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Radha Ashtami 2024: प्रथम भवन बनजार विराजीं… पांच शताब्दी पुराना है राधारानी मंदिर का इतिहास

बरसाना में स्थित ब्रजेश्वरी राधारानी मंदिर एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जिसका निर्माण पांच शताब्दियों में अलग-अलग श्रद्धालुओं द्वारा किया गया है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप सिंधिया शासक द्वारा निर्मित है जिन्होंने मंदिर की व्यवस्था के लिए एक हजार बीघे जमीन दान की। मंदिर में राधारानी की सेवा पूजा होती है और यहां कई धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।

By Kashim Khan Edited By: Shivam Yadav Updated: Wed, 11 Sep 2024 02:43 AM (IST)
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मथुरा: बरसाना के ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित श्रीराधारानी मंदिर। फोटो जागरण आर्काइव

संवाद सूत्र, बरसाना। वैसे तो सारा ब्रज मंडल ही मंदिरों की भूमि है। पर बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत के शिखर पर विराजमान ब्रजेश्वरी राधारानी के मंदिर की छटा निराली है। सौंदर्य की दृष्टि से यह ब्रज का सबसे उत्कृष्ट मंदिर है और हो भी क्यों न, यहां ब्रज की और ब्रजवासियों की लाडली जो विराजमान हैं। मंदिर का यह नयनाभिराम स्वरूप एक दिन की कथा नहीं है, यह पांच शताब्दियों तक अलग-अलग श्रद्धालुओं द्वारा कराए गए निर्माणों का साझा परिणाम है।

दक्षिण भारत से आए ब्रजाचार्य श्रीलनारायण भट्ट ने 1569 ईसवीं में इसी पर्वत से राधाजी के श्री विग्रह का प्राकट्य किया था। भट्ट जी ने श्रीजी की सेवा का दायित्व अपने शिष्य नारायण स्वामी को सौंपा था। 

कुछ समय तक स्वामीजी ने अपनी कुटिया में ही श्रीजी के विग्रह की सेवा पूजा की। उसके बाद जो मंदिर निर्माण की शृंखला शुरू हुई, अब तक चल रही है। मंदिर के विकास क्रम के बारे में जानकारी लोक परंपरा में प्रचलित और कुसुमलता माधवी द्वारा बरसाना के इतिहास पर लिखित पुस्तक में संकलित इन पंक्तियों से समझी जा सकती है।

प्रथम भवन बनजार विराजीं

फिर ठाकुर टांटिया विराजीं

रूपरामजी विप्र कटारा

भुवन बनाया पुनि पग धारा

चतुर्थ महल घासेरे बारे

आप विराजीं अति छवि धारे

पंचम महल सेंधिया राव है

भूमि दान करी लाडली के नाम

बनी छत्तरी बाहर सुंदर,

सब में लाग रह्यो संगमरमर।

इसे विस्तार से समझाते हुए स्थानीय इतिहास के जानकार योगेंद्र सिंह छोंकर बताते हैं कि सबसे पहले लाखा नामक एक बंजारे ने यहां पहले मंदिर का निर्माण कराया। छोटी सी तिबारी के अंदर बने इस मंदिर में सबसे पहले श्रीजी का विग्रह विराजमान किया गया। 

यह लाखा बंजारा सागर झील वाला लाखा बंजारा भी हो सकता है, जिसके नाम पर सागर झील को लाखा बंजारा झील नाम दिया गया है। कालगणना और दानशीलता के आधार पर भी यह वही लाखा बंजारा प्रतीत होता है, परंतु यह वही है ऐसा दावे के साथ कहना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि लाखा किसी व्यक्ति का नाम नहीं है, जिस बंजारे के पास एक लाख जानवरों का रेवड़ होता था, उसे ही लाखा कह दिया जाता था। इसलिए लाखा बंजारे कई हो सकते हैं।

इसके बाद टांटिया ठाकुर ने दूसरे मंदिर का निर्माण कराया। टांटिया ठाकुर जाट राजा चूड़ामन के समकालीन था, इसका नाम श्रीलालजी था और टांटिया ठाकुर कहा जाता था। 1720 ईसवीं में यह चूड़ामन के भतीजे बदनसिंह के साथ जुड़ गया। 

संभव है इसी दौरान इसने मंदिर बनवाया हो। यह मंदिर ब्रह्माजी के मंदिर के ऊपर स्थित है और भानगढ़ कहा जाता है। इस मंदिर में भी श्रीजी के विग्रह को विराजमान कराया गया और उनकी सेवा पूजा की गई।

योगेंद्र बताते हैं कि इस मंदिर के निर्माण के कुछ ही समय बाद भरतपुर रियासत के राजपुरोहित रूपराम कटारा ने तीसरे मंदिर का निर्माण कराया। यहां भी श्रीजी की सेवा-अर्चना की गई। 

इसी शताब्दी के आखिरी दशक में घासेरे के राव शासक ने यहां चौथे मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर भानगढ़ के बगल में स्थित है। यहां भी राधा रानी की सेवा पूजा हुई। बरसाना के युद्ध में जाट शासक के हारने के बाद यह क्षेत्र मुगलों के अधीन हो गया और शीघ्र ही मराठों और अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया।

1803 में अंग्रेजों द्वारा बरसाना गांव का क्षेत्र सिंधिया को सौंप दिया गया। इस दौरान सिंधिया शासक ने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया और मंदिर की व्यवस्था संचालन के लिए एक हजार बीघे जमीन भी दान की। यह वही मंदिर है जिसमें वर्तमान में राधारानी विराजमान हैं। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार और नवीनीकरण सेठ हरगुलाल बेरीवाला द्वारा कराया गया।

योगेंद्र बताते हैं कि सिंधिया सरदार बलवंतराव भैयाजी ने सफेद संगमरमर की छतरी का निर्माण कराया था। राधाष्टमी, धुलेंडी और हरियाली तीज के अवसर पर श्रीजी के विग्रह को मंदिर से बाहर लाकर इसी छतरी में विराजमान कर दर्शन कराए जाते हैं।

मंदिर के जगमोहन का विस्तार करते हुए एक विशाल सत्संग हाल का निर्माण ब्रज हरि संकीर्तन मंडल नई दिल्ली के सहयोग से जानकीदास ने 1991 में पूर्ण कराया।

टोडरमल को भी दिया जाता है श्रेय

अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल को भी यहां मंदिर बनवाने का श्रेय दिया जाता है। काल गणना के क्रम से संभव है कि पहला मंदिर उसी ने बनवाया हो। नारायण भट्ट की प्रेरणा से टोडरमल द्वारा ब्रज में कई धार्मिक निर्माण कराए जाने का विवरण नारायण भट्ट चरितामृत ग्रंथ में मिलता है।

दो अन्य मंदिर जहां नहीं विराजीं श्रीजी

किशनगढ़ के राजा द्वारा विलासगढ़ पर एक मंदिर और बावड़ी बनवाई, लेकिन श्रीजी उस मंदिर में नहीं गयीं। यह राजा नामी भक्त और चित्रकार सावंत सिंह भी हो सकते हैं या उनके कोई अन्य परिजन। इसी तरह जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने दानगढ़ शिखर पर एक मंदिर का निर्माण कराया लेकिन श्रीजी वहां भी विराजमान नहीं हुई। बाद में उस मंदिर में कुशल बिहारी को विराजमान किया गया।

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