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Mathura News: चंद्र ग्रहण से पहले गूंजेगी शरद उत्सव की झंकार, गिरिराजजी 27 को चखेंगे खीर, मुरली के साथ दर्शन

Mathura News In Hindi महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के मतानुसार दिव्य स्थलों से सजी ब्रज वसुंधरा का हिस्सा पारसौली सारस्वत कल्प की वही पवित्र भूमि है जहां प्रभु ने गोपियों के साथ छह महीने की रात्रि का निर्माण कर महारास किया। यह लीला 27 अक्टूबर को सूर श्याम गोशाला पर आयोजित होगी। गोवर्धन में गिरिराजजी भक्तों को बांसुरी धारण कर दर्शन देंगे।

By Manoj KumarEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Sat, 21 Oct 2023 07:30 AM (IST)
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Mathura News In Hindi: चंद्र ग्रहण से पहले गूंजेगी शरद के उत्सव झंकार
जागरण संवाददाता, (रसिक शर्मा) गोवर्धन/मथुरा। शरद पूर्णिमा के चंद्र पर ग्रहण तो लगेगा परंतु वांसुरी की धुन पर महारास फिर एक बार कान्हा की द्वापर युगीन लीला को जीवंत करेगा। शरद पूर्णिमा से एक दिन पूर्व यानी 27 अक्तूबर को आसमान से बिखरती धवल चांदनी में गोपियां अपने कान्हा के साथ महारास में नृत्य करेंगी।

महारास स्थली पर बनी सूर श्याम गोशाला के प्रांगण में रासाचार्य स्वामी कुंज बिहारी के संगीत पर भगवान रास बिहारी महारास की कल्पना को साकार करते नजर आएंगे। अद्वितीय सौंदर्य से सजी दिव्य धरा पर द्वापरयुगीन लीला जीवंत नजर आएगी।

ब्रज गोपियों से प्रेम का स्वर्णिम इतिहास है महारास

महारास के स्वर्णिम पलों के बिना राधा कृष्ण की लीलाएं रसहीन तो राधाकृष्ण के प्रेम का यशोगान अधूरा ही रह जाएगा। महारास में अनेक गोपियों को एक साथ सामीप्य और स्पर्श का अहसास कराते कान्हा की ये दिव्य प्रेम बरसाती लीला ब्रज मंडल के इतिहास में अमिट छाप छोड़ती रही है।

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तिरछी चितवन से माधुर्य छलकाते श्रीकृष्ण के अधरों पर सुशोभित मुरली से निकले सुरों के वशीभूत खिंची आई संत रूपी गोपियों के साथ प्रेम से सराबोर नृत्य ही महारास का स्वरूप है। ब्रज की प्रत्येक गोपी की शरद पूर्णिमा पर धवल चांदनी में प्रभु के साथ नृत्य करने की इच्छा थी।

भक्त वत्सल प्रभु ने एक रूप में गोपियों की इच्छा पूर्ण न होते देख गोपियों की गिनती के अनुसार ही रूप धारण किए और सभी को अपने सान्निध्य का अहसास कराया। सांवरे की लीला को रास की संज्ञा प्राप्त है लेकिन इस लीला को महारास का दर्जा मिला हुआ है।

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जब ठहर गया चंद्रमा

महारास स्थली के उपासक भागवत किंकर गोपाल प्रसाद उपाध्याय ने धार्मिक ग्रंथों का उल्लेख करते हुए बताया कि शरद पूर्णिमा पर आसमान से छह महीने तक चंद्र देव (चंद्रमा) अपने स्थान पर एकटक महारास को निहारते रहे। प्रभु की लीला के दर्शनों को दिन निकलने को मचलता रहा लेकिन रात्रि ने मानों वक्त को बांध लिया।

चंद्रमा के द्रवित रस से ही परासौली में चंद्र सरोवर का निर्माण हो गया। वराह पुराण में परासौली का परस्पर वन नाम उल्लिखित है। गर्ग संहिता में चंद्र सरोवर का विशेष महात्म्य बताया गया है। 

गिरिराजजी 27 को चखेंगे शरद की खीर

शरद पूर्णिमा पर ग्रहण के चलते गोवर्धन में 27 अक्तूबर को शरद उत्सव मनाया जाएगा। मुकुट मुखारविंद मंदिर रिसीवर कपिल चतुर्वेदी ने बताया कि प्रभु सफेद रंग के वस्त्र धारण कर मुरली के साथ भक्तों को दर्शन देंगे। प्रभु को खीर का भोग समर्पित किया जाएगा।

दानघाटी मंदिर प्रबंधन से जुड़े ओम प्रकाश शर्मा और जतीपुरा मुखारविंद के महेश शर्मा ने बताया कि एक दिन पूर्व शरद उत्सव मनाया जा रहा है।

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