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इस मंदिर में दो राधाओं के मध्य विराजमान है कान्हा, श्रद्धालुओं को नहीं होते दूसरी प्रतिमा के दर्शन

मुगलों के आक्रमण के चलते राधारानी आठ माह मध्य प्रदेश के श्योपुर में रही थीं जिसके चलते उनकी जगह राधारानी के दूसरे विग्रह की स्थापना लाडलीजी मंदिर पर की लेकिन मुगल आक्रमण करने नहीं आए जिसके बाद उस विग्रह का नाम विजय लाडली पड़ गया। आज भी श्योपुर में राधारानी का मंदिर है। यहां भाद्रपद शुक्ल की अष्टमी के दिन ही उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है।

By vineet Kumar Mishra Edited By: Shivam Yadav Updated: Wed, 11 Sep 2024 02:57 AM (IST)
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लाडलीजी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण एक नहीं दो राधाओं के मध्य रहते हैं।

संवाद सूत्र, बरसाना। लाडलीजी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण एक नहीं दो राधाओं के मध्य रहते हैं। मुगलों द्वारा बरसाना पर आक्रमण के दौरान श्रीजी मंदिर में विराजमान लाडलीजी के श्री विग्रह को सुरक्षा कारणों के चलते श्योपुर ले जाया गया। बाद में हालात सामान्य होने पर करीब आठ माह बाद बरसाना श्रीजी मंदिर में पुन: विधि- विधान पूर्वक विराजमान किया गया। 

इस दौरान जिस विग्रह की श्रीजी मंदिर में पूजा की गई वो विजय लाडली कहलाईं। स्थानीय इतिहास की जानकारी देते हुए योगेंद्र सिंह छौंकर ने बताया कि 1773 में भरतपुर रजवाड़े पर मुगल बादशाह शाह आलम ने अपने सेनापति नजफ खान को भेजा। उन दिनों बरसाना भरतपुर रजवाड़े का ही अंग था। 

दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। भरतपुर की सेना पीछे हटने को विवश हो गई। इसकी खबर मिलते ही बरसाना श्रीजी मंदिर के सेवायत मंदिर की सुरक्षा को देख राधारानी के विग्रह को लेकर श्योपुर मध्यप्रदेश चले गए। 

नजफ खान ने अगले दिन बरसाना में प्रवेश किया और करीब एक हफ्ते तक जमकर लूटपाट की। बरसाना के लाडलीजी मंदिर में राधारानी के स्थान पर एक सखी की प्रतिमा को स्थापित कर सेवा पूजा यथावत कर दी गई। उस स्वरूप को विजय लाडली का नाम दिया गया। 

हालात सामान्य हो जाने के बाद राधा रानी की मूल प्रतिमा को करीब आठ माह बाद श्योपुर से वापस लाकर बरसाना के मंदिर में विराजमान किया गया। तब से विजय लाडलीजी की प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में ही विराजमान है। परंतु इस प्रतिमा के दर्शन किसी को नहीं कराए जाते हैं। 

गर्भगृह में ही इनकी समस्त सेवा पूजा की जाती है। सेवायत जगन्नाथ गोस्वामी बताते हैं कि राधारानी की तरह विजय लाडली के विग्रह का अभिषेक भी कराया जाता है, लेकिन इनके दर्शन श्रद्धालुओं को नहीं होते हैं।