बड़ी दीदी के नाम से जानी जाती थी डॉ. विशाखा त्रिपाठी, ईश्वर प्रेम-सेवा और गुरु भक्ति की थीं मिसाल
Dr. Vishakha Tripathi डॉ. विशाखा त्रिपाठी जगद्गुरु कृपालु परिषद की अध्यक्षा और जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की ज्येष्ठ पुत्री अपने दिव्य व्यक्तित्व अनुशासन और निःस्वार्थ भक्ति के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने परिषद के माध्यम से दुनिया भर में लाखों लोगों तक आध्यात्मिक और सामाजिक सेवाएं पहुंचाईं हैं। 24 नवंबर 2024 को एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
जागरण टीम, मथुरा। जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा, डॉ. विशाखा त्रिपाठी, जिन्हें प्रेम से बड़ी दीदी कहा जाता था, अपने दिव्य व्यक्तित्व, अनुशासन और निःस्वार्थ भक्ति के लिए जानी जाती थीं। उनका जन्म 1949 में भक्ति धाम के पास लीलापुर गांव में हुआ। वह जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की ज्येष्ठा पुत्री थीं। बचपन से ही उनके शांत और दृढ़ स्वभाव ने उन्हें सबसे अलग बना दिया।
डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने 2002 में जगद्गुरु कृपालु परिषत् का नेतृत्व संभाला। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में परिषत् ने दुनिया भर में 50 लाख से ज्यादा लोगों तक आध्यात्मिक और सामाजिक सेवाएं पहुंचाईं। उनके प्रयासों से जगद्गुरु कृपालु चिकित्सालय और शिक्षण संस्थानों ने समाज के हर वर्ग को लाभ पहुंचाया। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें राजीव गांधी ग्लोबल एक्सीलेंस अवार्ड और नारी टुडे पुरस्कार जैसे कई सम्मान मिले।
गुरु और ईश्वर के प्रति समर्पण
डॉ. विशाखा त्रिपाठी का हर दिन भक्ति और सेवा के लिए समर्पित था। उनकी भक्ति और समर्पण ने यह दिखाया कि मानव जीवन का सच्चा उद्देश्य ईश्वर और गुरु की सेवा है।डॉ. विशाखा त्रिपाठी का हर शब्द, हर काम जगद्गुरु कृपालु जी महाराज के अनुयायियों को सुकून और प्रेरणा देता था। उनकी सरलता और मधुर स्वभाव ने हर किसी को उनके करीब महसूस कराया। चाहे हल्के-फुल्के अंदाज में किसी को सांत्वना देना हो या किसी को सही रास्ता दिखाना, उनका हर प्रयास लोगों के दिलों को छू जाता था।
उनका जीवन प्रेम, सेवा और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण था। उन्होंने अपने व्यवहार और जीवनशैली से यह दिखाया कि असली नेतृत्व अधिकार में नहीं, बल्कि सेवा और निःस्वार्थता में है। उनकी सादगी और दूरदर्शी सोच ने हर किसी को प्रेरित किया।
अकाल निधन से गहरा आघात
24 नवंबर 2024 की सुबह सड़क दुर्घटना में विशाखा त्रिपाठी का अचानक निधन हो गया। उनकी यह असमय विदाई उनके प्रिय जनों और परिषत् के लिए अपूरणीय क्षति है।
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