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राजनीतिक कौशल ने विरोधियों को भी बनाया था दोस्त, करहल का दुर्ग भेदने वाले केसरिया क्षत्रप को ही ले उड़े थे मुलायम सिंह

Karhal Assembly By Election Mulayam Singh News बाबू दर्शन सिंह यादव के भाई सोबरन सिंह यादव को 2002 में भाजपा ने चुनाव लड़ाया था। कड़े मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी को जीत मिली थी। लेकिन करहल में पराजय के बाद मुलायम सिंह यादव ने सोबरन सिंह को सपा में शामिल कर लिया और तीन बार सपा से प्रत्याशी बनाकर करहल का गढ़ मजबूत किया।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Mon, 28 Oct 2024 03:02 PM (IST)
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Mainpuri News: पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संस्थापक स्व.मुलायम सिंह यादव।
दिलीप शर्मा, जागरण. मैनपुरी। करहल विधानसभा सीट को समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ बनाने में स्व. मुलायम सिंह यादव की सबसे बड़ी भूमिका था।

अपने राजनीतिक कौशल से उन्होंने क्षेत्र की जनता में तो गहरी पैठ बनाई ही, विरोधियों को भी दोस्त बनाकर पार्टी को मजबूत किया।

करहल के सपाई दुर्ग को भाजपा ने एक बाद उनके विरोधियों का साथ लेकर ही ढहाया था। वर्ष 2002 में भाजपा ने बाबू दर्शन सिंह यादव के भाई सोबरन सिंह को प्रत्याशी बनाया और सपा को पराजित कर दिया था। तब मुलायम सिंह यादव ने दर्शन सिंह परिवार से फिर दोस्ती की और सोबरन सिंह को सपा में शामिल कर लिया। इसके बाद सपा ने सोबरन सिंह को लगातार तीन चुनावों में प्रत्याशी बनाया और गढ़ को मजबूत कर लिया।

सोबरन सिंह ने खुद किया था करहल से लड़ने का अनुरोध

वर्ष 2022 में सोबरन सिंह यादव ने खुद अखिलेश यादव से अनुरोध कर उनको यहां से लड़ाया था। मुलायम सिंह यादव करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़े थे। बाद में वह इसी कॉलेज में ही शिक्षक रहे। करहल सीट पर मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले चौ. नत्थू सिंह तीन बार विधायक रहे थे। राजनीति में जैसे-जैसे मुलायम सिंह यादव का कद बढ़ा मैनपुरी के चुनाव पर उनका प्रभाव बढ़ता गया। वर्ष 1992 में सपा के गठन के बाद उनकी पार्टी 1993 के विधानसभा चुनाव में पहली बार उतरी थी। उस चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने तीन बार के विधायक बाबूराम यादव को प्रत्याशी बनाया था।

सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का फाइल फोटो।

सपा हारी लेकिन बाजी पलट दी मुलायम सिंह ने

बाबूराम यादव यहां से विधायक बने और उसके बाद वर्ष 1996 के चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की। वर्ष 2002 में समाजवादी पार्टी ने बाबूराम यादव के बेटे अनिल यादव को प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने उनके सामने सोबरन सिंह यादव को उतारा। सोबरन सिंह यादव क्षेत्र के प्रमुख चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले बाबू दर्शन सिंह यादव के सगे भाई हैं।

रोमांचक मुकाबले में 925 वोट से जीते थे सोबरन सिंह

दर्शन सिंह यादव के परिवार और मुलायम सिंह यादव के परिवार के रिश्तों में लंबे समय से खटास चली आ रही थी। चुनाव में भाजपा और सपा ने जमकर ताकत झाेंकी थी और राेमांचक मुकाबला हुआ था। परंतु अंत में सोबरन सिंह यादव 925 मतों के अंतर से जीत हासिल करने में सफल रहे। उस चुनाव में सोबरन सिंह यादव 50031 और अनिल यादव को 49106 वोट मिले थे।

चुनाव हारने के बाद मुलायम सिंह यादव ने भाजपा की ताकत बढ़ने से रोकने की रणनीति बनाई। कुछ दिनों बाद सोबरन सिंह के परिवार में एक शादी समारोह में मुलायम सिंह यादव अपने पूरे परिवार के साथ शामिल हुए और रिश्तों पर जमी बर्फ पिघला दी। इसके बाद सोबरन सिंह यादव भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए।

करहल से तेजप्रताप सिंह हैं सपा के उम्मीदवार।

सपा ने सोबरन सिंह को चुनाव लड़ाकर मजबूत किया करहल का गढ़

सपा ने वर्ष 2007, 2012 और 2017 में सोबरन सिंह यादव को ही प्रत्याशी बनाया और तीनों चुनावों में जीत हासिल कर करहल सीट को पार्टी के मजबूत गढ़ में परिवर्तित कर दिया। वर्ष 2022 में सपा मुखिया अखिलेश यादव इसी सीट से चुनाव लड़कर विधायक बने। इसके बाद उन्होंने सोबरन सिंह यादव के पुत्र मुकुल यादव को एमएलसी बनाया। अब सोबरन सिंह यादव उपचुनाव में सपा प्रत्याशी तेजप्रताप यादव के लिए प्रचार में जुटे हैं। क्षेत्र में चल रही चुनावी चर्चाओं में मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक कौशल का यह किस्सा भी गूंज रहा है। 

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