Shri Krishna Janam bhoomi Case: ढाई रुपये के स्टांप पर हुआ था मंदिर-मस्जिद विवाद का समझौता, ये थे मुख्य बिंदु
Shri Krishna Janam bhoomi Case Mathura श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही इदगाह मस्जिद के मामले में पहले भी नौ बार वाद दायर हो चुके हैं वाद हर बार हुई हिंदू पक्ष की जीत हुयी है। वहीं 136 वर्ष की मुकदमेबाजी के बाद हुआ महज ढाइ रुपये के स्टांप पर समझौता हुआ था। विहिप ने समझौते के वक्त ही किया था विरोध।
By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Sat, 12 Aug 2023 01:59 PM (IST)
मथुरा, जागरण संवाददाता। मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के विवाद को लेकर 136 वर्ष तक मुकदमा चला था। इसके बाद वर्ष 1968 में समझौता हुआ। ये समझौता ढाई रुपये के स्टांप पेपर पर लिखा गया था। तत्कालीन डीएम व एसपी के सुझाव पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने दस प्रमुख बिंदुओं पर समझौता किया था। इस समझौते को अवैध करार देते हुए कोर्ट में दाखिल दावे में ईदगाह को हटाने की मांग की गई है, उस समझौते का विरोध उस दौरान भी हुआ था।
12 अक्टूबर 1968 को हुआ था समझौता
12 अक्टूबर 1968 को समझौता हुआ था। उस समय जिलाधिकारी आरके गोयल थे, गिरीश बिहारी पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे। दोनों अधिकारियों के सुझाव पर आपसी रजमांदी पर ये समझौता हुआ था। तब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ की तरफ से समझौते पर हस्ताक्षर सह सचिव देवधर शर्मा, उनके सहयोगी फूलचंद्र गुप्ता ने किए थे। मामले में अधिवक्ता अब्दुल गफ्फार थे। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि उस वक्त शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी की ओर से समझौते में शाहमर मलीह, डा. शाहबुद्दीन साकिब, आबिदुल्ला खां, मोहम्मद आकूल आलू वाला के हस्ताक्षर थे।
व्यक्त की थी नाराजगी
जब समझौता हुआ था, तब विहिप के तत्कालीन जिलाध्यक्ष डा. रमनदास पंडया और मूल प्राचीन पुनरोद्धार समिति के मंत्री चंद्रभानु ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ को पत्र लिख नाराजगी जताई थी। तब कहा था कि जिस धार्मिक स्थल का उत्थान हो रहा है, उसी के एक अंग को मुसलमानों के लिए हस्तांतरित किए जाने से दुखी हैं। उन्होंने पत्र में सेवा संघ के ट्रस्टियों से फैसले पर पुनर्विचार करने और धार्मिक स्थान का अंगभंग न करने का अनुरोध किया था।मस्जिद ईदगाह कमेटी के बीच 1968 में हुए समझौते के मुख्य बिंदु
- ईदगाह के ऊपर के चबूतरे की उत्तर व दक्षिण दीवारों को पूरब की ओर रेलवे लाइन तक बढ़ा लिया जाए। इन दोनों दीवारों का निर्माण मस्जिद कमेटी करेगी।
- दीवारों के बाहर उत्तर व दक्षिण की ओर मस्जिद कमेटी मुस्लिम आबादी से खाली कराएगी और भूमि संघ को देगी।
- दक्षिण की ओर जीने का मलबा एक अक्टूबर 1968 तक मस्जिद कमेटी उठा लेगी।
- उत्तर दक्षिण वाली दीवारों के बाहर मुस्लिम आबादी में जिन मकानों का बैनामा कमेटी ने अपने हक में कराया है, उसे संघ को सौंपेगी।
- ईदगाह के जो पनाले श्रीकृष्ण जन्मस्थान की ओर हैं, उसे संघ अपने खर्च से पाइप लगाकर ईदगाह की कच्ची कुर्सी की ओर मोड़ देगा।
- पश्चिम उत्तरी कोने में जो भूखंड संघ का है, उसमें कमेटी अपनी कच्ची कुर्सी को चौकोर कर लेगा। वह उसी की मिल्कियत मानी जाएगी।
- रेलवे लाइन के लिए जो भूमि संघ अधिगृहीत करा रहा है, जो भूमि ईदगाह के सामने दीवारों के भीतर आएगी, उसे कमेटी को दे देगा।
- दोनों पक्षों की ओर से जो मुकदमे चल रहे हैं, उनमें समझौते की सभी शर्तें पूरी हो जाने पर दोनों पक्ष राजीनामा दाखिल कर देंगे।
1832 में शुरू हुआ था ईदगाह व जन्मस्थान का विवाद
श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह का विवाद नया नहीं है। 1832 में पहली बार स्वामित्व को लेकर विवाद चला था। इसके बाद 1969 तक मुकदमे चलते रहे। मुकदमेबाजी इसके बाद खत्म हो गई। लेकिन वर्ष 2020 में फिर न्यायालय में पहला मुकदमा लखनऊ निवासी अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने दायर किया था। 1969 के पूर्व हुए नौ मुकदमों में हर बार श्रीकृष्ण जन्मभूमि प्रबंधन ही जीता।
हम शुरू से कह रहे हैं ये भूमि हमारी है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ को तो समझौते का अधिकार ही नहीं था। ठाकुर केशव देव मंदिर को तोड़कर उसकी नींव पर ही ईदगाह खड़ी कर दी गई है। हम लगातार इसका टैक्स दे रहे हैं। हमें अपनी पूरी भूमि वापस चाहिए। गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी, सदस्य श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान।
जिस ठाकुर केशवदेव मंदिर को तोड़कर वहां ईदगाह खड़ी की गई है, वह मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा है। हर सनातनी असली गर्भगृह को देखना चाहता है। हम न्यायालय के जरिए भूमि वापस लेंगे और कथित ईदगाह को हटवाएंगे। कपिल शर्मा, सचिव श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान।
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