साहब! आठ बजे उठती है पत्नी, मैं भूखा दफ्तर जाता हूं, अब छुटकारा चाहिए, मथुरा में पति की पीड़ा सुनकर दंग रह गईं पुलिस अधिकारी
पति का कहना है कि पत्नी देर रात तक मोबाइल चलाती है। इसलिए सुबह देरी से उठती है। ये एक मामला नहीं है। महिला थाने में ढाई वर्ष में दो हजार मामले ऐसे आए हैं। जिनमें मोबाइल शराब और विवाहेत्तर संबंध ने पति-पत्नी के रिश्तों में दरार ला दी। पुलिस के सामने एक नहीं इस तरह के कई मामले पहुंच रहे हैं।
जितेंद्र गुप्ता, जागरण, मथुरा। साहब, मेरी पत्नी सुबह आठ बजे सोकर उठती है। मुझे सात बजे दफ्तर जाना होता है। खाना नहीं बन पाता, मैं भूखा दफ्तर जाता हूं। मुझे ऐसी पत्नी से छुटकारा चाहिए। गोविंद नगर क्षेत्र के पति की ये पीड़ा महिला थाने के पुलिस अधिकारियों ने सुनी तो दंग रह गईं।
1500 प्रकरण में महिला पुलिस ने काउंसिलिंग कराकर पति-पत्नी के बीच के दरार को खत्म किया। 400 ऐसे मामले हैं, जिनमें विवाद नहीं सुलझ सका। मजबूरी में पुलिस को मुकदमा दर्ज करना पड़ा। महिला थाना प्रभारी अलका ठाकुर ने बताया, मामलों में जरा-जरा सी बात पर विवाद सामने आ रहे हैं। पति-पत्नी आपस में बैठकर विवाद को सुलझाने का प्रयास नहीं करते हैं। एक-दूसरे के प्रति इतनी नाराजगी होती है कि बात को मन में रखकर उसे बड़ी बना लेते हैं। फिर इनके विवाद थाने तक पहुंच जाते हैं।
केस एक : श्वेता की शादी आठ वर्ष पूर्व कोसीकलां में हुई थी। उनकी शिकायत थी कि पति दुकान से आकर सास के पास बैठते थे। सास से सारी बातें साझा करते थे। प्रतिदिन इसे लेकर विवाद होता था। मामला थाने तक पहुंचा, महिला पुलिस ने तीन महीने में काउंसिलिंग कर विवाद को खत्म कराया।
केस दो : दिल्ली की निशा पति से झगड़ा कर मायके चली गई। छह महीने बाद सदर थाना क्षेत्र के रहने वाले पति ने पत्नी से छुटकारा के लिए गुहार लगाई। काउंसिलिंग में सामने आया कि पति समय पर राशन नहीं लाते थे। रात को शराब पीकर घर आते थे। इससे घरेलू कलह शुरू हुई।
केस तीन : मथुरा के शिवम हरियाणा में नौकरी करते हैं। पत्नी की शिकायत थी कि पति का फोन हमेशा बिजी रहता है। साप्ताहिक छुट्टी पर घर नहीं आते हैं। हरियाणा में साथ रखना नहीं चाहते हैं। पति के कुछ कहने पर नाराज होकर मायके पक्ष को बुरा-भला कहते थे।
थाने में 28 कर्मी निभा रहे भूमिका
महिला थाने में सभी कर्मी महिलाएं हैं। प्रभारी के साथ पांच एसआइ, चार हेड कांस्टेबल और 18 कांस्टेबल थाने में आने वाले प्रार्थना-पत्र पर पति-पत्नी को बुलाकर काउंसिलिंग करते हैं। इसमें दोनों पक्षों को सुना जाता है और रजिस्टर में उनकी बातें लिखी जाती हैं। इसके बाद विवाद का मुख्य कारण जानकर प्रकरण का निस्तारण किया जाता है। जिन मामलों में बात नहीं बनती हैं तो मुकदमा दर्ज किया जाता है।
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