हीरक जयंती मनाएगा ठा. बांकेबिहारी का स्वर्ण-रजत हिंडोला
संवाद सहयोगी, वृंदावन: हरियाली तीज 31 जुलाई को है। ठा. बांकेबिहारी बेशकीमती स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होंगे। इस स्वर्ण-रजत हिंडोले में ठाकुर जी के दर्शन देने को 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे।
ठा. बांकेबिहारीजी वर्ष में एक ही दिन यानी हरियाली तीज को हिंडोले में दर्शन देते हैं। मंदिर के करीब 160 साल के इतिहास में शुरुआती दौर में ठाकुरजी साधारण हिंडोले में दर्शन देते थे। बाद में बांकेबिहारी के भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने ठाकुरजी का दिव्य स्वर्ण-रजत हिंडोला तैयार कराया। पिथौरागढ़ के जंगल से इसके लिए लकड़ियां लाई गईं। इस पर सोने और चांदी की परत से नक्काशी कराई। स्वर्ण-रजत हिंडोले में पहली बार जब आराध्य बांकेबिहारीजी ने दर्शन दिए वह दिन 15 अगस्त 1947 था। और उस दिन हरियाली तीज का पर्व था। यह एक संयोग था कि जिस दिन देशवासी पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, बांकेबिहारी सोने व चांदी से बने दिव्य हिंडोले में झूल रहे थे।
20 किलो सोना, एक कुंतल चांदी से पांच साल में बना
कोलकाता निवासी सेठ हरगुलाल के वंशज वृंदावन में रहते हैं। उनके भतीजे राधेश्याम बेरीवाला ने
जागरण
को बताया कि सोने-चांदी का हिंडोला बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी। हिंडोला 1942 में बनना शुरू हुआ और 1947 में तैयार हुआ। तब हिंडोला के निर्माण में 25 लाख रुपये खर्च हुए।
वाराणसी के कारीगरों ने बनाया था हिंडोला
हिंडोले के लिए वाराणसी के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था। इन्होंने टनकपुर (पिथौरागढ़) के जंगलों से शीशम की लकड़ी मंगवाई। इस लकड़ी को कटाने के बाद पहले दो साल तक सुखाया गया, फिर हिंडोले के निर्माण का कार्य शुरू किया गया। बीस कारीगरों ने पांच वर्ष तक कार्य किया। हिंडोले के ढांचे के निर्माण के पश्चात उस पर सोने व चांदी के पत्र चढ़ाए गए। स्वर्ण हिंडोले के अलग-अलग 130 भाग हैं। स्वर्ण-रजत झूले का मुख्य आकर्षण फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी-मोर आदि की प्रतिकृति हैं।