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Mulayam Singh Yadav Death: मुलायम की मुहब्बत में सदा बावफा रहा मैनपुरी, नहीं निकल पाए दूसरे दल आगे

Mulayam Singh Yadav Death नेताजी के प्यार और अपनेपन ने खड़ा किया सियासत का गढ़। सपा के गठन के बाद मैनपुरी में बढ़ता गया वर्चस्व। विधानसभा चुनावों में मुलायम के दल के लिए प्यार उमड़ा तो लोकसभा चुनावों में जमकर दुलार लुटाया गया।

By Dileep SharmaEdited By: Prateek GuptaUpdated: Mon, 10 Oct 2022 10:33 AM (IST)
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Mulayam Singh Yadav Death: मैनपुरी में आखिरी जनसभा को संबोधित करने के दौरान मुलायम सिंह यादव। फाइल फाेटो
मैनपुरी, दिलीप शर्मा। जुबां पर मुलायम सिंह यादव का नाम आए और जहन में मैनपुरी शब्द न गूंजे। सियासत की जरा भी समझ रखने वालों के लिए शायद यह संभव नहीं। मुलायम की मैनपुरी से मुहब्बत और मैनपुरी की मुलायम सिंह से वफा, यह रिश्ता ही कुछ ऐसा था। इटावा के रहने वाले मुलायम सिंह जब सियासत के दंगल में उतरे तो मैनपुरी भी उनके साथ हो लिया। धीरे-धीरे मुलायम भी बढ़ते रहे और मैनपुरी में उनका वर्चस्व भी। फिर जब समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो सियासी दुर्ग की तस्वीर में रंग और गहरे हो गए। विधानसभा चुनावों में मुलायम के दल के लिए प्यार उमड़ा तो लोकसभा चुनावों में जमकर दुलार लुटाया गया। यही वजह रहीं कि देश की राजनीति में सत्ता बदलने वाली सियासी लहरें भी मैनपुरी को मुलायम के लिए बेवफा न कर सकीं।

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जसवंतनगर से लड़ा था पहला चुनाव

मुलायम सिंह यादव ने अपना पहला चुनाव जसवंत नगर विधानसभा सीट से 1967 में लड़ा था और जीत हासिल की थी। इसके बाद 1969 के चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था। फिर इसके अगले दो चुनाव, 1974 और 1977 में वह लगातार विधायक बने। 1980 में फिर हार हुई। परंतु इसके बाद उन्होंने हार का स्वाद नहीं चखा। 1985, 1989, 1991 और 1993 में लगातार जीत हासिल की। इसके समानांतर उनका वर्चस्व मैनपुरी में भी बढ़ रहा था। 1989 में वह जनता दल के साथ थे। तब उनकी पार्टी ने जिले की पांच से चार सीटें जीती थीं। 1991 के चुनाव में जनता पार्टी ने पांच से तीन सीटों पर जीत हासिल की।

इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया तो मैनपुरी जिले में उनका सियासी वर्चस्व तेजी से बढ़ने लगा। 1993 के चुनाव में सपा ने तत्कालीन पांच सीटों में से चार पर जीत हासिल की थी। वर्ष 1996 के चुनाव में सपा ने सभी पांचों सीटों पर विरोधियों को पछाड़कर इतिहास रचा था। हालांकि बीते दो विधानसभा चुनावों में भाजपा भी मैनपुरी में बढ़ रही है। 2017 के भाजपा ने भोगांव सीट सपा से छीनी और शेष तीन पर सपा जीती थी। जबकि बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा और सपा ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल की।

लोकसभा चुनाव में मुलायम से आगे नहीं निकल पाया कोई दल

लोकसभा चुनाव की बात करें तो कोई भी दल मुलायम के मुकाबले मैनपुरी में कभी आगे नहीं निकल सका। सपा के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने 1996 में पहली बार मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। इसके बाद से मैनपुरी का मुलायम का गढ़ कहा जाने लगा। वर्ष 1998 और 1999 के चुनाव में अपनी पार्टी के टिकट पर बलराम सिंह यादव को लड़ाया तो वह दोनों चुनाव जीते। 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम खुद लड़े और हर बार बड़े अंतर से जीते। इस बीच 2004 में हुए उप चुनाव में मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव और 2014 के उप चुनाव में नेताजी के पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव मैदान में उतरे तो मैनपुरी के मतदाताओं ने उनको भी जिताया।

गढ़ से टकराकर लौटी थी हर सियासी लहर

मुलायम सिंह के गढ़ मैनपुरी में सियासी लहरे भी कोई प्रभाव नहीं दिखा सकीं। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त मोदी लहर चली थी। सूबे में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की थी, परंतु मैनपुरी में इसका असर न हुआ। यहां मुलायम सिंह यादव 3.66 लाख मतों के बड़े अंतर से जीते थे। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की जबर्दस्त लहर चली और सूबे में बड़ी जीत हासिल हुई। परंतु मुलायम सिंह यादव ने फिर जीत हासिल की।

इन अदाओं पर फिदा था मैनपुरी

मैनपुरीवासियों को मुलायम का ठेठ अंदाज लुभाता था। लोगों को उनके नाम से याद रखना। भरी सभाओं में, भ्रमण के दौरान नाम लेकर बुला लेने की अदा ने उनके समर्थकों में बड़ी बढ़ोतरी की। अपने लोगों के मदद करने और उनके सम्मान को बरकरार रखना भी मुलायम सिंह यादव की बड़ी खासियत थी। 

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