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खेती का परंपरागत तरीका छोड़कर अपनाया ये रास्ता, भाईयों की जोड़ी हर दिन कमाती है 20 से 25 हजार

पिछले दस वर्षों से यह परपंरागत खेती को छोड़कर सब्जी की खेती कर रहे हैं। वर्तमान समय में सात से आठ बीघा में में टमाटर की खेती कर प्रतिदिन 20 से 25 हजार रुपये की आमदनी कर रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Tue, 30 May 2023 04:49 PM (IST)
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खेती का परंपरागत तरीका छोड़कर अपनाया ये रास्ता
 जागरण संवाददाता, मऊ : कोपागंज के रइसा निवासी पिता संग युगल भाइयों की जोड़ी कमाल कर रही है। तकनीकी खेती कर न सिर्फ यह मालामाल हो रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी बने हुए हैं। पिछले दस वर्षों से यह परपंरागत खेती को छोड़कर सब्जी की खेती कर रहे हैं।

वर्तमान समय में सात से आठ बीघा में में टमाटर की खेती कर प्रतिदिन 20 से 25 हजार रुपये की आमदनी कर रहे हैं। यह प्रतिदिन जनपद सहित आस-पास के जनपद बलिया, गोरखपुर, बड़हलगंज, आजमगढ़ में पिकअप से पहुंचा रहे हैं।

कैलाश चौहान दस वर्ष पूर्व ही गेहूं व धान की परंपरागत खेती से मुनाफा न होने से बिचलित हुए। इसके बाद वह कृषि विज्ञान केंद्र पिलखी के वैज्ञानिकों से संपर्क साधा। उनकी सलाह पर वह सब्जी की खेती करने लगे। पहले वह डेढ़ बीघा से इसकी शुरुआत किए।

वह संकर टमाटर, गोभी व लौकी की खेती करने लगे। इस बीच उनकी दिलचस्पी बढ़ी और बड़े पैमाने पर अब खेती करना शुरू कर िदिए हैं। यही नहीं इस खेती में उनके बड़े बेटे बीएड कर चुके रामआशीष व बीटीसी कर रहे प्रदीप भी हाथ बंटाना शुरू कर दिए। अब वह करीब सात से आठ बीघा की खेती कर रहे हैं।

टमाटर संकर व सामान्य दोनों प्रकार की किए हैं खेती

टमाटर में सामान्य व संकर दोनों प्रकार की किस्मों की खेती कैलाश किए हैं। सामान्य प्रजाति में काशी अमृता, काशी अमन, पूसा 120, काशी अनुपम, अर्का विकास, अर्का शोभा, काशी सरद आदि किस्में शामिल है।

कृषि विज्ञान केन्द्र पिलखी कें वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एलसी वर्मा का कहना है कि इनके फलो के पकने की अवधि 80 से 90 दिन है तथा उत्पादन 400 से 500 कुन्तल प्रति हेक्टेअर है। इनके लिए बीज की मात्रा 450-500 ग्राम प्रति हेक्टेअर पर्याप्त होती है। ऐसे में कैलाश को बराबर इसकी सलाह दी जाती है। यही वजह है कि उसकी फसल का उत्पादन बेहतर होता है।

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