UP News: 'राम भाजपा के नहीं, सबके, किसी पर टिप्पणी गलत', अयोध्या सीट पर हार के बीच मथुरा के संत समाज ने दी प्रतिक्रिया
Mathura News रामनगरी में लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार पर हो रही टिप्पणी पर संतों की प्रतिक्रिया। भाजपा के अयोध्या की सीट हारने के बाद सोशल मीडिया पर तरह−तरह की प्रतिक्रयाएं सामने आ रही है। कुछ लोग वहां से सामान न खरीदने की बात कर रहे हैं तो कुछ रामद्रोहियों को संसद में पहुंचाने की बात कर रहे हैं।
संवाद सहयोगी, वृंदावन। इस बार की लोकसभा चुनाव में प्रदेश में जहां भाजपा की सीटें कम हुईं, वहीं राम की नगरी अयोध्या में भी भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह आइएनडीआइ गठबंधन से सपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे अवधेश प्रसाद से चुनाव हार गए।
वह अयोध्या जहां भगवान राम का भव्य मंदिर भाजपा के शासनकाल में बना। हजारों करोड़ के विकास कार्य हुए। वहां भाजपा प्रत्याशी की हार को लेकर अब चर्चाएं तेज हो गई हैं। इंटरनेट मीडिया पर भी लोग अयोध्या और वहां के लोगों पर तरह-तरह व्यंग्य कर रहे हैं। अपनी टिप्पणी के जरिए अयोध्या और अवधवासियों पर भी आरोप मढ़ रहे हैं।
संतों ने किया कड़ा विरोध
कान्हा की नगरी के संत लोगों की इस प्रतिक्रिया का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अयोध्या किसी पार्टी की नहीं हैं, राम किसी पार्टी के नहीं हैं। वह सबके हैं। यदि वहां से भाजपा हार गई तो अयोध्या और वहां के लोगों के प्रति ऐसी बयानबाजी कतई नहीं करनी चाहिए।
अयोध्या में भाजपा की हार के लिए हिंदुओं और अयोध्यावासियों के प्रति गलत बयानबाजी पूरी तरह अनुचित है। चुनाव जीतना और हारना उम्मीदवार पर निर्भर करता है। धर्म नगरी और वहां के लोगों से इसका क्या लेना देना है। कौन किसको वोट देता है, ये उसका मत है। लेकिन इसके पूरी अयोध्या के बारे में बयानबाजी ठीक नहीं है। -महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद सरस्वती, वृंदावन
-अयोध्या में भाजपा की हार पर वहां के लोगों को गाली देने से कुछ नहीं होगा। हार के कई कारण हो सकते हैं। देश का हिंदू राम और कृष्ण के साथ है और उस सरकार के साथ है जो रामकृष्ण और के साथ भारत की उन्नति की बात करती है। हार ओर जीत राजनीति की बात है। लोगों को गाली देना पूरी तरह अनुचित है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, दूसरों को इसका विरोध करना चाहिए। -महामंडलेश्वर स्वामी नवल गिरि, वृंदावन
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-चुनाव को धर्म से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण किसी एक राजनीतिक दल नहीं बल्कि सबके भगवान हैं। आस्था अलग है और व्यक्ति के अपने निजी विचार अलग। किसी भी व्यक्ति की आस्था किसी भी आराध्य, संप्रदाय में हो सकती है। राजनीति में हर कोई अपने विचार और मानसिकता के आधार पर ही मतदान करता है। यही लोकतंत्र है। राजनीतिक मतभेद व असंतुष्टि के कारण अगर कोई व्यक्ति किसी दल को वोट न दे तो इसका मतलब ये नहीं कि वह धर्म विरोधी है। -महंत हरीशंकर दास नागा, अध्यक्ष: अखाड़ा परिषद, वृंदावन
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-चुनाव जीतना-हारना राजनीति की बात है। धर्म के प्रति हर व्यक्ति समर्पित रहता है। चाहे वह किसी भी दल का हो। भगवान श्रीराम केवल एक दल के नहीं बल्कि हर दल के और दुनियाभर के भगवान हैं। ऐसे में अयोध्यावासियों के प्रति बयानबाजी सर्वथा अनुचित है। हमें धर्म को राजनीति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। लोकतंत्र में मतदान हर व्यक्ति का विशेषाधिकार है। वोट किसे देना है, ये व्यक्ति की मानसिकता के ऊपर निर्भर है। -महंत फूलडोल बिहारीदास, चतु:संप्रदाय, वृंदावन