Move to Jagran APP

Karhal By Election: जिसे एक बार जिताया उस पर कई-कई बार जताया भरोसा, समझिए करहल सीट का समीकरण

मैनपुरी के करहल विधानसभा क्षेत्र में मतदाता अक्सर एक ही नेता पर भरोसा बनाए रखते हैं भले ही वह दल बदल लें। चुनावी इतिहास से पता चलता है कि मतदाता कई नेताओं को लगातार दो तीन या पांच बार तक जिताते रहे हैं। इस सीट का गठन 1957 में हुआ और तब से करहल के मतदाता अपने पसंदीदा नेताओं के प्रति वफादार रहे हैं।

By Dileep Sharma Edited By: Aysha Sheikh Updated: Wed, 13 Nov 2024 09:23 PM (IST)
Hero Image
चेहरों पर रीझते हैं करहल के मतदाता
दिलीप शर्मा, मैनपुरी। करहल विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं का मिजाज एक ही नेता पर कई-कई बार भरोसा जताने का रहा है। मतदाता चेहरों पर रीझते रहे हैं। जिस पर एक बार भरोसा जताया, उसका साथ एकदम से नहीं छोड़ा। किसी को दो बार, किसी को तीन बार तो किसी को पांच बार विधानसभा तक पहुंचाया।

भले ही चुने हुए चेहरे, अगले चुनाव में दल बदल लें, परंतु जीत उनको ही हासिल होती रही है। आजादी के बाद से अब हुए चुनाव इसका साक्ष्य देते नजर आते हैं। बीते विधानसभा चुनाव से पहले सोबरन सिंह यादव लगातार चार बार विधायक रहे थे। परंतु अब उपचुनाव में सभी नये चेहरे मैदान में हैं और हर कोई मतदाताओं का विश्वास जीतने को ताकत झोंक रहा है।

करहल विधानसभा का इतिहास

करहल विधानसभा सही मायनों के 1957 के चुनाव में अस्तित्व में आई। उससे पहले देश के पहले विधानसभा चुनाव के दौरान 1952 में करहल वेस्ट कम शिकोहाबाद नाम से विधानसभा क्षेत्र का सृजन किया गया था। इसमें शिकोहाबाद का बड़ा हिस्सा शामिल था। उस चुनाव में केएमपीपी के बंशीदास धनगर ने जीत हासिल की थी।

वर्ष 1957 में करहल स्वतंत्र रूप से विधानसभा सीट बनी, तो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े नत्थू सिंह ने जीत हासिल की थी। इसके बाद सीट सुरक्षित कर दी गई, जो वर्ष 1974 में सामान्य हुई। सीट सामान्य होने पर नत्थू सिंह ने बीकेडी से भाग्य आजमाया और जनता ने उनको जीत दिलाई।

वर्ष 1977 के चुनाव में नत्थू सिंह जेएनपी की टिकट पर मैदान में उतरे तो फिर जीत हासिल हुई। वर्ष 1985 में लोकदल से चुनाव लड़े बाबूराम यादव पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद क्षेत्र की जनता उन पर ऐसी रीझी कि उनके दल बदलने के बाद भी जीत दिलाती रही।

बाबूराम यादव वर्ष 1989 के चुनाव में जनता दल, वर्ष 1991 में जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद वह वर्ष 1993 और 1996 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी की टिकट पर विधायक बने। वर्ष 2002 के चुनाव में में भाजपा की टिकट पर लड़े सोबरन सिंह यादव को मतदाताओं ने विजेता बनाया।

इसके बाद सोबरन सिंह यादव सपा में शामिल हो गए और वर्ष 2007, 2012 व 2017 के चुनाव में भी उनको जीत मिली। वर्ष 2022 में सोबरन सिंह यादव ने यह सीट सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए छोड़ दी थी। अब अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद हो रहे उपचुनाव में कोई पुराना चेहरा मैदान में नहीं है। सपा ने तेजप्रताप यादव को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा ने अनुजेश यादव और बसपा ने डा. अवनीश शाक्य को प्रत्याशी बनाया है।

सुरक्षित सीट के समय भी नहीं बदला मिजाज

करहल सीट पर सुरक्षित श्रेणी में हुए चुनावों के दौरान भी मतदाताओं का यह मिजाज कायम रहा थ। वर्ष 1967 और 1969 के चुनावों में एसडब्ल्यूए की टिकट पर मुंशी लाल को लगातार दो बार विधायक बनाया था।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।