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Ghosi Vidhan Sabha: घोसी की जनता ने दारा सिंह को नकारा, क्या दांव पर है राजनीतिक भविष्य; OP राजभर को भी झटका

Ghosi Vidhan Sabha सपा छोड़कर भाजपा उम्मीदवार बने दारा सिंह चौहान के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। सत्ता सुख भोगने की उनकी चाहत के कारण घोसी में 16 माह के भीतर दोबारा चुनाव कराना पड़ा और पिछले चुनाव में जीत दिलाने वाली जनता ने इस बार उन्हें पूरी तरह नकार दिया। ऐसे में बड़ा सवाल है कि दारा सिंह चौहान की अब भाजपा में क्या भूमिका होगी।

By Jagran NewsEdited By: Swati SinghUpdated: Sat, 09 Sep 2023 03:27 PM (IST)
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घोसी की जनता ने दारा सिंह को नकारा, क्या दांव पर है राजनीतिक भविष्य

मऊ, जागरण संवाददाता। घोसी विधानसभा सीट का परिणाम दारा सिंह चौहान ही नहीं, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की हार भी है। साथ ही सपा छोड़कर भाजपा उम्मीदवार बने दारा सिंह चौहान के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। सत्ता सुख भोगने की उनकी चाहत के कारण घोसी में 16 माह के भीतर दोबारा चुनाव कराना पड़ा और पिछले चुनाव में जीत दिलाने वाली जनता ने इस बार उन्हें पूरी तरह नकार दिया।

ऐसे में बड़ा सवाल है कि अपनी राजनीतिक जमीन गंवा चुके दारा सिंह चौहान की अब भाजपा में क्या भूमिका होगी। इस चुनाव ने बड़बोले सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को भी सबक दिया है। पूर्वांचल के राजभर वोट बैंक पर अपनी पकड़ का दावा करने वाले राजभर घोसी उपचुनाव में बुरी तरह विफल रहे। यही नहीं इस उपचुनाव को सपा बनाम सुभासपा बता रहे राजभर की मोलतोल की क्षमता भी प्रभावित होगी।

बसपा ने बनाई थी घोसी से दूरी

बसपा ने पहली बार घोसी में उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारा है। लंबे समय से पार्टी अध्यक्ष मायावती की निष्क्रियता के कारण भी उसके मतदाता असमंजस की स्थिति में है। ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टियों की क्या स्थिति होगी, इस उपचुनाव से आए परिणाम के बाद अच्छी तरह आकलन किया जा सकता है।

ऐसा रहा घोसी का सियासी का सफर

घोसी विधानसभा में वर्ष 2017 से 2023 के बीच चार बार चुनाव हो चुके हैं। यानी छह साल में हर डेढ़ साल पर घोसी को जनता को मतदान करने के लिए विवश किया गया। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी फागू चौहान ने माफिया मुख्तार अंसारी के पुत्र अब्बास अंसारी को हराकर चुनाव जीता था। इसके बाद फागू बिहार के राज्यपाल बना दिए गए। अब यह सीट रिक्त हो गई। इस सीट पर डेढ़ साल में 2019 में उपचुनाव का सामना जनता को करना पड़ा। इस दौरान भाजपा प्रत्याशी विजय राजभर ने स्वीकार कर जीत दिलाई थी और सपा समर्थित प्रत्याशी सुधाकर सिंह को हराया था।

घोसी की जनता ने एक बार जताया था भरोसा

इसके बाद वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के दारा सिंह चौहान को जनता जीत दर्ज कराई थी। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी विजय राजभर को 22 हजार वोटों से हराया था। घोसी के लोगों को आशा थी कि क्षेत्र का विकास होगा और अब उनको पांच साल बाद ही प्रत्याशी चुनने पड़ेगा, लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत बीते 15 जुलाई को सपा विधायक दारा सिंह चौहान ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंपकर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके बाद फिर घोसी की विधानसभा सीट रिक्त हो गई।

दोबारा दारा सिंह को जनता ने नकारा

बार-बार चुनाव का दर्द झेल रही जनता को फिर उपचुनाव का सामना करना पड़ा। भाजपा ने दारा सिंह चौहान को यहां का प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद जनता का मूड पूरी तरह से बिफर गया। वह बार-बार चुनाव थोपने की क्रियाकलाप से आजित आकर शुक्रवार को एकतरफा फैसले सुनाते हुए दारा सिंह चौहान के विपक्ष में खड़ी हो गई और सुधाकर सिंह को 42759 मतों से जीत दिला दी। यानी घोसी की जनता ने जनप्रतिनिधियों को आभास करा दिया कि हम थोपे गए चुनाव को स्वीकार नहीं करेंगे। अब वह दिन लद गए जब बार-बार चुनाव कराया जाए। यही वजह रही कि भाजपा की पूरी फौज उतरने के बावजूद जनता के फैसले नहीं बदले।

दांव पर लगा है दारा सिंह और राजभर का भविष्य

चुनाव के दौरान यह चर्चा थी कि मतगणना के बाद दारा सिंह चौहान व ओमप्रकाश राजभर का मंत्री बनना लगभग तय है। अब चुनाव हारने के बाद दारा सिंह चौहान के राजनीतिक भविष्य दांव पर आ गया है। पहले वह विधायक थे, लेकिन चुनाव हारने के बाद अब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है। ऐसे में उनके कुनबे में बौखलाहट है। ओमप्रकाश राजभर का बड़बोलापन भी सामने आ गया है। अब करारी हार से उनके कुनबे में भी हलचल मची है। अब इन दोनों नेताओं का भविष्य क्या होगा, यह केंद्र व प्रदेश स्तर पर समीक्षा के बाद ही पता चल पाएगा।

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