Raksha Bandhan 2023: यूपी के इस जिले में अशुभ है रक्षाबंधन; नहीं बांधते राखी; करते हैं पिंडदान
Paliwal Community श्रावणी पूर्णिमा को आक्रांता मुहम्मद गौरी से संघर्ष में राजस्थान के पाली में पालीवाल समाज के पूर्वजों ने दिया था बलिदान। स्वजन की रक्षा को बचे परिवार कर गए थे पलायन जिले में 150 परिवार रक्षाबंधन पर मनाते हैं शोक। मैनपुरी में पलायन के बाद आकर बसे थे दर्जनों परिवार। आज भी इस दिन सुनाते हैं बलिदान गाथा।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Tue, 29 Aug 2023 10:58 AM (IST)
मैनपुरी, जागरण संवाददाता, (वीरभान सिंह। Raksha Bandhan 2023 हर कोई रक्षाबंधन का पर्व उल्लास से मनाता है, लेकिन पालीवाल समाज के लिए यह पर्व अशुभ है। समाज के लोग श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन स्वजन संग पूर्वजों का पिंडदान और शांति हवन करते हैं। इसके पीछे का कारण पूर्वजों का वह बलिदान है, जो आक्रांता मुहम्मद गौरी से समाज व अपनों की रक्षा के लिए उन्होंने राजस्थान के पाली में दिया था। श्रावणी पूर्णिमा के दिन हजारों पाली ब्राह्मण जनेऊ और चूड़ा त्यागकर पलायन कर गए थे। मैनपुरी जिले में भी लगभग 150 परिवार रक्षाबंधन को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं।
मैनपुरी में पलायन कर आए थे परिवार
रेलवे स्टेशन रोड निवासी प्रवीण पालीवाल का कहना है कि पाली नगर में गौड़ ब्राह्मण रहते थे। 14वीं शताब्दी में आक्रांता नसीरुद्दीन की फौज से युद्ध में कई पूर्वज शहीद हो गए। इसके बाद आक्रांता मुहम्मद गौरी ने आक्रमण किया। कई पूर्वजों ने बलिदान दिया, लेकिन मुगल फौज की कुदृष्टि महिलाओं पर पड़ने लगी। उनकी रक्षा के लिए 400 वर्ष पूर्व पूर्वजों ने अपने चूड़ा और जनेऊ त्यागकर रातों-रात देश के विभिन्न प्रांतों में पलायन किया था। मैनपुरी में भी लगभग 70 से 80 परिवार पलायन के बाद आकर विभिन्न स्थानों पर बस गए थे। वर्तमान में जिले में लगभग 150 पालीवाल परिवार रहे रहे हैं। सभी अलग-अलग प्रकार के व्यवसाय से जुड़े हैं। वर्षों से रक्षाबंधन का परित्याग कर हम पूर्वजों की याद में तर्पण, पिंडदान या शांति पाठ करते हैं।
रक्षाबंधन पर सुनाई जाती है बलिदान गाथा
प्रत्येक पालीवाल परिवार रक्षाबंधन वाले दिन परिवार के बच्चों को प्रेरक कहानी के रूप में पूर्वजों की बलिदान गाथा सुनाकर उन्हें प्रेरित करते हैं। बच्चों को इतिहास याद रहे, इसके लिए बुजुर्ग अपने स्वजन को प्रतिवर्ष जैसलमेर के पास धौला चौराहा स्थित शौर्य स्थल पर ले जाकर दर्शन कराते हैं।अबकी रक्तदान कर मनाया शौर्य दिवस
पूर्वजों की याद ने इस बार समाज के लोगों ने सामूहिक रक्तदान कर उस बलिदान को शौर्य दिवस के रूप में मनाया है। लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने हमारी रक्षा के लिए बलिदान दिया था। हम मानवता की रक्षा के लिए रक्तदान करते हैं।'हमारा पूरा समाज रक्षाबंधन नहीं मनाता। श्रावणी पूर्णिमा को रक्षाबंधन वाले दिन ही हमारे पूर्वजों ने हमारी रक्षा के लिए अपना सब कुछ छोड़कर पलायन किया था।' - पुनीत पालीवाल।
'हमारे लिए रक्षाबंधन अशुभ है। इस दिन अपने पूर्वजों का बलिदान दिवस मनाते हैं। घर पर उनके चित्र रखकर पूजन करते हैं, उन्हें श्रद्धाजंलि भी अर्पित करते हैं।' - अवधेश पालीवाल।'प्रतिवर्ष अपने परिवार को शौर्य स्थल धौला चौतरा ले जाता हूं। वहां दर्शन कराकर बच्चों को पूर्वजों की शौर्य गाथा सुनाकर उन्हें भी परंपरा निर्वाह को प्रेरित करता हूं।' - दीपक पालीवाल।
'रक्षाबंधन वाले दिन सामूहिक रूप से यदि संभव न हो तो प्रत्येक परिवार अपने-अपने स्वजन के साथ घर में ही पूर्वजों का पूजन कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।'- प्रवीण पालीवाल।
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