वृंदावन का जयपुर मंदिर, कारीगरों ने पत्थरों को जोड़कर किया निर्माण, राजा ने मकराना लाने के लिए बिछाई रेल लाइन
Mathura News जयपुर मंदिर वृंदावन का एक मात्र ऐसा मंदिर है जिसके निर्माण के पत्थरों को राजस्थान से लाने के लिए राजा ने रेल लाइन ही डलवा दी थी। कारीगरों ने इस विशालकाय मंदिर को सिर्फ पत्थरों से जोड़कर ही ऐसा भव्य रूप दिया कि सौ साल बाद भी ऐसे दमक रहा है जैसे हाल ही में इसका निर्माण हुआ हो।
डिजिटल टीम, मथुरा वृंदावन। भरतपुर के वांसी पहाड़पुर के पत्थरों के स्तंभ महराब, छतों पर नक्कासी का अद्भुत नजारा, राजस्थानी शिल्पकला को पेश करते जयपुर मंदिर के निर्माण में कारीगरों ने कहीं भी चूना, सीमेंट और बजरी का इस्तेमाल नहीं किया।
1917 में इस मंदिर का निर्माण कराया था
मथुरा मार्ग स्थित ये मंदिर उत्तर भारत का विशाल और शिल्पकला की दृष्टि से अत्यंत वैभवशाली है। इसके निर्माण में वांसी पहाड़पुर के पत्थरों के अलावा मकराना के संगमरमर का उपयोग किया।
- जयपुर के महाराजा माधो सिंह ने 1917 में इस मंदिर का निर्माण कराया था।
- महाराजा ने अपने गुरु ब्रह्मचारी गिरधर शरण की आज्ञा का पालन करते हुए मंदिर निर्माण चालीस साल के लंबे अंतराल में करवाया।
- 30-30 फुट लंबे व विशालकाय शिला खंड भी इसमें उपयोग किए।
- न केवल पत्थर, बल्कि सागवान की लकड़ी के विशाल नक्कासीदार प्रवेशद्वार बने हैं, जिन्हें देखते ही निगाहें डट जाती हैं।
- मंदिर के प्रवेश द्वार की ऊंचाई 80 फुट है
- दो मंजिला मंदिर में 76 कमरे बने हैं, जिनमें मंदिर कर्मचारियों के अलावा आगंतुकों व श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था होती है।
पत्थर लाने को डलवाई रेल लाइन
सौ साल पहले लंबी दूरी तय करने के लिए यातायात के साधनों की कमी थी और मंदिर निर्माण के लिए मकराना व भरतपुर से पत्थर लाने थे। राजा माधो सिंह ने मंदिर निर्माण में देरी न हो इसके लिए मथुरा से वृंदावन तक विशेष रेल लाइन डलवाई।
मंदिर निर्माण के बाद इस पर रेलवे विभाग ने यात्रियों की सुविधा के लिए ट्रेन चलाई। आज इस लाइन पर रेलबस चलती है। मगर, स्थानीय बाशिंदों की चाहत है कि रेलवे लाइन के इतिहास को देखते हुए इसे ब्रॉडगेज लाइन में तब्दील कर देश के प्रमुख धर्मस्थलों तक ट्रेन संचालन किया जाए।