन में आई मजबूती

इस बार भाजपाई खेमा पूरे जोश में नजर आ रहा है। इसकी वजह यह भी है कि बीते कुछ सालों भाजपा का संगठन भी पहले से मजबूत हुआ है। इस बार भाजपा सभी वर्गों के वोटों की गोलबंदी में लगी है। इस बार रणनीति बदलते हुए यादव मतों में सेंधमारी की कोशिश भी की जा रही है।

चूंकि पार्टी प्रत्याशी जयवीर स्थानीय विधायक हैं और उन्होंने धर्मस्थलों के पर्यटन विकास के कई काम कराएं हैं, इससे भी पार्टी को फायदे की उम्मीद है। परंतु सपा के गढ़ को ढहाने के लिए भाजपा के सामने मत प्रतिशत के बड़े अंतर को पाटने की चुनौती है।

इसलिए उत्साह में है भाजपा

पूर्व के चुनावों में भाजपा जब-जब मैदान में उतरी उसका संगठन बहुत मजबूत नहीं था। करहल, किशनी और जसवंतनगर विधानसभाओं के तो सैकड़ों बूथ ऐसे रह जाते थे, जहां पार्टी के बस्ते तक नहीं लग पाते थे।

2014 के बाद से अब तक संगठन का जबर्दस्त विस्तार हुआ है। लगभग हर बूथ पर भाजपा अपनी समितियां गठित कर चुकी है। इसी विस्तार के बूते भाजपा ने 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के जीत को अंतर को 94 हजार मतों तक समेट दिया था।

2022 में हुए विधानसभा चुनाव में मैनपुरी जिले की चार विधानसभा सीटों में से दो पर जीत हासिल की थी। भाजपा अब 2019 के चुनाव को आगे रखकर प्रचार में जुटी है।

इसलिए बड़ी है सपा को हराने की चुनौती

सपा का वर्ष 1996 के बाद से अब तक वर्चस्व कायम हैं। 2022 में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में सपा ने पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारा था।

डिंपल यादव ने भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य को 2.88 लाख वोटों के बड़े अंतर से हराकर जीत हासिल की थी। इस बार भी सपा ने डिंपल यादव को ही प्रत्याशी बनाया है। डिंपल यादव खुद प्रचार की कमान संभाले हुए हैं और गांव-गांव जाकर मतदाताओं ने जनसंपर्क कर रही हैं।

2.6 से 44 प्रतिशत वोट तक पहुंच चुकी है भाजपा

अब तक लड़े 11 लोकसभा चुनावों में भाजपा अधिकतम 44.01 प्रतिशत वोट तक पहुंच चुकी है। 1991 में पार्टी को 26.57 फीसद वोट मिले थे। इसके बाद 1998 में 40.06 फीसद वोट मिले। 2004 के उपचुनाव में 2.6 फीसद, 2009 के चुनाव में 8.10 प्रतिशत वोट मिले। 2014 के चुनाव में वोट का आंकड़ा बढ़ा और 14.29 प्रतिशत वोट मिले।

2014 के उपचुनाव में भाजपा 33 प्रतिशत वोट तक पहुंची। 2019 के चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को अब तक के सर्वाधिक 44.01 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। हालांकि 2022 के उपचुनाव में भाजपा नुकसान हुआ और उसे 34.39 प्रतिशत वोट मिले थे।

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