Banke Bihari Mandir से कम प्राचीन नहीं हैं वृंदावनधाम के ये मंदिर, रोचक है सप्त देवालयों का इतिहास
Famous Temple in Vrindavan वृंदावन में तकरीबन 5000 छोटे- बड़े मंदिर हैं। वर्ष 1515 में महाप्रभु चैतन्य ने यहां के कई मंदिरों की खोज की थी। सप्त देवालय में श्रीकृष्ण के विग्रह स्थापित हैं। जिनमें से 3 वृंदावन धाम में स्थापित हैं वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Wed, 16 Nov 2022 02:05 PM (IST)
आगरा, तनु गुप्ता। चलाे रे मन श्री वृंदावन धाम...ये पंक्तियां यूं ही नहीं कही जाती। वृंदावन धाम जहां श्रीकृष्ण ने बाल लीलाएं की। जहां राधारानी ने अपने पहले कदम से ही वृंदा यानी तुलसी जी का उदय कर दिया। वृंदावन यानी वृंदा का वन, तुलसी का वन। कालिंदी किनारे बसी कान्हा की क्रीड़ास्थली वृंदावन धाम की हर गली, हर सड़क कृष्ण की भक्ति में लीन, राधे राधे के जयघाेष से गुंज्जायमान लगती है। वृंदावन की पहचान एकमात्र बांकेबिहारी जी का धाम ही नहीं है। यहां की गलियों में स्थित सप्त देवालय अपने आप में प्राचीन हैं और कृष्ण भक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं।
यदि आप भी वृंदावन आना चाहते हैं या फिर हर वीकेंड पर आते हैं और सिर्फ बिहारी जी के दर्शन करके ही वापस लौट जाते हैं तो ये खबर आपके लिए जरूरी भी है और जानकारी परक भी। वृंदावन को सप्त देवालयों का धाम भी कहा जाता है। यहां बांके बिहारी सहित सात मंदिर हैं जहां श्रीकृष्ण के अति प्राचीन विग्रह स्थापित हैं। ज्योतिषशास्त्री पंकज प्रभु के अनुसार वर्ष 1515 में महाप्रभु चैतन्य ने यहां के कई मंदिरों की खोज की थी। तब से लेकर अब तक कई मंदिर नष्ट हो चुके हैं और कई नए बने हैं। उन्हीं में से सप्त देवालय हैं जिनमें श्रीकृष्ण के विग्रह स्थापित हैं। इन 7 श्रीविग्रहों में से 3 आज भी वृंदावन धाम के मंदिरों में स्थापित हैं वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं।
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पुराणाें में वृंदावनधाम की महिमा
हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृंदावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती- स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है। इससे कालिदास के समय में वृंदावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है।
श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृंदावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर, बिहारी जी की बगीची, लता भवन प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा आरक्षित वनों के रूप में दर्शनीय हैं ।
भगवान गोविंद देवजी, जयपुर
रूप गोस्वामी को ये श्रीविग्रह वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से 1535 में मिली थी। उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस श्रीविग्रह को स्थापित किया। इनके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंदजी की सेवा पूजा संभाली, उन्हीं के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंदजी का भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर में गोविंद जी 80 साल विराजे। औरंगजेब के शासनकाल में ब्रज पर हुए हमले के समय गोविंदजी को उनके भक्त जयपुर ले गए। तब से गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल यानी मंदिर में विराजमान हैं।
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