Radharaman Mandir: वृंदावन के इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव रात में नहीं मनाते, ये है परंपरा
Shri Krishna Janmashtami Celebration In Radharaman Mandir भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लिया और दूसरे दिन जन्मोत्सव की खुशियां गोकुल में मनाई गईं। मथुरा-गोकुल सहित देश दुनिया में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव रात में होता है। वृंदावन के ठा. राधारमण मंदिर में आराध्य श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है। यहां ठाकुरजी का विग्रह दिन में प्रकट हुआ था।
संवाद सहयोगी, वृंदावन-मथुरा। देश दुनिया में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव रात 12 बजे मनाया जाता है। लेकिन, सप्तदेवालयों में शामिल ठा. राधारमण मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव दिन में मनाया जाता है। यह परंपरा आराध्य राधारमणलालजू के प्राकट्यकर्ता आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी ने शुरू की।
चूंकि, आचार्य गोपालभट्ट की साधना से प्रसन्न होकर शालिग्राम शिला से ठा. राधारमणलालजू ने विग्रह रूप भोर में लिया था। इसलिए मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा दिन में ही मनाया जाता था। आज भी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के वंशज दिन में ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। इसके अलावा राधादामोदर मंदिर, शाहजी मंदिर में भी दिन में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
सात सितम्बर को मंदिर में होगा महाभिषेक
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सात सितंबर को मंदिर में सुबह 9 बजे ठाकुरजी का सवामन दूध, दही, घी, बूरा, शहद, यमुनाजल, गंगाजल व जड़ी-बूटियों से महाभिषेक होगा। निधिवन राज मंदिर के समीप स्थित ठा. राधारमण मंदिर में मान्यता है कि करीब 479 वर्ष पहले चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठा. राधारमणलालजू शालिग्राम शिला से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की प्रभातबेला में प्रकट हुए थे।
दिन में ही मनाने की परंपरा
'आचार्य गोपाल भट्ट की इच्छा शालिग्राम शिला में ही गोविंददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्ष स्थल और मदनमोहनजी के चरणारविंद के दर्शन की थी। भगवान नृसिंह देव के प्राकट्य दिवस पर आचार्य गोपालभट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य से यह इच्छा जताई थी। इस पर आचार्य गोपाल भट्ट की साधना से प्रसन्न होकर वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की भोर में शालिग्राम शिला से ठा. राधारमणलालजू का प्राकट्य हुआ। तब से भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव भी दिन में ही मनाया जाता है। यह परंपरा खुद आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी ने ही शुरू की।' वैष्णवाचार्य शरदचंद्र गोस्वामी, मंदिर सेवायत।
मंदिर की रसोई का ही अर्पित होता है प्रसाद
राधारमण मंदिर की रसोई में सेवायत खुद अपने हाथ से ठाकुरजी का प्रसाद तैयार करके भोग में अर्पित करते हैं। मंदिर की रसोई में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है।
माचिस का नहीं होता प्रयोग
मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता। पिछले 479 साल से मंदिर की रसोई में प्रज्वलित अग्नि से ही रसोई समेत अनेक कार्य संपादित होते हैं।