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Banke Bihari Temple: हथिनी के मुंह से आने वाले जल में सिर्फ एसी का पानी ही नहीं… सामने आई वीडियो की सच्चाई

वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में गर्भगृह के पीछे से निकलने वाले जल को लेकर विवाद है। कुछ लोग इसे एसी का पानी बता रहे हैं जबकि सेवायत कहते हैं कि यह ठाकुर जी के स्नान और गर्भगृह की सफाई का जल है जो चरणामृत है। सेवायतों का कहना है कि गर्भगृह में लगे एसी का पानी भी इसमें मिल जाता है लेकिन यह भी चरणामृत हो जाता है।

By Jagran News Edited By: Shivam Yadav Updated: Mon, 04 Nov 2024 09:36 PM (IST)
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ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर की परिक्रमा में गर्भगृह के पिछले हिस्से से हथिनी से निकलता चरणामृत पान करते श्रद्धालु। फोटो- जागरण
संवाद सहयोगी, वृंदावन। सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के गर्भगृह के पीछे बने पत्थर की हथिनी की आकृति से गिर रहे पानी को गर्भगृह के अंदर लगे एसी का पानी बताया जा रहा है। इसे लेकर अब टिप्पणी भी तेज हो गई है। 

सेवायत कहते हैं कि ये ठाकुर जी के गर्भगृह का वह जल है, जो ठाकुर जी के स्नान के साथ ही गर्भगृह को साफ करने में उपयोग होता है। ये पूरी तरह आचमन योग्य है और चरणामृत है। हालांकि, सेवायत कहते हैं कि गर्भगृह में लगे एसी का पानी भी इसमें मिल रहा है, लेकिन वह भी तो इसमें मिलकर चरणामृत हो जाता है।

सेवायतों ने बताया- कहां से आता है जल?

ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर प्रबंध कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष रजत गोस्वामी कहते हैं कि जो भी इस जल को मात्र एसी का जल बताकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं, उन्हें ठाकुरजी की भाव सेवा का ज्ञान तक नहीं है। ठाकुरजी जिस मंदिर में विराजते हैं, विश्राम करते हैं उस गर्भगृह को दिन में दो से तीन बार शुद्ध जल से धोया जाता है। 

इसके अलावा, ठाकुरजी का अभिषेक भी गर्भगृह में होता है। ठाकुरजी के अभिषेक का जल ही भक्तों को चरणामृत के रूप में बांटा जाता है। ठाकुरजी के सिंहासन के समीप करुआ रखा जाता है, इसमें ये चरणामृत होता है। बार-बार भक्तों को चरणामृत देने के कारण गर्भगृह में जल फैल जाता है, जिसे चरणामृत ही माना जाता है। 

वही जल परिक्रमा में से बनी पत्थर की हथिनी से चरणामृत तक पहुंचता है। मंदिर में इस तरह चरणामृत निकालने का भाव ये है कि मंदिर के आसपास श्रद्धालु ही नहीं कोई भी जीव, जंतु जो सीधे रूप से ठाकुरजी का चरणामृत नहीं पा सकता, उसे इसके जरिए ठाकुरजी का चरणामृत पाने का सौभाग्य मिल सके।

‘गर्भगृह का ही शुद्ध जल निकलता है’

सेवायत आभाष गोस्वामी कहते हैं कि मंदिर की परिक्रमा में गर्भगृह के पीछे बनी हथिनी से शुद्ध चरणामृत ही निकलता है। सुबह गर्भगृह को धोया जाता है और फिर ठाकुरजी काे स्नान कराया जाता है। ऐसे में जो जल हथिनी से निकलता है, वह गर्भगृह का ही शुद्ध जल होता है।

ठाकुरजी गर्भगृह में ही विश्राम करते हैं, टहलते हैं। भाव ये भी है कि जब ठाकुरजी निधिवन जाते हैं, तो गर्भगृह की धरती पर उनके चरण पड़ते हैं, तो जो भी जल चाहे गर्भगृह को धोने का हो, ठाकुरजी को स्नान करवाने का या फिर एसी से निकलने वाला जल भी इसी में मिलकर हथिनी से निकल रहा है, तो शुद्ध रूप से वह ठाकुरजी का चरणामृत ही है। 

एसी से निकलने वाला पानी भी चरणामृत

सेवायत कहते हैं, जिस तरह हम गंगाजल लाकर पूजा के लिए थोड़ा गंगाजल घर के जल में मिला देते हैं, तो उसे गंगाजल का ही स्वरूप मानते हैं, तो एसी से निकलने वाला पानी भी जब गर्भगृह के पानी में मिल जाता है, वह भी तो गर्भगृह का ही जल है और शुद्ध चरणामृत ही है।

मंदिर में 20 वर्ष पहले लगे एसी

सेवायत रजत गोस्वामी कहते हैं कि गर्भगृह में दो एसी लगे हैं। ये एसी करीब बीस वर्ष पहले लगे थे। 1864 में मंदिर का निर्माण हुआ था। चरणामृत तो तभी से गर्भगृह के पीछे बनी हथिनी से निकल रहा है। यदि ये पानी केवल एसी का होता तो एसी लगने के पहले क्यों यहां से निकलता?

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